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काश्मीर की रोमांचक यात्रा का प्रसंग
जरूरत है जम्मू में दिगम्बर जैन मन्दिर स्थापना की
कैलाश मड़बैया हाल ही में काश्मीर यात्रा का सुयोग मिला, जम्मू में । जा रही है। चप्पे-चप्पे पर चहलकदमी करती तैनात फौज, नैसर्गिक हिन्दी दिवस के एक कवि सम्मेलन में भागीदारी करना थी इस | सौन्दर्य और शांति की पीड़ा और घनीभूत कर देते हैं। एक मूल बहाने काश्मीर-दर्शन का लोभ संवरण नहीं कर सका। हालाँकि जाति को तो यहाँ से लगभग खदेड़ ही दिया गया है। घाटी में लोगों ने बताया था कि धरती के इस स्वर्ग के दर्शन करने में, | बुमश्किल 50 घर हिन्दुओं के बचे होंगे, जैन तो 5-7 घर ही रहे स्वर्गवासी होने के खतरे कम हुए हैं पर समाप्त नहीं। मेरे बेटे ने तो | हैं, सिख भी सिमट चुके हैं। काश्मीरी पंडित कुछेक गाँव में स्पष्ट कह दिया था जाना तो हवाई जहाज से जाओ वरना नहीं। कदाचित मिल जाएँ पर अधिकांशत: तो जम्मू में विस्थापित हो खैर, किसी तरह जम्मू से जैट एयर वेज के विमान से श्रीनगर | चुके हैं। मुस्लिम भी बटे हुए हैं कतिपय कट्टरवादियों को छोड़ पहुँचा। श्रीनगर शहर के दर्शन कर यह भ्रम तो दूर हो गया कि | दें तो बहुतों को पाकिस्तानियों द्वारा काश्मीर देश का स्वतंत्र सपना यह धरती का स्वर्ग है पर डल झील और चश्मे शाही आदि | | दिखाया जा रहा है। परंतु बंगला देश बनने के बाद जो सोच उस कतिपय मुगल बगीचों का भ्रमण कर यहाँ की जल और वायु | छोटे देश के बारे में बन रहा है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सचमुच अद्भुत लगी, अद्वितीय कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं | के साथ लोकतंत्र जितना गहरे वहाँ दफनाया जा चुका है यह होगी। 8 किलो मीटर लंबी और 4 किलो मीटर चौड़ी विशाल | स्थिति देखते हुए उदार विचारों वाले कुछेक मुस्लिम भी भारत में डल झील के किनारों का पानी तो गंदा है पर सैकड़ों 'वोट | रहना श्रेयस्कर समझते हैं, पर शंका इतनी गहरी है कि कुछ भी हाउस' और अगणित तैरते शिकारों ने जल और धरती पर के | स्पष्ट नहीं होता। जातिगत संकीर्णता अधिक है। जम्मू घाटी से आवागमन का अंतर ही मिटा दिया है। वोट हाउस' के सुसज्जित | कट गया है। वह अपने को काश्मीर की कालोनी मानकर हीन कक्ष, बड़े-बड़े व्यापारिक शौ रूम और खान पान की व्यवस्थायें | भावना से ग्रस्त है। हिन्दी दिवस के कार्यक्रमों में भाग लेने आये चमत्कृत करती हैं। विवाह समारोह तक इन्हीं वोट घरों में हो जाते | वहाँ के बुद्धजीवियों ने कहा कि सेन्ट्रल से जो विकास के पैकेज हैं । कैफेटेरिया, चार चिनार, नेहरू पार्क, कबूतर खाना और हजरत | आते हैं वह घाटी में ही उपयोग हो जाते हैं। जम्मू को तो पांव को बल आदि स्थलों के दर्शन से इसकी उपयोगिता और बढ़ी है। जूती समझा जाता है। एक साहित्यक मित्र ने तो यहाँ तक कह संध्या को इनकी रोशनी की कतारें जल परियों सी तैरती झिलमिलाती | दिया कि बकरी, पाडा और गाय की यह विसंगत त्रिजोड़ी ज्यादा शोभायमान होती हैं। हालाँकि आतंकवादियों के खतरों में भी यहाँ | नहीं चलने की। लद्दाख, काश्मीर और जम्मू को जोड़कर एक रात्रि में विद्युत इन दिनों भी, घंटों के लिए गुल होना नहीं भूलती। साथ बनाए गये प्रांत की ओर उनका स्पष्ट संकेत था। कदाचित् होटलों में, गर्म कपड़ों और सूखे फलों की खरीददारी में सौदेबाजी यह भावना तब से घर कर गई है जब गत शासन ने यह चर्चा छेड़ (बार्गेनिंग) इतनी कि भलमनसाहत जवाब दे जाती है। यहाँ का | रखी थी कि जम्मू को हिमाचल से जोड़ा जा सकता है। परंतु यह प्रसिद्ध उत्पादन केशर इतने रूपों में यहाँ मिलता है कि पारखी भी | वास्तविक निदान नहीं होगा। काश्मीरी, ईरानी और रंगी घास वाली केशर में अंतर नहीं कर इतिहास के आईने में काश्मीर में हिन्दू राजाओं का ही पाते। सितम्बर का महीना था अत: चारों ओर धान के पीले खेत | राज्य रहा है। सन 1586 में अकबर ने यहाँ अधिकार जमाया था लहलहा रहे थे, केशर की क्यारियाँ तैयार की जा रही थीं। शीतल | बाद में 1819 में पंजाब केसरी रणजीत सिंह का राज्य हो गया जो मन्द सुगन्ध वायु पुलकित कर जाती और चिनार, चीड़, देवदारू | 1845 तक सिखों के अधीन रहा। अंग्रेजी सत्ता के बाद डोगरा के ऊँचे वक्ष तो ऊँचे पहाडों के बीच काश्मीर की पहचान ही हैं। महाराजा गुलाब सिंह ने 75 लाख रूपयों में अंग्रेजों से खरीद कर ऊँचे वृक्ष और ऊँचे नर नारी, स्वादिष्ट सेव और सेवों जैसे सुर्ख यह राज्य संभाला थे और लद्दाख आदि क्षेत्रों तक राज्य विस्तार कपोलों वाला यहाँ का सौन्दर्य स्वभावतः सादगी भरा है। अखरोट, | किया। गुलाब सिंहके पुत्र रणजीत सिंह और 1865 में प्रताप सिंह बादाम, खुरमानी, नाशपाती और आलू बुखारा आदि सूखे मेवों के | वहाँ राज्यासीन हुए उनके यहाँ कोई पुत्र नहीं था अत: उनकी लिए ख्यात काश्मीर की कालिकाओं का मादक सौन्दर्य सचमुच मृत्यु उपरांत सन् 1925 में भतीजे हरी सिंह यहाँ के राजा हुए। अनूठा है पर कुछ वर्षों से दो जातियों के बीच की खाईयाँ दोनों | 1947 में भारत में आजादी आई तो 22 अक्टूबर 1947 को देशों की राजनीति ने गहनतम प्रदूषित कर रखी है। फलतः एक पाकिस्तान के उकसावे पर हजारों कवालियों ने जम्मू काश्मीर पर अविश्वास, एक आशंका और एक गहरी दरार बराबर फैलती ही | आक्रमण कर दिया फलतः राजा हरिसिंह ने काश्मीर को भारत में
14 नवम्बर 2004 जिनभाषित
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