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का प्रयोग, सलाद, चोकर समेत आटे की रोटी और फल खूब लेने चाहिये। ये खाद्य इसलिए भी आवश्यक हैं कि गर्भावस्था में रक्त का अम्लत्व बहुत बढ़ जाता है और यह आहार अम्लत्व को रोकता । गर्भिणी का भोजन विशेष रूप से हल्का व सुपाच्य होना चाहिये ।
गर्भावस्था में शरीर का वचन आठ दस किलो तक बढ़ जाता है। यदि वजनअधिक बढ़ने लगे तो चर्वी और शर्करा जाति का आहार रोक देना चाहिये और नमक भी कम कर देना चाहिये । गर्भिणी को हर दिन काफी मात्रा में पानी पीना चाहिये। इससे । हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिये।
वीतराग देव शास्त्र गुरु की अष्टद्रव्य से पूजा करने में अतिशय पुण्य का बंध होना बताया गया है और आजकल जब हम पूजन सामग्री खरीदने बाजार में जाते हैं तब हमें कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह वस्तु पूर्व में उपयोग में लाई जा चुकी है, जैसे बादाम में चमक न होना, लवंग का फूल टूटा होना, नारियल पुराना हो जाना आदि-आदि। चूँकि पूजन के पूर्व इन वस्तुओं को प्रासुक जल से अनेक बार धो लिया जाता है अतः इनकी चमक आदि चली जाती है। ये अर्पित या चढ़ी हुई वस्तुयें ही निर्माल्य वस्तुयें कहलाती हैं। इसका दूसरा पक्ष यह है कि आजकल बाजार में पूजा की बादाम, पूजा की सुपारी (अर्थात छोटे आकार की) बिकने लगी है, एक बार चढ़ने के बाद जब वह पुनः बाजार में आयेगी, अर्चक या माली उसकी दूकान लगायेंगे तो निश्चत रूप से वह वस्तु पूजा के लिये ही बिकेगी, किसी खाद्य पदार्थ के रूप में नहीं ।
धार्मिक पूजाविधान में प्राय: यह मान्यता रही है कि पूजा के लिए चढ़ाई गई वस्तु को दुबारा न चढ़ाया जायें, क्योंकि चढ़ाई गई वस्तु उच्छिष्ट मान ली जाती है। लोभवश नैतिक गिरावट के कारण ये निर्माल्य वस्तुएँ पुन: विक्रय हेतु बाजार में आ जाती हैं और हम इन निर्माल्य वस्तुओं (सामग्री) का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से पूजन आदि क्रियाओं में करने लगते हैं एवं यह क्रम चलता रहता है। निर्माल्य सामग्री को अन्य जातियों में प्रसाद के रूप में तो ग्रहण किया जाता है, उसे प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है, परंतु उसे दुबारा पूजा के लिए चढ़ाना धार्मिक मान्यताओं के विपरीत है। निर्माल्य वस्तु के पुनः प्रयोग से पूजा की पवित्रता एवं शुद्धता बाधित होती है और धार्मिक आस्थाएँ, आहत होती हैं।
अप्रत्यक्ष रूप से निर्माल्य वस्तु का प्रयोग
1. चढ़ाई जाने वाली वस्तु का विक्रय कुछ निश्चित स्थानों से ही किया जाये, जैसे जैन समाज द्वारा निर्धारित समिति से। मंदिर समिति इन वस्तुओं को सीधे कारखाने से वर्ष भर के लिये (अनुमानित मात्रा में) एक साथ विक्रय हेतु मँगा सकती है एवं इनका क्रय लोग निश्चित स्थान जैसे समिति या जैन मंदिर से ही करें।
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पेसाव साफ होती है और गर्भिणी तथा उसके शरीर में स्थित शिशु के शरीर का समस्त विषाक्त पदार्थ सरलता से बाहर हो जाता है। अन्यथा यह विष शरीर में जमा होकर विभिन्न रोगों की सृष्टि कर सकता है।
प्रतिदिन दोपहर में भोजन के एक घंटा बाद कच्चे नारियल का पानी पीने से भोजन आसानी से पच जाता है। गर्भिणी के शरीर में आयोडीन की कमी से विकलांगता या मृत सन्तान पैदा होती है। इसके लिए उसे मक्खन, गाजर, हरा सेब और विभिन्न
नवम्बर 2004 जिनभाषित
4. दूसरे वर्ष के लिए चढ़ाई जाने वाली वस्तु समिति के निर्णय से बदल दी जाये और उसी वस्तु को दूसरे वर्ष भर तक चढ़ाया जाये। यह वस्तु चढ़ाये जाने की प्रक्रिया वार्षिक रूप से निरंतर बदलती रहे। उदाहरण स्वरूप प्रथम वर्ष में बादाम, द्वितीय वर्ष में सुपारी और तृतीय वर्ष में छोहारा (खारक) आदि। चतुर्थ वर्ष में पुनः बादाम का प्रयोग करते हुए यह त्रिवार्षिक क्रम जारी रह सकता है। इसके पीछे मंशा यह है कि प्राय: तीन वर्ष में पूर्व में चढ़ाई गई वस्तु खराब हो जायेगी और हम निर्माल्य वस्तु का पुनः प्रयोग हम रोक सकेंगे।
धार्मिक विधिविधान का आशय यदि आत्मिक शुद्धता है, तो वस्तु की शुद्धता भी उसका अनिवार्य अंग है। उसकी अशुद्धता से हम तभी बच सकते हैं, जब हम कुछ कठोर निर्णय लें और उसका कड़ाई से पालन करें। आज कल की नैतिक गिरावट के साथ-साथ यह बताना जरूरी हो गया है कि कम से कम निर्माल्य वस्तु का पुनः प्रयोग न हो और यह तभी संभव है जब हम शुद्ध हृदय से नियमों का पालन करेंगे और आत्मिक शुद्धता रखेंगे। इस लेख के लिखने में हमारा यह अभिप्राय कतई नहीं कि आप किसी भय से शुद्ध प्रासुक
इसे दूर करने के लिए कुछ प्रमुख सुझावों पर गंभीरता पूर्वक (अचित्त या सूखी ) द्रव्य चढ़ाना छोड़ दें, लेकिन और भी विवेक के विचार किया जा सकता है
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कार्ड पैलेस, (वर्णी कॉलोनी ) सागर
डॉ. सुधीर जैन
2. चढ़ाई जानेवाली वस्तु वर्ष भर के लिए एक साथ ही खरीद ली जाये। जिसके पास वर्ष भर के लिए साधन उपलब्ध न हों, वे अनिवार्यतः जैन मंदिर या समिति के माध्यम से ही क्रय करें।
3. जैन समिति द्वारा यह निर्धारित किया जाये कि अमुक वस्तु (बादाम, नारियल, खारक, सुपारी, इलायची, लवंगादि) ही किसी विशेष वर्ष भर चढ़ाई जाये, जिससे उस वस्तु को लोग वर्ष भर के लिए खरीद सकें। उससे उसकी शुद्धता बाधित नहीं होगी अर्थात् चढ़ाई गई वस्तु को दुबारा चढ़ाने का अवसर नहीं आयेगा ।
साथ अगर पूजा की जायेगी तो हम सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के भक्त बनकर अतिशय पुण्य का संपादन करते हुए संसार में सुखसम्पदा को पाते हुये मोक्ष संपदा को प्राप्त कर सकेंगे।
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प्राध्यापक भौतिकी
एफ १०८/३४, शिवाजीनगर
भोपाल
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