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च कषायाणां ततकारणहापनया क्रमेण सम्यग्लेखना सल्लेखना।। 11. पुरषार्थानुशासन, 6/113 - सवार्थसिद्धि 7/22
12. वही, 6/144-116 व्रतोद्योतन श्रावकाचार 124
13. सागरधर्मामृत, 8/23 3. वसुनन्दिश्रावकाचार, 271-272
14. अप्रादुर्भाव : खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति। 4. आत्मसंस्कारानन्तरं तदर्थमेव क्रोधादिकषायरहितानन्तज्ञाना- तेषमेवोत्पत्तिः हिंसेतिजिनागमस्य संक्षेपः। दिगुणलक्षणपरमात्मपदार्थे स्थित्वा रागादिविकल्पानां
पुरुषार्थासिद्धपुपाय, 44 सम्यम्लेखनं द्रव्यषल्लेखन्य तनकरणं भावसल्लेखना, | 15. वही, 177-179 तदर्थकायक्लेशानुष्ठानं, तदुभयाचरणं स सल्लेखनाकालः।- 16. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 130-131 पञ्चास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति।
17. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 175 5. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 122-123
18. यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 865-866 6. लाटीसंहिता, 232-233
19. लाटीसंहिता, 5/235 पुरुषार्थनुशासन, 99-100
20. द्रष्टव्य-उमास्वामिश्रावकाचार, 463, श्रावकाचारसारोद्वार 3/ 8. रत्नकरण्डश्रावकाचार, 124-128
351, पुरुषार्थानुशासन 6/111, कुन्दकुन्द श्रावकाचार 12/4 9. यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 863
22. मुक्ति पथ के बीज 10. अणुव्रतोऽगारी । दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवा
सम्पादक : 'अनेकान्त' सोपभोगपरिभोगातिथिव्रतसम्पन्नश्च । मारणान्तिकीं सल्लेखनां
261/3, पटेलनगर मुजफ्फर नगर (उ.प्र.) जोषिता। - तत्वार्थसूत्र 7/20-22
भावना
श्री क्षुल्लक ध्यानसागर जी हमारे कष्ट मिट जाएँ, नहीं यह भावना स्वामी। डरेन संकटों से हम, यही है भावना स्वामी॥ हमारा भार घट जाये, नहीं यह भावना स्वामी। किसी पर भार ना हों हम, यही है भावना स्वामी॥
फले आशा सभी मन की, नहीं यह भावना स्वामी। निराशा हो न अपने से, यही है भावना स्वामी॥ बढ़े धन-संपदा भारी, नहीं यह भावना स्वामी। रहे संतोष थोड़े में,यही है भावना स्वामी।
दुःखों में साथ दे कोई, नहीं यह भावना स्वामी। बनें सक्षम स्वयं ही हम, यही है भावना स्वामी॥ दुखी हों दष्ट जन सारे, नहीं यह भावना स्वामी। सभी दुर्जन बनें सजन, यही है भावना स्वामी ।।
जीवन-किताब
इंजी. जिनेन्द्र कुमार जैन एक किताब है मेरा जीवन इसके कुछ पृष्ठ भरे हैं
और कुछ खाली भरे हुए पृष्ठ मैंने ही कभी अपने हाथों से भरे हैं शेष खाली पृष्ठों को हम चाहें तो भरें या चाहें तो खाली छोड़ दें ज्यों की त्यों धीर दीनि चॅदरिया की तरह। भरेंगे तो पढ़ना पड़ेगा न भरें तो नहीं। जो पृष्ठ भरे हैं उन्हें एक बार ध्यान देकर पढ़ समझ लें तो दुबारा पढ़ना नहीं पड़ेगा दोहराना नहीं पड़ेगा अन्यथा बारबार पढ़ना दोहराना पड़ेगा। अतः जितना कम भरें जीवन-किताब को उतना ही अच्छा है।
पद्मनाभ नगर, भोपाल
मनोरंजन हमारा हो, नहीं यह भावना स्वामी। मनोमंजन हमारा हो, यही है भावना स्वामी॥ रहे सुख शांति जीवन में, नहीं यह भावना स्वामी। नजीवन में असंयम हो, यही है भावना स्वामी॥
फले-फूले नहीं कोई, नहीं यह भावना स्वामी। सभी पर प्रेम हो उर में, यही है भावना स्वामी॥ दुःखों में आपको ध्याएँ, नहीं यह भावना स्वामी। कभी न आपको भूलें, यही है भावना स्वामी॥
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नवम्बर 2004 जिनभाषित
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