Book Title: Jinabhashita 2004 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ शिविर जो हृदय में इतिहास लिख गया । प्रतिदिन प्रातः७ बजे, दोपहर में ३ बजे एवं रात्रि में ८ बजे कक्षायें सिवनी : परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज लगाई जाती थीं। इन कक्षाओं के बाद प.पू.ऐलक श्री निश्चयसागर के परम् शुभाशीर्वाद से प.पू. मुनि श्री समतासागर जी महाराज | जी महाराज द्वारा शास्त्र की कुंजी एवं ज्ञानवर्धक ड्रा द्वारा ना एवं पू.ऐ. श्री निश्चयसागर जी महाराज के सान्निध्य एवं कुशल केवल शिविरार्थियों का स्वस्थ्य मनोरंजन किया जाता था बल्कि मार्गदर्शन में सम्यक ज्ञान एवं सम्यक संस्कारों की संवृद्धि हेतु एक | दिन भर का ज्ञानार्जन का पुन: अभ्यास तरोताजा हो जाता था। भव्य ज्ञान-विद्या शिक्षण शिविर दिनाँक १८ अक्टूबर से २७ | इस दौरान ही प्रतिदिन मुनि श्री समतासागर जी महाराज अक्टूबर तक दिगम्बर जैन धर्मशाला में आयोजित किया गया। द्वारा 'प्रेरणा प्रवचन माला' के अंतर्गत महत्वपूर्ण विषयों पर सारगर्भित इस शिविर में जबलपुर के ब्रम्हचारी भैया त्रिलोक जी, | प्रवचन दिया जाता था। शाम को होने वाली आचार्य भक्ति गुरुवंदना बंडा से ब्रम्हचारी भैया सनत जी, भोपाल से ब्रम्हचारी भैया | और आरती सभी की शारीरिक तथा मानसिक थकाव दूर कर देती महेन्द्र जी एवं भैया अनिल जी, प.रमेश चंद जी, जबलपुर से ही | थी। औगातीण जी भयापोटजी एवं गंजबासौदा से पंडा रमेशचंद परीक्षा एवं शिक्षा ग्रहण के समय प.पू. मुनि श्री एवं जी भारिल्ल आदि विद्वान आमंत्रित किये गये थे। इन सभी विद्वानों | ऐलक जी स्वयं बीच-बीच में कक्षाओं में जाकर ना केवल वहाँ ने धर्म की शिक्षा सहज-सरल रूप.में शिविरार्थियों को प्रदान की। | दी जा रही शिक्षण की जानकारी लेते थे बल्कि एक दो प्रश्न आचार्य श्री विद्यासागर जी के आज्ञानुवर्ति परम प्रभावक | पूछकर अथवा उनकी जानकारी देकर शिविरार्थियों का उत्साहवर्धन शिष्य मुनि श्री समतासागर जी महाराज एवं पू. ऐलक श्री निश्चयसागर | भा करते थे। लोग महाराज श्री का अपने कक्ष म पाकर हष स जी महाराज का सान्निध्य तो शिविरार्थी ही नहीं संपूर्ण समाज के | गद्गद् हो जाते थे। लिए चिरस्मरणीय रहेगा। उन्होंने अपनी सहज-सरल एवं सुबोध शिविर की अपार सफलता का आकलन इसी बात से हो भाषा में धर्म के गहन-गंभीर विषयों को जिस ढंग से प्रस्तुत किया | जाता है कि लगभग 1100 श्रावकों की समाज में 742 श्रावक, उससे सभी भाव-विभोर हो गये तथा शिविरार्थियों को पता भी जिनमें छोटे बच्चों से लेकर 85 साल के वृद्ध भी उत्साहपूर्वक नहीं लगा कि कैसे शिविर के 10 दिन बीत गये। 17 अक्टूबर को | शामिल हुए। वास्तव में मुनि श्री की धर्मवत्सलता का यह अपूर्व जब इस ज्ञान विद्या शिक्षण शिविर का दीप प्रज्जवलित हुआ था प्रभाव है कि समाज के श्रावकों ने शिविर के माध्यम से वह ज्ञान तब कोई भी नहीं जानता था कि इस शिविर से उठने वाली ज्ञान | प्राप्त किया है जो जन्म जन्मांतरों में उसके लिये न केवल हितकारी की किरणें उन्हें कुछ इस तरह से बाँधेगी कि शिविर समाप्ति का होगा बल्कि वह उसके लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा। उन्हें एहसास भी नहीं हो पायेगा। समाज ऐसे उपकारी गुरु के प्रति श्रद्धा से अभिभूत है तथा विनम्रता शिविरार्थियों के लिये वह दिन आ ही गया जब 10 दिन | से नतमस्तक है। के पश्चात 27 अक्टूबर को उनके द्वारा किये गये ज्ञानाभ्यास की कल्पद्रुम महामण्डल विधान का भव्य आयोजन परीक्षा लिखित में ली जानी थी। प्रातः ७:४५ पर प्रवचन हाल परम पूज्य निर्ग्रन्थाचार्य जिनशासन युग प्रणेता आचार्य श्री परीक्षार्थियों की उपस्थिति से खचाखच भरा था। सभी के चेहरे विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से उनकी परम शिष्या पर विद्यार्थी की भाँति भय तथा उत्साह स्पष्ट झलक रहा था। मुनि आर्यिका रत्न मृदुमति माता जी के ससंघ सान्निध्य में चौक बाजार संघ की उपस्थिति में 'जीवन हम आदर्श बनावें. अनशासन के भोपाल म.प्र. में स्थित दिगम्बर जैन चौबीसी मंदिर में विश्व प्राणी नियम निभावें' के सामूहिक स्वर-गान से प्रार्थना हुई। तत्पश्चात् मात्र की शांति हेतु १००८ श्री मजिनेन्द्र कल्पद्रुम महामण्डल का वर्षायोग समिति के कार्यकर्ताओं एवं शिक्षाविदों द्वारा प्रश्नपत्र भव्य आयोजन दिनांक १०.१०. २००४ से १८.१०.२००४ तक अनावृत कर विषय से संबंधित अध्यापकों को सौंप दिये गये। रखा गया है। यह विश्व शांति विधान श्री दि. जैन गुरुकुल मुनि श्री ने प्रश्नपत्रों की संक्षिप्त जानकारी दी। तत्पश्चात् शीघ्र ही मढ़िया जी जबलपुर के अधिष्ठाता बा.ब्र. श्री जिनेश भैयाजी के अध्यापकों द्वारा शिविर में भाग लेने वाले शिविरार्थियों को हल द्वारा सम्पन्न हुआ। इस विधान में सैकड़ों इन्द्र-इन्द्राणियों ने भाग करने हेतु प्रश्नपत्र दे दिये गये। लिया। दिनांक १८.१०.२००४ को जिनेन्द्र भगवान की भव्य शिविर में पहला भाग, दूसरा भाग, तीसरा भाग, चौथा | शोभा यात्रा एवं चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा निकाली गई। विधान भाग, छहढ़ाला एवं तत्वार्थसूत्र का सूक्ष्म अध्ययन कराया गया। | में भव्य समवशरण का निर्माण किया गया। 32 नवम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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