Book Title: Jinabhashita 2007 06 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ किया। Dr. Jack Kevorkian के अथक प्रयत्न से The | श्रेणी से मुक्त नहीं किया जा सका। नैतिकता की दृष्टि से oregon death with dignity act पास हुआ १९९४ में पर | भी इसे उचित नहीं कहा जा सका। ईसाई, इस्लाम, वैदिक, उसे १९९७ में रद्द कर दिया गया और Physician-as- | जैन, बौद्ध आदि कोई भी धर्म आत्महत्या की स्वीकृति नहीं sisted suicide को गैर कानूनी माना गया। आज भी उसे देता। परी तरह वैधानिक रूप नहीं मिल सका। ब्रिटेन में फरवरी भारतीय संविधान में भी आत्महत्या को किसी भी १४, २००३ को षड्वर्षीय cloned sheep dolly को फेफडों | स्थिति में वैधानिक नहीं माना गया। उसका Article २१ रण euthanized death से समाप्त | और Section ३०९ स्पष्ट रूप से आत्महत्या को गैरकानुनी कर दिया गया। इसका तात्पर्य यही है कि अब असहनीय | मानता है। और ला-इलाज हो जाने पर करुणा के आधार पर प्राणी को | इसके बावजूद सती प्रथा शदियों से प्रचलित रही ही मृत्यु का वरण कराया जा सकता है। महात्मा गाँधी ने भी | है। वैदिक धर्म यद्यपि आत्महत्या के पक्ष में नहीं है फिर भी एक बछड़े को इसी आधार पर मारने की आज्ञा दी थी | जहाँ कहीं वह उदारता के पक्ष में भी दिखाई देता है। जैनधर्म जिसकी काफी आलोचना की गई थी। में इस उदारता को सल्लेखना का रूप दिया गया है। शारीरिक आत्महत्या (Suicide) को वैधानिक स्वीकृति न अक्षमता और रोग की गंभीरता जब गहरी हो जाती है तो पूर्ण मिलने की पृष्ठभूमि में मूल भावना यह है कि व्यक्ति का निरासक्त होकर, अहिंसक भाव से धार्मिक आराधना करते समाज के प्रति एक विशिष्ट कर्तव्य हुआ करता है जो | हुए व्यक्ति को जीवन-मुक्त होने को वैधानिक मानता है जैन आत्महत्या से पतित हो जाता है। व्यक्ति पर समाज का | धर्म। संविधान में भी इस प्रकार की धार्मिक मृत्यु को अधिकार होता है। वह व्यक्ति को मारने में सहयोग नहीं दे | असंवैधानिक नहीं बताया गया। सकती। इसके अतिरिक्त धार्मिक क्षेत्र में आत्महत्या को इस प्रकार सल्लेखना या समाधिमरण को किसी भी ईश्वर के विपरीत माना गया। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में | स्थिति में आत्महत्या के समकक्ष नहीं बैठाया जा सकता है। उसे स्वीकारा जा सकता है पर वैधानिकता नहीं दी जा | यह तो एक धार्मिक मृत्यु है, वीतरागता पूर्वक मृत्यु की सकती। इनके अतिरिक्त आत्म स्वातन्त्र्य, कारुणिक मृत्यु, | स्वीकृति है। उसमें आत्महत्या का अंश भी नहीं आता। चिकित्सक की सहायता से प्राप्त मृत्यु आदि तर्कों ने भी कस्तूरबा वाचनालय के पास, जीवन की गुणवत्ता को कम नहीं किया। उसे अपराध की | सदर, नागपुर -४४०००१(महाराष्ट्र) डॉ. श्रेयांस जैन 'दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पुरस्कार' से पुरस्कृत अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद के लोकप्रिय यशस्वी अध्यक्ष, व्याख्यान वाचस्पति, सिद्धान्तवेत्ता, वाणीभूषण विद्वान् डॉ. पं. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत को उनकी गहन, अविरल, सैद्धान्तिक तत्त्वव्याख्या ओजस्वी प्रभावक, हृदयस्पर्शी सरल शैली एवं सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति अनन्य अगाध श्रद्धा को दृष्टिगत करते हुए पौराणिक, ऐतिहासिक, त्रय तीर्थंकरों के कल्याणकों से समन्वित धर्मप्राण पुण्य धरा सुप्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुर जम्बूद्वीप के पावन प्रांगण में श्री दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा श्री तेरहद्वीप जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के पावन प्रसंग पर 'गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, जिसका भव्य कार्यक्रम आस्था चैनल से सीधा प्रसारण भी हुआ। साल, श्रीफल, अंग वस्त्र, प्रतीक चिन्ह, राशि आदि उपकरण भेंट किये गये। विद्वान् महोदय की स्वाध्याय शीलता, तत्त्व प्रतिपादन की प्रभावना परक शैली युवा सरस्वती उपासकों के लिये प्रेरणाप्रद है। इस अवसर पर डॉ. साहब की अगाध श्रुतसेवार्थ उनकी कलम की गतिशीलता बनी रहे। ऐसी भावना के साथ सपरिवार जीवन की मंगल कामना की गयी। 'जैनम जयतु शासनम्' द्वारा-सिंघई अरिहंत जैन मोरेना 20 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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