Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ में "आदीश' इस शब्द को नमस्कार के बदले लेते होंगे।। यह रुढ़ी क्या होगी? हमें लगता है कि राजपुताना में प्रथम पृ. ६१ पर से मालूम होता है कि, जिस समय यह | मुसलमान घुसे होंगे और उन्होंने आर्यों को प्रथम जबरदस्ती पुस्तक लिखा गया था उस समय नाथ पंथ की जनसंख्या | से उधर ही भ्रष्ट किया उनमें से जो जैन धर्मीय थे उन्हें पंद्रह लाख थी। उसमें नग्न गोसावीयों की जनसंख्या ज्यादा | अपने इष्ट देव से संबंध तोड़ना दुःसह हुआ होगा। फिर थी। आगे चौपड़े साहब कहते हैं कि नग्नावस्था मतलब | भी नमाज पढ़ने के निमित्त से अपने पूर्व देव का वे लोग जंगली अवस्था है ऐसे जो विद्वान कहते हैं उनकी आंखों | भक्ती से दर्शन लेने के लिए आते होगे, क्योंकि वह अगर में यह नंगे गोसावीयों का वर्ग मतलब है तीखा अंर्जन है। कट्टर इस्लामी होते तो उनका काल ऐसा था कि वे वहाँ इसी पृष्ठ पर लिखा है कि भागवत अध्याय ६ श्लोक | के मूल केसरियाजी की मूर्ति ही निकालकर उस जगह ५ में बताया है कि, "वृषभनाथ चरित्र सुनकर कोंक, केंट मस्जिद बना लेते।" यह विषय विचार प्रवर्तक लगता है और कटक देशों के राजाओं ने वृषभनाथ जी के पास दीक्षा | और मेरा ऐसा विचार है कि इस विषय पर विशेष छानबीन ली। वृषभनाथ जी के समय ३६३ पाखंडी उपदेशक थे" | होनी चाहिये। विद्वान् इस विषय इससे यह पाखंडी यति इन नाथपंथ पंथवालों में से ही होने | तो और विशेष जानकारी प्राप्त हो सकती है। चाहिए। पृ. ६२ की टिप्पणी में लिखा है, भरत कुल से | । पैगंबर शब्द का अर्थ बताते हुए वें पृ. ५७ पर लिखते श्री मत्सेंद्रनाथ का अत्यंत एकत्व भाव का संबंध था इतना | हैं- पै+ग+अंबर पैगंबर ऐसा शब्द तैयार हुआ है। 'पै' कहे तो बस है (देशमुखकृत क्षत्रियों का इतिहास पृ.३३२ मतलब कुछ नहीं, 'ग' मलतब गर्व और 'अंबर' मतलब देखिये) आगे 'न: विष्णुः पृथिवीपतिः' इस पर चर्चा करते वस्त्र। इसके शब्द 'रहीम' मतलब शांती। इसप्रकार और हये लिखा है कि इसका अर्थ 'राजा विष्णु का अवतार | भी शब्दों का खुलासा किया है। पृ.६८ पर पैगंबर शब्द है'। वे कहते हैं कि यह जैन धर्म से संबंधित है। पृ. ६४ का एक और अर्थ संदेश वाहक ऐसा लिखा है। इसी पृष्ठ पर लिखा है कि 'ना विष्णुः पृथिवीपतिः' यह जगत में | इस्लाम धर्म के मुख्य पंथों की चर्चा करते हुए लिखा है, एक अद्वितीय मान एक श्रेष्ठ और पूज्य व्यक्ति को ही | इस्लाम धर्म में एक आदि इस्लाम और दूसरा मूसा इस्लाम मतलब वृषभदेव को ही है। वृषभदेव छोड़कर किसी भी | ऐसे दो भेद प्रमुख हैं। सिया, सुन्नी, मुगल और पठान ये राजा को विष्णु का अवतार नहीं कहा है। सिवाय वेदकाल | भेद आजकल हैं। "आदम" में सूर्य को भी विष्णु कहते थे और वृषभदेव भी सूर्यवंशी | मत प्रकार मुसलमान लोग चलते थे उस समय 'आदम' ही हैं। इस देव को ये लोग मानते होंगे, वोही आदि इस्लाम है अब चलिए थोड़ा सा आगे बढ़े और उस कौम को | और आदम को मानने वाले जो भक्त वो ही 'आदमी' देखें जिसका नाम सुनते ही कहीं लोगों के मन में क्षोभ | मतलब मनुष्य हैं। विष्णु के भक्त वैष्णव, शिव के भक्त उत्पन्न होता है, लेकिन वास्तव में ऐसी कोई बात नहीं | शैव और जिन के भक्त वो जैन उसीप्रकार आदम के जो है। यह है इस्लाम धर्म। भगवान् वृषभदेव और इस्लाम | भक्त वो आदमी है। आगे जैनों में मुशकमुनी के उपदेश धर्म' इस विषय पर चर्चा करते हुये चौपड़े साहब लिखते | से जो भक्त लोग सुधरे वो मुशकमुनी के भक्त बनें। उन्हीं हैं, "इस्लाम धर्म में सृष्टि के आदि पुरुष को 'आदमबाबा' | को आगे 'मुसा इस्लाम' इस नामसे संबोधित करने लगे ऐसे ही कहा है। 'आदम' यह आदि शब्द का रूप है।| होंगे। इस पृष्ठ की टिप्पणी में लिखा है कि 'मुशकमुनी जैन धर्म में भी वृषभनाथ को (आदिनाथ को) आदिप्रभु | ये भगवान् श्री महावीर जी के समकालीन थे।' इसके लिए और आदिम पुरुष ऐसे ही कहा है। आदम शब्द यह आदिम | कोई प्रमाण नहीं दिया है, लेकिन मैंने कई लोगों से शब्द का स्पष्ट रूपांतर है। दो हजार वर्षपूर्व जैन शास्त्र | मुशकमुनी के बारे में सुना है (दक्षिण में); क्या विद्वान में 'आदिम' शब्द मिलता है।" इसी पृष्ठ पर आगे लिखा | इसके लिये प्रामाण ढूंढ़ नहीं सकते? तात्या चौपड़े का है- "इस जगह एक महत्वपूर्ण और प्रचलित रुढी ध्यान | अधुरा काम विद्वानों को पूरा करना चाहिए ऐसा मुझे लगता में रखने योग्य है याने श्री क्षेत्र धुलिया (राजपुताना) इस | है। क्षेत्र के बारे में है। श्री क्षेत्र केसरिया के बाहर एक मस्जिद | "हिंदुओं की जो बारह ज्योतिर्लिंग आज वे प्राचीनहै, वहाँ मुसलमान लोग नित्य नमाज पढ़ते हैं और जाते | काल में जिन मंदिर ही थे। उनमें से काशी, यल्लोरा और वक्त 'आदमबाबा की दीन' ऐसा कहकर निकल जाते हैं। | ज्योतिबा (कोल्हापूर) इनका वर्णन हम इस प्रकरण में आगे -जून-जुलाई 2007 जिनभाषित 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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