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२ कषाय इन चौदह प्रकार के आभ्यंतर परिग्रह में तथा । रखें तभी श्रमण धर्म निराबाध गति से बढ़ता हुआ धर्मप्रभावना संयम, ज्ञान, शौच के साधनभूत उपकरण पीछी कमण्डलु | का प्रबल निमित्त हो सकता है। शास्त्र आदि में ममत्व नहीं रखना अपरिग्रह महाव्रत है। शरीर को नियंत्रित रखने के लिए आचार्यों ने
पाँचों महाव्रतों को पूर्ण सावधानी से पालने वाले | समितियों को विधिवत् पालन करने को कहा है। इनके साधक निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग को प्रशस्त करते हैं और कर भी | बिना साधुता. नहीं है। अतः इनका स्वरूप जानकर अवश्य रहे हैं। प्रायः साधुओं द्वारा इनका सम्यक्रीति से पालन ही पालन करना चाहिए। ये ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण किया जाता है किंतु कुछ साधु आजकल इनके पालन करने | और प्रतिष्ठापना के भेद से समितियाँ पाँच प्रकार की हैं। में भी प्रमाद कर रहे हैं। रात्रि के कार्यक्रमों में सम्मिलित शास्त्राध्ययन, तीर्थ यात्रा, गुरुवन्दना आदि धार्मिक कार्यों के होकर मंदिर, आश्रम, मठ आदि निर्माण में भूमि के खनन | लिए तथा आहार नीहार आदि के लिए सूर्योदय के बाद आदि करने/कराने और अनुमोदन कर जीवों की विराधना | चित्त की एकाग्रता पूर्वक चार हस्त प्रमाण जमीन देखकर के दोष से दूषित होते हुए अहिंसा महाव्रत की उपेक्षा हो चलना ईर्यासमिति है। पैशुन्य. हास्य. कर्कश, यद्धप्रवर्धक. रही है। श्रावकों से अधिक संबंध और वार्तालाप करने | परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, स्त्रीकथा, भोजनकथा, चोरकथा, के कारण सत्य व्रत के पालन में दोष लगाया जा रहा है। राजकथा तथा अन्य भी राग द्वेषोत्पादक भाषा का त्याग दूसरे संघ के साधु को उनके गुरु की आज्ञा के बिना अपने | कर हित मित प्रिय भाषा बोलना भाषासमिति है। संघ में रखकर और शिष्य बनाकर चौर्य कर्म जैसे दोष | असातावेदनीय कर्म के तीव्र उदय से उत्पन्न होने वाली से दूषित हो रहे हैं। गृहस्थों के आवासों में ठहरकर क्षुधा को शान्त करने हेतु तथा वैय्यावृत्त्यादि के लिए नव महिलाओं से वार्ता आदि प्रसंगों के कारण ब्रह्मचर्य व्रत | कोटियों से निर्दोष ४६ दोष रहित आहार ग्रहण करना में भी दोष लगाया जा रहा है। उन्हें परिग्रह पिशाच ने अपने एषणासमिति है। पीछी, शास्त्र, कमण्डलु, रखते उठाते घेरे में घेर लिया है, जिसमें महाव्रतों की मर्यादाओं का | समय प्रत्यन पूर्वक प्रवत्ति आदाननिक्षेषणसमिति है। जहाँ उल्लंघन किया जा रहा है। महाव्रती अपने साथ मोटर गाड़ी, | असंयमीजनों के आवागमन से रहित एकान्त स्थान हो, जो मोबाइल, टेप, घड़ी, सोने चांदी आदि की मालाएं नहीं रखते | वनस्पतिकायिक एवं इन्द्रियादि जीवों से रहित हो वहाँ हैं जब उनके परमाणु मात्र परिग्रह का निषेध किया है | मलमूत्रादि का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति है।
और संपूर्ण पदार्थों में मूर्छाभाव का त्याग बताया है तो वर्तमान में समितियों के पालन की भी उपेक्षा हो वे ऐसी वस्तुएँ अपने पास कैसे रख सकते हैं जिनसे विषय | रही है जो नैतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तीनों दृष्टियों वासनाओं की वृद्धि हो। जैनाचार्यों ने कहा है कि परिग्रह | से उचित नहीं है क्योंकि समितियों के पालन में यदि साधु की चाह सतत् अतृप्त रखती है। यदि किसी प्रकार इच्छित | शिथिलता बर्तते हैं तो उनके द्वारा हिंसा अवश्य होगी। प्रमाद परिग्रह जुड़ भी जाता है तो भी उससे तृप्ति नहीं होती | के कारण ही समितियाँ सम्यक् प्रकार से नहीं पाली जाती है उसके प्राप्त होने से लोभ की वृद्धि ही होती है। परिग्रह | हैं जबकि इनका नैतिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टियों के प्रति लोभ से प्रेरित हो साधु विविध प्रकार के निर्माण | से विशेष महत्त्व है। श्रमण का जीवरक्षा प्रथम कर्तव्य होता कार्यों में संलग्न होता है। धीरे-धीरे वह स्वयं उसका | है अगर देखकर चलेगा और प्रमाद नहीं करेगा तो ही संचालक और सूत्रधार बन जाता है इससे उसकी निर्दोष- | हिंसादि दोषों से बचेगा। भाषासमिति में हित मित प्रिय निरतिचार चर्या में बाधा उपस्थित होने लगती है। इस परिग्रह | संभाषण के द्वारा साधु नैतिक के साथ सामाजिक व्यवस्था की चाह ने ही तो कुछेक मुनियों को महानगरों में या | में सहयोगी बनता है। उनके वचनों से प्रत्येक व्यक्ति परिग्रहधारी गृहस्थों के बीच में रहने को बाध्य कर दिया | सदाचार में प्रवृत्ति कर सकता है। साधु के हित मित प्रिय है। परिग्रह ही ऐसा पाप है जिसके कारण हिंसा, झूठ, चोरी | वचन जीव मात्र के उपकारी होते हैं। प्रतिष्ठापन समिति
और अब्रह्म से बचना बहुत कठिन है नैतिक, सामाजिक | का पालन नैतिक और सामाजिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण एवं वैज्ञानिक दृष्टियों से महाव्रतों को निर्दोष पालना उचित | है ही साथ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसका कम महत्त्व ही नहीं अपितु अनिवार्य है। अतः आज आवश्यकता है | नहीं है क्योंकि साधु के द्वारा प्रतिष्ठापन समिति के पालन कि साधु संघों में रहें और गृहस्थों से यथासंभव दूरी भी | द्वारा जीवों की रक्षा तो होती ही है और प्रदूषण से बचाव
24 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित
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