Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ धर्मध्यान की पृष्ठभूमि सदैव बनी रहती है। ने रूस के हाथों पहुँचने के भय से गोली मारकर आत्महत्या सल्लेखना की परम्परा कर ली थी। लार्ड क्लाइव ने चाकू से अपना गला काटकर सल्लेखना चंकि जैनधर्म का आध्यात्मिक और आत्महत्या का उदाहरण पेश किया था। सिलविया प्लाथ ने पारमार्थिक सिद्धांत है,सहस्रों वर्ष पुराना है। तीर्थंकर ऋषभदेव से ही यह परम्परा चली आ रही है। ऐतिहासिक काल की सेक्सटन ने अपनी कार को बंदकर विष खाकर आत्महत्या ओर भी यदि हम झांके तो पार्श्वनाथ और महावीर ने भी | | की। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। इसी सल्लेखना के माध्यम से अपना शरीर छोड़ा था। सम्राट | हमारे यहाँ भी ऐसे ही उदाहरण कम नहीं हैं। दहेज, चंद्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेलगोला में सल्लेखना व्रत पूर्वक लड़की का होना, बलात्कार, कैन्सर जैसी बीमारियाँ, पतिमरण का वरण किया था। सैकड़ों शिलालेख इस तथ्य के | पत्नी में कलह, असफलता आदि अनेक कारण हैं जिनसे प्रमाण हैं कि जैनाचार्य अंतिम समय में सल्लेखना पूर्वक ही | आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ती चली जा रही हैं। ऐसी वितृष्णा मरण करते हैं। ये सभी शिलालेख प्रकाशित भी हो चुके हैं। | से उत्पन्न आत्महत्या की सल्लेखना जैसे आध्यात्मिक मरण साहित्यिक प्रमाणों के साथ पुरातात्विक प्रमाण भी इसके | के साथ तुलना कैसे की जा सकती है? साक्षी हैं। ऐसी स्थिति में इस परम्परा को कैसे झुठलाया जा कीट्स, कोलरिज, शैली, वर्डसवर्थ, स्टीवेंसन, चार्ल्स, सकता है। लेंब, कालिदास, भवभूति, पुष्पदन्त-भूतबलि आदि जैसे आचार्य शांतिसागर जी ने १८ सितंबर १९५५ में | हजारों साहित्यकारों ने आत्महत्या जैसे घिनौने कृत्य से दूर यमसल्लेखना पूर्वक कुन्थलगिरि (महाराष्ट्र) में समाधिमरण | रहकर अपनी लेखनी के माध्यम से अमरता प्राप्त की है। किया था। इसे मृत्यु महोत्सव भी कहा जाता है। आचार्य होमर, मिल्टन, सूरदास ने अंधे होने पर भी दुनियाँ को बहुत विनोबा भावे ने भी सल्लेखना धारणा की थी। आज भी यह कुछ दिया है। निराशा से दूर रहकर पुरुषार्थवृत्ति अपनाकर परम्परा जीवित है। इस परम्परा पर आत्महत्या का दोष सकारात्मक सोच से जीवन को जिया जाना चाहिए। संघर्ष लगाना नितांत अज्ञानता है। जैन साहित्य में मरण के प्रकारों ही जीवन की कहानी है। उसे आत्महत्या जैसे घृणित कृत्य पर सूक्ष्म विवेचन मिलता है। वहाँ शस्त्र अथवा विषादिक से समाप्त नहीं करना चाहिए। के माध्यम से किये गये मरण को च्यावित मरण कहा गया आत्महत्या को अंग्रेजी में यूथान्सिया (Euthanaहै। यही आज आत्महत्या के नाम से जाना जाता है। इसे sia) भी कहा गया है। इसे Slippery slope कहकर भी उचित नहीं माना गया है। समाधिमरण द्वारा किया गया मरण पकारा जाता है जहाँ चिकित्सक की सहायता से मत्य पायी त्यक्त मरण कहा जाता है। इस त्यक्त मरण को आध्यात्मिक जाती है। अरिष्टोटल, प्लेटो, डिस्हानर आदि दार्शनिकों ने मरण माना जाता है जो सही है। इसप्रकार की मृत्यु की घनघोर निन्दा की है। नियाप्लाटोनिस्टो, आत्महत्या की परम्परा अगस्तायन, एक्विनस, डेविडहयम. धरखेम. फड आदि आत्महत्या को अंग्रेजो में स्युसाइड कहा जाता है जो | विचारकों ने भी उसका विराध किया। मर्सी किलिंग पर पूर्णतः असंवैधानिक और अनुचित है। आज भारत में प्रतिदिन | लोगों को दण्डित भी किया गया। नीदरलैंड में कुछ शर्तों के लगभग ३०० आत्महत्याओं की घटनाएं हो रही हैं। वेबसाइड | साथ आत्महत्या का अधिकार अवश्य दिया गया बाकी में उसे लाभप्रद कहा गया है जिसकी समग्र निंदा की जानी | अमेरिका, भारत आदि देशों में इसे अभी अपराध की सीमा चाहिए। मीना कुमारी जैसे अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने इसी में ही रखा गया है। किसी धर्म ने भी इसे स्वीकार नहीं किया आत्महत्या का सहारा लेकर अपने अन्तिम जीवन के दुःखों | है। से मुक्ति ली है। कर्ज, प्रेम, कलह, संपत्ति, अनुत्तीर्णता | मरण के प्रकार आदि जैसे कारणों से होने वाली आत्महत्याओं की रिपोर्ट | जैन साहित्य में मरण के तीन प्रकारों का वर्णन मिलता आये दिन आती ही रहती है। इन रिपोर्टों की पृष्टभूमि से | है- वहाँ १) स्वाभाविक साधारण मरण को च्युत, २) शस्त्रादि सल्लेखना और आत्महत्या के बीच का अन्तर बिलकुल | द्वारा मरण को च्यावित और, ३) समाधिमरण द्वारा प्राप्त स्पष्ट हो जाता है। मरण को त्यक्त कहा जाता है। त्यक्त के तीन प्रकार हैंविदेशों में भी आत्महत्याएँ कम नहीं हुई हैं। हिटलर | (१) भक्त प्रत्याख्यान (आहारादि त्यागने के बाद शरीर की -जून-जुलाई 2007 जिनभाषित 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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