Book Title: Jinabhashita 2004 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ शास्त्री, ग्वालियर के बालकवि कमलेश जैन, दलपतपुर तथा और । पिछले कुछ दिनों गुजरात के राज्यपाल महोदय का अभिनंदन भी अन्य बंधु जो विविध प्रांतों से आये थे घायल हो गये। मेरे | कर जैन संस्कृति संरक्षण मंच वालों ने यह घोषण कर दी कि बाँये हाथ में आज तक सूजन है तथा छाती का घाव अभी भरा | गुजरात के गिरनार पर्वत पर सब ठीक हो गया है, जब कि वहाँ नहीं है। राजकुमार जी तथा बालकवि कमलेश के हाथ के पंजों | पर पुरातत्त्व विभाग के नियमों की अनदेखी कर कंकरीट और पर गहरी सूजन आयी। हम दो चार लोग यदि आगे आकर उनसे | सीमेंट से एक विशाल छतरी अतिक्रमण कर बनवा ली गयी है नहीं जूझते तो सीढ़ियों से पहाड़ों पर गिरकर निश्चित ही कई | और जैनों के साथ मारपीट की गयी है। इसका प्रत्यक्ष भुक्तभोगी महिलाओं, पुरुषों, बच्चों की मौत हो जाती। यह घटना प्रातः७ से | मैं हूँ। ८ बजे के बीच घटित हुयी। सभी जैन यात्री बिना दर्शन किये ही | इस पूरे प्रसंग में मैं अपने पिताजी प्रो.फूलचन्द जैन प्रेमी दस हजार सीढ़ी उतर कर वापस आ गये। के जो कि 56 वर्ष के हैं, साहस का कायल हूँ कि अपने धर्म इस घटना से हमारे मन में आक्रोश और बढ़ गया। नीचे | और संस्कृति के अस्तित्व को लुटता देख तथा अपने जैन भाई को आते समय हमने गोमुखी माता के मंदिर के भी दर्शन किये। वहाँ पिटता देख उनके अंदर बैठा क्षत्रिय जाति का धर्म और बुंदेला भी पंडे थे, वहाँ भी चौबीसों भगवान के चरण चिन्हों की एक | ठाकुर का खून जाग उठा तथा लाठी डंडे खाते हुये भी , उम्र के शिला स्थापित है। इक्यावन रुपये देने पर एक पंडे ने हमें वहाँ का | इस पड़ाव पर भी वे मैदाने जंग में डटे रहे, भागे नहीं। उनके इसी अभिषेक करवाया। हम लोग नीचे आकर धर्मशाला के मैनेजर | साहस धर्म का अनुकरण पूरी समाज को करना चाहिए। मेरी माँ सुनीलकुमार जैन से मिले। उन्होंने एफ.आई.आर. दर्ज कराने की | डॉ. मुन्नी जैन एवं छोटी बहन श्रीमती इन्दु जैन यद्यपि कुछ दूरी सलाह दी। इस बात पर कर्नाटक के जैन बंधु तो इस डर से कि | पर थीं, किन्तु उन्होंने भी साहस का परिचय देते हुये वहाँ से बार-बार पेशी में न आना पड़े, मात्र शिकयतनामे पर हस्ताक्षर कर पलायन नहीं किया, बल्कि यात्रियों द्वारा लाख मना करने पर भी वहाँ से चले गये। कई स्थानीय लोगों ने हमें भी धमकाया, डराया | वे पाँचवीं टोंक तक गयीं तथा दूर से ही दर्शन करके वापस आ कि एफ.आई.आर. मत दर्ज करवाओ, नहीं तो तुम ही लोग फंस | गयीं। जाओगे, किन्तु वहाँ हमने अपने दिमाग की आवाज न सुनकर इस पूरे प्रकरण से हमारा उत्साह चौगुना हो जाना चाहिए। दिल की आवाज सुनी और मैनेजर के साथ थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज | यदि हम महावीर के सच्चे भक्त हैं और भरतचक्रवर्ती के सही यह सोचकर ठान ली कि अब चाहे जो हो देखा | वंशज हैं और सच कहें, तो यदि अपनी माँ का दूध पिया है तो हमें जायेगा। अपने धर्मतीर्थ और धर्म