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अनेक लोगों ने अपना सर्वस्व होम कर दिया। यहाँ हम । और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला पत्र अंग्रेजों के १८५७ के उन दो जैन महानायकों का स्मरण करेंगे जो | हाथ लग गया। तब इनके विरूद्ध कठोर कार्यवाही करने अपना सब कुछ देश पर न्योछावर कर शहीद हो गये। का आदेश दिया गया। पत्र पाते ही हिसार कलेक्टर एक अमर शहीद लाला हकम चन्द जैन
| सैनिक दस्ते को लेकर हांसी पहुंचे और लाला हुकुमुचन्द अमर शहीद लाला हुकुम चन्द जैन ने १८५७ के | एवं मिर्जा मुनीर बेग के मकानों पर छापे मारे। दोनों को कान्तियज्ञ में अपने जीवन की आहुति दे दी। लाला | गिरफ्तार किया साथ में हुकुमुचन्द के तेरह साल के भतीजे हुकुमचन्द जैन का जन्म १८१६ में हांसी (हिसार) हरियाणा | फकीरचन्द को भी गिरफ्तार कर हिसार लाकर उन पर के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में श्री दूनीचन्द जैन के यहाँ | मुकदमा चलाया गया। एक दिखावटी सी कार्यवाही करके हुआ। जन्मजात प्रतिभा के धनी हुकुमचन्द जी की फारसी १८ जनवरी, १८५८ को हिसार के मजिस्ट्रेट ने लाला
और गणित में विशेष रूचि थी। इन विषयों पर आपने कई | हुकुमुचन्द और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना पुस्तकें भी लिखी। अपनी शिक्षा और बहुमुखी प्रतिभा के | दी और फकीरचन्द को छोड़ दिया। बल पर आपने मुगलबादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार १९ जनवरी, १८५८ को लाला हुकुमुचन्द और मिर्जा में उच्चपद प्राप्त कर लिया। बादशाह से आपके मधुर संबंध | मुनीर बेग को लाला हुकुमुचन्द के मकान के सामने फांसी थे। आप सात वर्ष तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे | दे दी गई। क्रूरता की पराकाष्ठा तो तब हुई जब लाला थे। श्री जैन उच्चकोटि के दानी, उदार और परोपकारी थे। जी के भतीजे फकरी चन्द, जिसे अदालत ने रिहा कर आपने गांवों में मन्दिरों, कुओं और तालाबों का निर्माण | दिया था, उसे भी पकड़कर फांसी पर लटका दिया गया। कराया। अनेक टूटे मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम १८५७ के इतिहास का यह क्रूरतम
१८५७ में जब स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब | अध्याय था। अंग्रेजों ने उनके शव अंतिम संस्कार हेतु भी लाला हुकुमचन्द की देश प्रेम भावना अंगडाई लेने लगी। नहीं दिये बल्कि उनकी भावनाओं को आहत करते हुए दिल्ली में आयोजित देश भक्त नेताओं के उस सम्मेलन | लाला जी के शव को दफनाया गया और मिर्जा मुनीर बेग में, जिसमें तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर आदि उपस्थित | के शव को जलाया गया। लाला जी की अटूट संपत्ति को थे, हुकुमचन्द जी भी उपस्थित थे। आपने अंग्रेजों के विरूद्ध | कौड़ियों के भाव नीलाम कर दिया गया। युद्ध करने की पेशकश की। आपने उपस्थित नेताओं और लाला हुकुमुचन्द की स्मृति में हांसी नगरपालिका बहादुर शाह जफर को विश्वास दिलाया कि वे इस स्वतंत्रता | ने १९६१ में अमर शहीद हुकुमुचन्द पार्क बनवाया है, संग्राम में अपना तन-मन और धन सर्वस्व बलिदान करने | जिसमें लाला जी की आदमकद प्रतिमा लगवायी गई है। को तैयार हैं। मुगल बादशाह ने भी हर तरह की युद्ध सामग्री | अमर शहीद अमर चंद बांठिया (जैन) सहायता स्वरूप भेजने का आश्वासन दिया।
स्वाधीनता संग्राम १८५७ में अनगनित देश प्रेमियों हांसी पहुँचते ही हुकुमचन्द ने देशभक्त वीरों को | ने अपनी कुर्बानी दी। तत्कालीन ग्वालियर राज्य के एकत्रित किया और जब अंग्रेज सेना दिल्ली कूच कर रही | कोषाध्यक्ष अमरचन्द बांठिया ऐसे ही देश भक्त महापुरुष थी तब हांसी से गुजरते हुए उस पर हमला किया, भारी | थे। १८५७ के महासमर में जूझ रहे क्रांतिवीरों को संकट लड़ाई हुई पर आपके पास युद्ध सामग्री थोड़ी थी और के समय आर्थिक सहायता देकर आपने स्वाधीनता के बादशाह की सहयता भी नहीं पहुँच पायी। पर आप | स्वर्णिम इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। हतोत्साहित नहीं हुए। लाला हुकुमचन्द एवं उनके साथी अमर शहीद अमरचन्द बांठिया में धर्मनिष्ठा मिर्जा मुनीर बेग ने एक पत्र गुप्तरूप से फारसी भाषा में | दानशीलता, सेवा भावना, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता बादशाह को लिखा जिसमें अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष में साथ | आदि गुण जन्मजात थे। यही कारण था कि उन्हें ग्वालियर देने का विश्वास दिलाया और अंग्रेजों के विरूद्ध घृणा के | राज्य के प्रधान राजकोष गंगाजली का प्रधान कोषाध्यक्ष भाव व्यक्त किये।
बनाया गया। गंगाजली में अटूट धनसंचय था जिसका दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। बादशाह | अनुमान सिंधिया नरेशों को भी नहीं था। विपुल धनराशि की व्यक्तिगत फाइलों की जांच के दौरान लाला हुकुमुचन्द | से भरे इस खजाने पर चौबीसों घंटों सशस्त्र पुलिस का
38 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित -
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