Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 39
________________ "१८५७ के महासमर के दो जैन महानायक" डॉ.(श्रीमती) ज्योति जैन आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा | जंगे आजादी और उसके प्रयासों की कहानी स्वयं कह लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा रहे हैं। इतिहास का दुखद पहलू यह भी है कि अनेक आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा इतिहासकारों ने इसे मात्र कुछ सैनिकों की अनुशासनहीनता तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा या विद्रोह का नाम दिया है पर ऐसा लिखा जाना तो क्या हिन्दु मुसलमां सिख, हमारा भाई, भाई प्यारा सोचना भी उन हजारों, लाखों देशभक्तों के साथ बेइंसाफी यह है आजादी का झण्डा इसे सलाम हमारा होगी, जिन्होंने इस महासमर में अपनी जान की बाजी लगा देश को अंग्रेजों (फिरंगियों) से मुक्त कराने में | दी थी। १८५७ की क्रांति में इंकलाबियों का यह प्रिय गीत था।। १८५७ के क्रांतियज का सत्र ईस्ट इंडिया कंपनी की १८५७ का स्वातंत्र्य समर भारतीय राजनैतिक इतिहास | उस नीति को माना गया जिसमें चिकनाई युक्त कारतूस, की ऐसी घटना है जिसे स्मरण कर आज भी दिलों में | जिसके खोल को, सिपाहियों को मुँह से खोलना पड़ता जोश आ जाता है। इतिहास का यह सुनहरा पृष्ठ हमारी था। सिपाहियों में यह बात फैल गयी थी कि इसमें गाय राष्ट्रीय चेतना और अभिव्यक्ति को व्यक्त करता है। आज और सुअर की चर्बी होती है। कंपनी के सैनिक, जिनमें जब हम १८५७ के महासंग्राम की १५०वीं जयंती मना रहे | हिन्दू और मुसलमान दोनों थे की भावना को जबरदस्त हैं तो अतीत का स्मरण करना स्वाभाविक है। ऐतिहासिक ठेस पहुँची, फलस्वरूप सिपाहियों ने बगावत का झण्डा दस्तावेजों, घटनाओं, कहानियों, महानायकों के बलिदानों | बुलंद किया। मंगल पाण्डेय को फांसी की सजा देने के और जन-जन की भावनाओं आदि को लेखन के माध्यम | | बाद देश के एक बड़े हिस्से में विद्रोह फैल गया। मेरठ से जितना जाना, आज यही सब सोचकर-जानकर सभी | से देशी सिपाहियों ने दिल्ली कूच किया। देश में चारों तरफ गौरवान्वित हो रहे हैं कि हमारा अतीत राष्ट्रीयता की भावना | इस क्रांति की लहर फैलती जा रही थी। देशभर में व्याप्त से सराबोर था। गरीबी, तबाही, भुखमरी ने इस बागवत को और भी भड़का इतिहास विशेषज्ञों के १८५७ की क्रांति के संबंध | दिया। रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, मौलवी अहमद शाह, में अपने-अपने तथ्य हैं,राय है। कालमार्क्स ने इसे '१८५७। तात्याटोपे, बेगम हजरत महल सहित अनेक देश भक्त नेता का स्वतंत्रता संग्राम' नाम दिया। अंग्रेज ऑफीसर थामस इस संग्राम से जुड़ गये सभी ने दिल्ली के बादशाह बहादुर ने लिखा है कि इस संग्राम में हिन्दस्तानी जनता की शाह जफर को हिन्दुस्तान का स्वतंत्र शासक घोषित कर जबरदस्त एकता देखने को मिली। १८५७ का यह समर | दिया। बादशाह जफर ने भी इस जिम्मेदारी को मंजूरी दी हर स्तर पर लडा गया। एक ओर अनेक राजा, महाराज, | और फिरंगी राज के विरोध में घोषणा पत्र जारी किया। बादशाह, नबाब, जमींदार, ताल्लुकेदार आदि रहे तो दूसरी १८५७ की क्रांति के दौरान अंग्रेज सरकार ने सख्त ओर किसान, भिश्ती, मजदूर, हलवाई, कहार, तेली, बढ़ई, | कदम उठाये। देशभक्तों के साथ बदसलूकी की गयी, सरे सफाई कर्मचारी आदि का भी सक्रिय सहयोग रहा। लोक | आम कोड़े लगाये गये, जिसका भी थोड़ा सम्बन्ध राष्ट्रकलाकारों ने नृत्य, गायन, वादन आदि के द्वारा अपना | भक्तों से था उसे सरे आम फांसी लगा दी गई। इस समर सहयोग दिया। महिलाओं ने भी अपनी महनीय भूमिका | में अनेक लोगों की कुर्बानी हुई अपने अदम्य साहस और निभायी। विदेशी सत्ता को उखाड़ फेकनें एवं विदेशी | जांबाजी से प्रत्येक योद्धा जन नायक बन गया। १८५७ के शासकों को देश से खदेड़ने का यह जबरदस्त अभियान | १५० वर्ष होने के उपलक्ष्य में वर्षभर कार्यक्रम आयोजित था। अनेक संघर्ष हुए, भंयकर रक्तपात हुआ। अनेक | होते रहेंगे और इनमें जो दस्तावेज और तथ्य सामने आयेगें माताओं की गोदें सूनी हो गयी तो बहुतों का सिंदूर पुछ | तब हमें इसकी महत्ता का पता चलेगा। गया। इस स्वातन्त्र्य समर में सभी जाति एवं धर्मों के लोगों जैन धर्मावलब्यिों ने सदैव कंधा मिलाकर देश के ने अपना योगदान दिया। समस्त दस्तावेज एवं इतिहास इस | स्वाधीनता संग्राम में साथ दिया। १८५७ के इस संघर्ष में -जून-जुलाई 2007 जिनभाषित 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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