Book Title: Jinabhashita 2007 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ रजि नं. UPHIN/2006/16750 गोम्मटेश गीत ब्र. शान्तिकुमार जैन (मुनिश्री प्रमाण सागर जी संघस्थ) नैना दोनों नील कमल दल, पूर्ण चन्द्र शोभे मुख मण्डल। नाक कुसुम चम्पकसी निर्मल, गोम्मटेश बन्दूँ मैं हर पल // लिपट लताएँ अतनु के तन, कल्पवृक्ष सम फल दे भव्यन। चरण पूजते देव, इन्द्र जन, गोम्मटेश को शत शत वन्दन // - 6 निर्मल नील गगन सी काया, कर्ण, दीर्घ, भाल चमकाया। दो बाहु जस सूण्ड दीपाया, गोम्मेश हम शीश नमाया॥ सर्वभयों से मुक्त दिगम्बर, निरासक्त शुद्ध बाह्य अभ्यन्तर। कालानाग, पशुसे न कोई डर, गोम्मटेश पद नमन करूँ सर॥ 3. गरदन दिव्य संख सी सोहे, हिमगिरि फैली छाती मोहे / कमर कठोर सुदृढ़ मन जोहे, गोम्मटेश पूजें आओ, हे ! // स्वच्छ दृष्टि वांछा मन नाहीं, जग सुख मोह समूल नसाई। भरत मान तोड़ा शिव राही, गोम्मटेश बन्दूं नित भाई॥ 8 अनुपम शोभा विंध्याचल पर, चूड़ामणि वैराग्य महल पर। शशि त्रिलोक सोहे शीतलकर, गोम्मटेश बन्दूँ सब दुःखहर॥ धन, जन, धाम सब परित्यागी, द्वेष-मोह तज बन वैरागी। तपी वरष अनशन की आगी, गोम्मटे श बन्दे बड़भागी॥ स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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