Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ही नहीं है। उपदेश के लिए शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ,। नहीं चलेगा। मूल में तो वीतराग भाव या वीतरागता होनी आगमार्थ और भावार्थ का ज्ञान जरूरी है। उन्होंने गुरु की | चाहिए। परख के लिए शास्त्रों की परख को जरूरी बताया और | पंथवाद की चर्चा करते हुए पूज्य आचार्य श्री कहा कि भावार्थ का ज्ञान जरूरी है। शास्त्रों में गुरु की | विद्यासागर जी महाराज ने बताया कि पंथवाद पूजा पद्धति परिभाषा स्पष्ट है। को लेकर है। पंथवादी को वीतराग संवेदन नहीं होता। दयाधर्म की चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने बताया | पंथवादी पूजा पद्धति को लेकर खड़े हैं और आपस में कि कुछ लोग हमारे पास आकर प्रश्न करते हैं कि आपके | लड़ रहे हैं। इन्हें जैनागम, जैनत्व, सच्चे देव से कोई लेना प्रवचन में दया की बात आती है आत्मा की नहीं? इस | देना नहीं है। वे यह पूछते हैं कि पूजन किससे करें? कैसे प्रश्न का समाधान देते हुए आचार्यश्री कहते हैं- 'दयामूलो | करें? कोई यह नहीं पूछता कि पूजा किसकी करें? इसके भवेत् धर्मः' अर्थात् जहाँ मूल में दया होती है वहीं धर्म | प्रति जिज्ञासा ही नहीं है। आचार्य समन्तभद्र ने यह नहीं होता है। दया का आश्रय लो, मूल अपने आप मिल जायेगा। कहा कि कौन सम्यग्दृष्टि है, कौन मिथ्यादृष्टि? उन्होंने देव, शास्त्र, गुरु, षट् द्रव्य, नौ पदार्थ के साथ सम्यग्दर्शन, | तो बताया कि जो क्षुत्पिपासा आदि १८ दोषों से रहित हैं सम्यग्ज्ञान और सम्यंक्चारित्र की चर्चा को आगमपद्धति | वे ही देव हैं। कल्पवासी आदि आराध्य नहीं हैं। भवनत्रिक और आदि (प्रारंभ) से लेकर आगे बढ़ने को आपने | की आराधना कहीं नहीं कही है। सम्यग्दृष्टि यदि भवनत्रिक अध्यात्म पद्धति बताते हुए कहा कि १६वीं कक्षा तक प्रश्न | में जायेगा तो वहाँ वह मिथ्यादर्शन के साथ ही जायेगा किन्तु क्रमबद्ध चलेंगे। इसके बाद व्यक्ति शोध करता है तो | यह नियम नहीं है कि वह मिथ्यादृष्टि ही बना रहेगा। जहाँ पुस्तकालय जाकर किसी भी पुस्तक की भाषा का उपयोग | कल्पवासी देवों में कुछ सम्यग्दृष्टि हैं कुछ मिथ्यादृष्टि। कर सकता है। अंत में सिद्धान्त आता है। दिनांक १५ मई | देवियाँ भी ऐसी ही होती हैं। इनमें कभी भी आराधना की को अपने प्रवचन में सम्यग्दर्शन की चर्चा करते हुए बताया , बात नहीं कही। जिनबिम्ब के दर्शनों से निधत्ति और कि निश्चय सम्यग्दर्शन सीधे प्राप्त नहीं होता, उसके लिए | निकाचित कर्मों के क्षय भी देखे जाते हैं अतः सर्वप्रथम व्यवहार सम्यग्दर्शन आवश्यक है। प्रथम गुणस्थान में सब | सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिए। जो देव, शास्त्र, गुरु पर रहते हैं, शेष गुणस्थान अपनी अपनी योग्यता के अनुसार | श्रद्धान को सम्यग्दर्शन नहीं मानते हैं उन्हें दिगम्बरत्व और मिलते हैं। देव, शास्त्र, गुरु को देखकर जो उनकी आराधना | तत्त्वार्थ सूत्र का ज्ञान नहीं हैं। इसके विपरीत जो कथन करता है वही सम्यग्दृष्टि है। सम्यग्दृष्टि के सम्यग्दर्शन करता है वह सामाजिक विघटन का कारण बनता है। धनकी प्राप्ति और वृद्धि होती है। दौलत चाहिए इसलिए 'नाम ले लो' ऐसा नहीं है। इस अनायतनों से बचकर आयतनों में आयेंगे तो नियम | शिविर का उद्देश्य यही है कि शिविर लगाया है तो कुछ से सम्यग्दर्शन होगा। जो सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है वह | लेकर जाओ। विषय-कषायों में जो रम रहा है उनकी रत्नत्रय प्राप्त करता है। यदि रत्नत्रय की वृद्धि करना है | आराधना में यदि कोई लग गया तो वह अनायतन में चला तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करना होगा। जिनेन्द्र भगवान के दर्शन | गया। जो आयतनों में रहता है वह तो शुभोपयोगी होता से उपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। जिनबिम्ब के | है। वह सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को ही आश्रय बनाता है। दर्शन में निःशंकितादि आठ अंगों की भावना का फल | दिनांक १६ मई को आचार्यश्री ने 'रत्नत्रय' के संबंध में प्राप्त होता है। अनायतन और आयतन की चर्चा करते हुए विस्तार से विवेचन किया कि सम्यक् श्रद्धान (दर्शन), आपने बताया कि जो देने योग्य नहीं हैं उनसे लेने की | सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीन पहलुओं पर चलना चाह करना अनायतन है और जो देव, शास्त्र, गुरु के रूप | ही मोक्षमार्ग है। में हैं वे आयतन हैं। आयतन के पास शुभोपयोगी जाता | आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज एवं आचार्य विद्यासागर है, अनायतन के पास अशुभोपयोगी। लेकिन इससे काम | जी महाराज की पूजन, आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के -जून-जुलाई 2007 जिनभाषित 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52