Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 37
________________ कविवर पं० दौलतराम जैन : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व हुए। वि.स. १८८२ म आप श्री जात होता है सुमत कुमार जैन दुर्लभ नर भव पाय सुधी जे, जैन धर्म सेवें। । चौकी पर कोई प्राकृत या संस्कृत भाषा का शास्त्र विराजमान 'दौलत' ते अनन्त अविनाशी, सुख शिविका बेवें॥ कर लेते थे और छींट छापते हुए उसकी गाथाएँ या श्लोक जैन धर्म के मर्मज्ञ, अध्यात्मविद्, अत्यंत प्रतिभाशाली, | भी याद करते जाते थे। उनकी स्मरण शक्ति एवं रुचि इतनी प्रकाण्ड विद्वान् कविवर पण्डित दौलतराम जी जैन का जन्म | प्रबल थी की वे एक दिन में साठ सत्तर गाथायें या श्लोक उत्तर प्रदेश के सासनी नगर के मुहल्ला छिपैटी में वि. कण्ठस्थ कर लेते थे। उनके इस आचरण से प्रेरणा मिलती सं. १८५५ (सन् १७६८) में गंगेरीवाल-फतेहपुरिया गोत्रीय | है कि व्यक्ति को व्यर्थ के अन्त:ध्यान आदि विकारों से श्री टोडरमल जैन पल्लीवाल के यहाँ हुआ। आपका विवाह | बचकर अधिक से अधिक समय तत्त्वाभ्यास करना चाहिए। सेठ चिन्तामणि जैन बजाज छिपैटी अलीगढ़ की सुपुत्री से | जीवन के अंतिम सफर में आप को दिल्ली में हुआ था। आपके दो पुत्र वि. सं. १८८३ (सन् १८२६) | विशिष्ट स्वाध्यायी एवम् अध्यात्म रुचि संपन्न सधर्मियों तथा वि. सं. १८८६ (सन् १८२९) में सासनी में उत्पन्न | का सुंदर समागम मिला। आप धर्मपुरा- दिल्ली के नये | जैन पंचायती मंदिर में तत्त्वगोष्ठी करते थे। महाकवि ने ___आपका व्यवसाय छींट छापने का था। आपके पूज्य | वि.सं. १६०१ में माघ कृष्ण चतुर्दशी को दिल्ली के अनेक पिताश्री अपने छोटे भाई चुन्नीलाल के साथ हाथरस में | साधर्मी बंधुओं के साथ आपने तीर्थराज सम्मेद शिखर की कपड़े का व्यापार करते थे। आपका कार्य क्षेत्र सासनी, यात्रा भी की थी, जैसा कि दौलत विलास के पद ७८ से हाथरस और अलीगढ़ रहा। वि.सं. १८८२ में आप श्री जम्बूस्वामी अतिशय क्षेत्र चौरासी, मथुरा के प्रतिष्ठापक सेठ "आज गिरिराज निहारा, धन भाग हमारा।" श्री मनीराम जैन के साथ रहे। आपके ज्येष्ठ पुत्र टीकाराम आपका स्वर्गवास लगभग ६८ वर्ष की अवस्था में लश्कर (ग्वालियर) में रहते थे तथा छोटे पुत्र के बारे में | दिल्ली में मार्गशीर्ष कृष्णा अमावस्या, वि.सं. १६२३ (सन अधिक ज्ञात नहीं है क्योंकि इनका असमय ही निधन हो | १८८६) में, बड़े ही शांत भावों से- समाधि पूर्वक हुआ। आपको गया था। अपनी मृत्यु का छह दिन पूर्व ही आभास हो गया था। ___आपका विविध विषयों के विद्वान् कवि थे किंतु "आज से छठे दिन मध्याह्न के पश्चात् मैं इस शरीर साथ ही वैराग्य प्रकृति के धर्मात्मा सत्पुरुष भी थे। आपका | से निकल कर अन्य शरीर धारण करूँगा, अत: आप सबसे जीवन क्रोध-लोभ-अंहकारादि से दूर रह कर सदैव जिन | क्षमायाचना कर समाधिमरण ग्रहण करता हूँ।" (तीर्थंकर भक्ति, शास्त्र स्वाध्याय, अध्यात्म चिन्तन, वैराग्य भावना, | महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृष्ठ ४/२८९) संयमानुराग आदि श्रेष्ठ गुणों से सुरभित था। आपकी जिन कर्तृत्व- कविवर दौलतराम का स्थान मध्यकालीन अध्यात्म में गहरी रुचि थी, सदैव आध्यात्मिक चिंतन मनन | हिन्दी जैन कवियों में सर्वोपरि है। आपका काव्य यद्यपि में मग्न रहा करते थे। परंतु उनका यह अध्यात्म चिंतन | परिमाण की दृष्टि से अत्यल्प है, परंतु गुणवत्ता की दृष्टि शुष्क या नीरस नहीं था, अपितु वैराग्य से परिपूर्ण था। | से वह सर्वथा अद्वितीय एवम् अनुपमेय है। भाव एवम् शिल्प इससे स्पष्ट है कि कविवर दौलतराम के जीवन में जान | दोनों ही दृष्टियों से वह सर्वथा अदभत व समीचीन हैऔर वैराग्य का अद्भुत समन्वय था। आप शुष्क ज्ञानी "भाव-भाव क्या शब्द-शब्द पर भविजन मन बलिहारी। भी नहीं थे, तो अंधे वैरागी भी नहीं। आपके ज्ञान में वैराग्य है 'वीरेन्द्र' सूर्य राशि जब तक, तब तक कीर्ति तुम्हारी॥" की गति थी और वैराग्य में ज्ञान की चक्ष। आपके जीवन रचनाएँ का मानो एक ही आदर्श वाक्य था- "अज्झयणमेव ज्झाणं" आपने ग्रंथों की रचना ब्रजभाषा-मिश्रित खड़ी बोली अर्थात् अध्ययन ही ध्यान है। में की। प्रत्येक रचना में अध्यात्म का ही अद्भुत रस हिन्दी, संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं पर आपका | विद्यमान है। अधिकार था। कहा जाता है कि जिस समय आप छींट आपकी प्रमुख रचनाऐं निम्नवत् हैंछापने का कार्य करते थे उस समय अपने समीप एक छहढाला- संपूर्ण कृति में सोरठा, चौपाई, पद्धरि, -जून-जुलाई 2007 जिनभाषित 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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