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दिखाई देती हैं वे भी जैन और हिन्दू मूर्तिकला की गवाही । (केपिटल) को पंखुड़ी की तरह तराशा गया है। इसमें 2 देती हैं। उत्तरीद्वार की पत्थर की चौखटें और उनकी दर्जन के करीब कार्बल छतें हैं जिनकी नक्काशी अलगनक्काशी भी जैनमंदिरों के द्वार की सजावट से मिलती- अलग है जिसमें खासकर कल्पवृक्ष की और कमल की
| पंखडियों आदि की सजावटें आब के मंदिरों की छतों से के पीछे पश्चिम-उत्तर में स्थित है, अंदरूनी नक्काशी और मिलती-जुलती तो हैं ही, कारीगरी और नजाकत अद्भुत महराब की बनावट, जैनमंदिरों के गहरे आले, जिनमें जैन | है। हिन्दुस्तान में शायद ही ऐसी कोई इस्लामी इमारत हो तीर्थङ्करों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, उनकी सजावट से काफी | जिसमें हिन्दू और जैनमंदिरों की आर्ट के नमूने इतनी प्रभावित है।
खूबसूरती से संजोए गए हों। ___14. सुल्तान इल्तुविमश की बनाई हुई अजमेर में | ___17. गुजरात में खिलजी और तुगलककालीन मस्जिदों स्थित 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' मस्जिद निर्माणकला में में मुख-द्वार से लेकर सामने की दीवार महराबी, दरवाजे, बेजोड़ नमूना है। यह मस्जिद एक प्राचीन इमारत के चबूतरे | स्तंभ के धरणी एवं पश्चिमी दीवार की गहरी महराबें जैन पर निर्माण कराई गई है। यह दिल्ली सुल्तानों के जमाने | कलाकृति से भरे हुए हैं जिनमें विशेषकर भड़ौच की की एक पहली मस्जिद की इमारत है जिसमें नए पत्थरों | खिलजी ईदगाह और मस्जिद एवं वहीं की जामामस्जिद को लेकर और उनकी नक्काशी और सजावट पश्चिम भारत | देखने योग्य है। हालाँकि अधिकांश पत्थर नए हैं लेकिन के जैनमंदिरों की कलाकृति से की गई है। मस्जिद में प्रवेश कहीं-कहीं जैनमंदिरों के कीर्तिमख बडे ही मनोरम हैं। पत्थर की सीढ़ियों से उसके पूर्वीद्वार से किया जाता है। पत्थर की शिलों और द्वार की चौखटें आज भी जैनमंदिरों जिसकी पत्थर की चौखटें जैननक्काशी की प्रतीक हैं। की कलात्मक परम्पराओं के प्रतीक हैं। इनमें फूल-पत्तियों मस्जिद का पूर्वी ढाँचा अपनी ऊँचाई और महराबदार द्वारों के अलावा उस मूर्तिकला के नमूने भी देखने को मिलते एवं बेमिसाल अरबी के अभिलेखों के कारण केवल भारत | हैं। साथ ही साथ कमल की कलियों के हार महराबों के में ही नहीं बल्कि पूरी इस्लामी दुनिया के मस्जिदों के | फ्रेम में बड़ी खूबसूरती से संजोए गए हैं। कार्बल की छतें संगतराशी के नमूने में बेजोड़ है।
| जिनमें सितारों के आकार की सजावट दर्शनीय है वह 15. इसके अलावा मस्जिद की गहरी महराबें | देलवाड़ा के प्रसिद्ध मंदिरों की छतों से बहुत मिलती-जुलती संगमरमर की बनी हुई हैं और उनकी फ्रेम की सजावट | हैं। में फूल-पत्तियों के वे नमूने हैं जो देलवाड़ा के जैनमंदिरों। 18. अहमदाबाद के ढोलका जिले में तुगलककालीन
और दूसरे पश्चिमी भारत के मंदिरों में दिखाई देते हैं। अलीफ खान की मस्जिद, जिसका मुखद्वार जैनमंदिरों के यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है कि पश्चिम एशिया में और | मंडपों के आकार का है, उस पर की गई फूल-पत्ती की विशेषकर भारत, इराक और ईरान की मस्जिदों में मेहराबों | नक्काशी के अलावा सभी कुछ जैनमंदिरों जैसा है। की बनावट और सजावट भारत के जैनमंदिरों के हॉलों विशेषकर उसके तोरण एवं शहतीरें। मस्जिद के हॉल की से बहुत प्रभावित हुई है। उसका विशेष कारण यह था | छतें ओर महराबें भी जैनआर्ट के सौंदर्य को प्रदर्शित करती कि पश्चिमी तटवर्तीय इलाकों का उन विदेशी इलाकों से | हैं। परस्पर बड़ा गहरा व्यापारिक संबंध था। यह बात भी 19. 15वीं शताब्दी के मशहूर संत शेखअहमद खटू दिलचस्प है कि मंदिरों की छतों की सजावट में इस्लामी सुल्तान अहमद शाह के पीरों में से थे। वे सरखेज में खानका सजावट के नमूनों की भी कहीं-कहीं कोशिश की गई है। में रहते थे और अहमद शाह ने जब अहमदाबाद नगर की इससे सांस्कृतिक लेन-देन का पता चलता है।
बुनियाद डाली तो उन्होंने ही पहली ईंट अपने करकमलों ___16. यह बात विचारणीय है कि एक मंदिर में 3- | द्वारा रखी थी। 4 मंडप होते हैं और उसमें 3-4 ही कार्बल की छतें हैं 20. उनका मकबरा अहमद शाह के बेटे मुहम्मद जिन पर कमल आदि फूलों की पंखुड़ियों एवं कीर्तिमुख शाह ने सरखेज में ही बनवाया। इस विशाल पत्थर के इत्यादि की नक्काशी होती है। लेकिन जिनकी ऊँचाई किसी सुंदर मकबरे के सामने एक मंडपा है जो जैन और हिन्दू मंदिर के स्तम्भ में दिखाई नहीं देती। इसकी धरती। मंदिरों के उन मंडपों से मिलता-जुलता है जिसमें भगवान
18 अक्टूबर 2007 जिनभाषित -
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