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ऐसा स्थान होगा जहाँ उनके सम्पर्क में आनेवाला छात्र, | कुमार मोदी जी के चिरविछोह की पीड़ा को म्लान नहीं अध्यापक, अधिकारी या कर्मचारी उनकी मेधा और | करेगा। वे जबलपुर के नागरिक जीवन की न केवल एक सहृदयता की सराहना करते ना थकता हो।
| वरिष्ठ विभूति थे, वरन शिक्षाजगत के एक उज्ज्वल प्रकाश डॉ. हीरालाल जैन ने जैनागम का पाठालोचन. स्तम्भ भी केवल अपनी वय के कारण नहीं, अपनी सहज, विश्लेषण और हिन्दी अनुवाद कर ऐतिहासिक कार्य किया | निश्छल स्नेहशीलता के कारण भी थे। था। जिनागम के वे श्रेष्ठ विद्वान थे. उनके गौलोकवासी । विगत् 30 जून 2007 को प्रज्ञापुरुष प्रोफेसर प्रफुल्ल हो जाने के बाद प्रोफेसर मोदी ने प्राच्यविद्या के जैन और कुमार मोदी जी 85 वर्ष की परिपक्व आयु प्राप्तकर जैनेतर अध्ययन को जारी रखने की भरपूर चेष्टा की। महाशून्य में लीन हो गए। उनके अवसान से सम्पूर्ण स्वर्गीय पिता डॉ. हीरालाल जी जैन के जन्मशताब्दी समारोह | | मध्यप्रदेश, महाकौशल में प्राच्य विधाओं और संस्कृति की के प्रसङ्ग पर उनके प्रकाशित अप्रकाशित लेखन एवं | एक ऐसी आलोकोज्ज्वल परम्परा का अंत हो गया, जो षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका के सङ्कलन इत्यादि को | दीर्घकाल से दर्शन, अध्यात्म और श्रमण संस्कृति के विस्तृत सफलतापूर्वक संपादित कराकर अपनी बौद्धिक ऊर्जा का | आयामों एवं अंधकाराच्छन्न अध्यायों को अपनी सम्पूर्ण उत्कर्ष प्रमाण दिया। धर्म की चेतना, ज्ञान और आचरण | शक्ति से उजागर करती रही। की सौम्यता के वंशसंस्कार उनके व्यक्तित्व में जीवंत थे | गौरतबल होगा प्रो. मोदी के लिए डॉ. इकबाल साहब उनको ना तो अपनी ज्ञानगरिमा का गर्व था और ना ही | के निम्न शेर का उल्लेख करनाज्ञान के विच्छिन्न दीप विशेया में रह जाने का आग्रह । वे हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, अकेले अपने में ही जीवित रहना हेय समझते थे। सुसंस्कार बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।
और धर्मभावना परिलक्षित हुई जब उन्होंने अग्रवाल कॉलोनी मेरे स्व. मामा जी तथा मोदी जी नागपुर कॉलेज जबलपुर स्थित दिगम्बर जैनमंदिर की स्थापना में अपना | से सहपाठी थे, यह एक तिगड़ी थी, मोदी-गर्ग-मुदालियर महत् योगदान दिया। उनके चित्त की यही प्रवृत्ति उन्हें | किसी एक को ढूंढना हो तो किसी को भी ढूंढ लें, वह "पार्श्वनाथ चरिउ"'करलखन' और सामुद्रिक शास्त्र जैसी | मिल जाएगा, इस मित्रता को उन्होंने पारिवारिक बंधन में उल्लेखनीय कृतियों के अनुवाद की ओर भी ले गयी। बदल दिया, और वे हमारे 'मम्मा जी' हो गए, और रिश्ता इन मनीषी के ज्ञान-वैभव के सम्पर्क में जो भी आया, | कायम हो गया, वीर प्रभु से यही कामना है कि यह जन्म वह न तो कभी उनके मनोहारी और स्नेहवत्सल व्यक्तित्व | जन्मान्तर तक जुड़ा रहे। उसी शाश्वत सौन्दर्यबोध को को विस्मृत कर पाया और न ही उनके अहंकार शून्य | उनकी सहधर्मणी श्रीमती इंदुमोदी, बहिन डॉ. शान्ता जैन, पांडित्य को। उन्होंने जैसे मानवीय करुणा के धर्म और | पुत्री श्रीमती नीरजा सतीश नायक और उनके दोनों पुत्रों, मर्म को अपनी अंतश्चेतना में आत्मसात कर लिया था। पुत्रवधुओं प्रदीप-मृदुला, सुधीर-सरल मोदी तथा प्रपौत्र ज्ञान की प्राचीन परम्परा से आधुनिककाल तक वे चैतन्य | आलोक, अंशु अम्बुज मोदी ने भी हृदयंगम किया। थे चिंतन में ही निमग्न रहे। अपनी वाणी और कृत्यों से | उनके अभाव के कारण अभ्यस्त होने में समय तो कदाचित् ही उन्होंने किसी को दुःख पहुँचाया हो। कर्त्तव्य | लगेगा, किन्तु उनकी प्रेरणादायक स्मृति हमारे मानस पटल
और आनंद तथा कर्मठता और सरसता के बीच सहज | पर निरन्तर चंदन गंध भरती रहेगी। संतुलन ही उनके सार्थक जीवन की परिकथा थी।
'महसूस कर सकता हूँ पर छू नहीं सकता पार्थिव देह नश्वर है, सभी संयोगों का अंत अंततः तुम फूल नहीं फूल की खूशबू की तरह हो।' वियोग में होता है यह पुस्तकीय तत्त्वज्ञान प्रोफेसर प्रफुल्ल
परम पूज्य मम्मा जी के चरणों में शत शत वन्दन
नमन। दानं प्रियवाक्सहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यम्।
वित्तं त्यागनियुक्तं दुर्लभमेतच्चष्टयं लोके॥ मधुर वचन बोलते हुए दान करना, ज्ञान होने पर गर्व न होना, शौर्य होने पर क्षमाभाव धारण करना तथा धन होने पर त्याग करना, ये चार बातें लोक में दुर्लभ हैं।
अक्टूबर 2007 जिनभाषित 25
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