भाइयों के लिए यदि हमें जान | गिरनार जाना छोड़ना नहीं चाहिए। हमें मालूम है हमारे बहुत से भी देनी पड़े तो हम देंगे। ऐसा संकल्प कर हम धर्मशाला में | भाई इसी डर से वहाँ जा नहीं रहे हैं, किन्तु शायद यही कारण है उपस्थित सभी प्रत्यक्षदर्शी भाइयों के गवाह के रूप में हस्ताक्षर | कि वे मुठ्ठी भर पंडे लोग हमारे तीर्थों को हड़प रहे हैं। यह करवाकर तथा कुछ गवाहों को साथ लेकर तालका पुलिस चौकी सोचना कितना आसान है कि जाने दो हमें क्या करना है? हमारे जूनागढ़ पहुँच गये। वहाँ पर तैनात पुलिस अधिकारी प्रमोद कुमार | जाने से क्या होगा? आज इसी सोच ने हमें इस मुकाम पर लाकर देवरा जी (पी.एस.आई.) ने हमारी बातें ध्यान पूर्वक सुनी तथा | | खड़ा कर दिया है। मैं कहता हूँ पूरे देश में आंदोलन होना चाहिए, हमारी अर्जी को पढ़ा। उन्होंने मेरा पिताजी का तथा राजकुमार जी | युवकों को ग्रुप बनाकर पर्वत की यात्रा करनी चाहिए। लाठी,डंडे का डॉक्टरी मुआयना सिटी हास्पिटल पुलिस जीप में भेजकर | चलते हैं, तो चलने दें। जब तक छाती पर डंडे नहीं पडेंगे, तब करवाया। डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट दी। हमें एडमिट कर डिस्चार्ज | तक क्षत्रिय कुल का जैन जागेगा भी नहीं। बनिया ही बना रहेगा। किया। हमारे पिताजी ने सारी जिम्मेदारी निर्भयतापूर्वक निभाते दूसरे लोग अपने-अपने धर्म की रक्षा के लिए क्या कुछ नहीं हुये अपने नाम से एफ.आई.आर. दर्ज करवायी। सारा कार्य करवा | करते? लड़ते हैं, मरते हैं। और हम यह सोचकर बैठे रहें कि हमें कर हम रात्रि में अपने-अपने घर की तरफ निकल पड़े। क्या करना ? भावी पीढ़ी क्या हम पर थूकेगी नहीं कि हमारे पुलिस स्टेशन पर ही एक व्यक्ति ने हमें बताया कि हम | पुरखे तो कायर थे, सब कुछ आँखों के सामने लुटवा लिया और चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते हैं, क्योंकि उन्हें सरकार से परोक्ष | देखते रहे। प्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त है। विचारना यह है कि जिस भाजपा सरकार | मैं तो समाज के सभी तथाकथित नेताओं से भी कहता हूँ का सहयोग जैन समाज तन-मन-धन से करती है और उन्हें | कि मंचों पर झूठी भाषणबाजी और नारों से कुछ नहीं होता, अपना समझती है, उन्हीं की सरकार में जैन तीर्थ और जैन सबसे | हिम्मत है तो जाओ गिरनार टोंक पर और नेमिनाथ भगवान की ज्यादा असुरक्षित क्यों हैं? उन्हीं प्रदेशों में जैन अल्पसंख्यक | जयकार लगाओ। फिर चाहे डंडे पड़ें या लाठी- खाकर आओ, घोषित नहीं हो पाये हैं, जिनमें भाजपा की सरकार रही है । तब पता पड़े कि आंदोलन किसे कहते हैं। मैं अपनी पूरी यात्रा से आखिर इस देश में सर्वाधिक वास्तविक अल्पसंख्यक जैन समाज | आगे की नीति के संदर्भ में निम्न बिंदुओं पर पहुँचा हूँ: की सुरक्षा कौन सी सरकार करेगी? 1. भाजपा, आर.एस.एस. , विश्व हिन्दू परिषद् से प्रश्न 4 नवम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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