Book Title: Jinabhashita 2004 11
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ लग सकता है। रोड पर चलने वाली गाड़ियों का अपना आत्मानुशासन देखकर तो मैं दंग ही रह गया। वहाँ किसी भी चौराहे पर ट्राफिक पुलिस या अन्य कोई पुलिस दिखाई नहीं देती है। वाहन चालक स्वयं अपनी गाड़ी को ट्राफिक नियमों का पालन करते हुए ही चलाते हैं। 25 दिन में गाड़ी का हार्न सुनने के लिए तो मेरे कान मानों तरस ही गये। किसी भी तरह का ध्वनि प्रदूषण वहाँ नहीं होता है। लोगों में वहाँ छल कपट ईर्ष्याभाव या वंचन की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत बहुत कम है। वहाँ लोग परस्पर भी बहुत ही मधुर व्यवहार रखते हैं तथा बिल्कुल अपरिचित व्यक्ति से भी प्रेम पूर्वक बात करते हैं। जब मैं भारत से टोरन्टो जा रहा था तब कुर्ता पायजामा पहने हुए मैंने प्लेन में जब अपना टिफिन निकाला और भोजन से पूर्व पंचपरमेष्ठी का स्मरणात्मक कायोत्सर्ग किया तो पास में ही बैठे किसी ब्रिटिश ने आश्चर्य चकित हो गौर से देखते हुए पूछाआर यू इंडियन ? तब मैंने कहा यस आई एम इंडियन्स जैन प्रभावित होकर भोजन के बाद में फिर उसने कई बातें भगवान महावीर से संबंधित पूछी। संस्थान से छात्रों की गतिविधियों की एक डी.वी.डी. बनवाकर वहाँ ले गया था। एक दिन जब सबको एक बड़ी स्क्रीन पर छात्रावास के कार्यक्रमों को दिखाया तो लोग दांतों तले उंगली दबाते रह गये । उन्हें आश्चर्य हुआ कि आज भी इतनी सुंदर व्यवस्थाओं को देने वाला कोई छात्रावास सांगानेर में है। जब मैं वहाँ पहुँचा तो लोगों ने कहा कि इस बार तो बहुत छोटे विद्वान आये हैं। तब मैंने उनसे कहा कि मैं तो अपने संस्थान के वरिष्ठ व्याख्याताओं में से एक हूँ। मेरे से कई छोटे-छोटे छात्र विद्वान सम्पूर्ण भारत वर्ष में धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं। आज हमारा लक्ष्य किसी जैनतर को जैन बनाना नहीं है अपितु जैनों को ही याद दिलाना है कि आप और हम जैन हैं। वहाँ पर कई लोगों ने अपनी भावना भी जताई है कि हम आपके वहाँ दो या तीन महीने के लिए आकर स्वाध्याय एवं ध्यान करना सीखेंगे। भारत वापस आते समय दो बड़े सूटकेस तो वहीं टोरन्टो में जमा कर लिए गये। एक मात्र हेण्डबेग को साथ में रखने की अनुमति उन्होंने दी। जमा करते हुए कहा कि सामान आपको नई दिल्ली एयरपोर्ट पर मिल जाएगा। मैं निश्चिन्त होकर जो लोग छोड़ने आये थे उनसे विदाई लेकर यात्रा के लिए हवाईजहाज में बैठ गया मेरी फ्लाइट टोरन्टो से वियाना और वियाना से नई दिल्ली के लिए थी। नई दिल्ली में इमिग्रेशन के बाद जब मैं अपने दो सूटकेस लेने पहुँचा तो मालूम पड़ा कि सूटकेस तो आये ही नहीं। 20 नवम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International मन में चिन्ता सी होने लगी यात्रा का पूरा आनंद मायूसी में बदल गया। पूछताछ से जानकारी प्राप्तकर मैंने वहाँ रिपोर्ट लिखवाई उनको सांगानेर का पूरा पता लिखकर दिया। उदास ही छात्रावास लौटा दूसरे दिन दिल्ली एयरपोर्ट से फोन आया कि आपका सामान वियाना से दूसरी फ्लाईट में दिल्ली आ गया है और हम सांगानेर आपको देने दिल्ली से आ रहें हैं। तब जाकर मन को शांति हुई। और वर्तमान में अभी भी ईमानदारी जीवित है, जानकर मन प्रसन्नचित हो गया। अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ कि वहाँ का प्रत्येक नागरिक देश को उन्नत बनाने के लिए एवं अपने नगर और परिसर को स्वच्छ एवं सुंदर बनाये रखने के लिए स्वयं दृढ़ संकल्प है। इसके विपरीत जब मैं भारत उतरकर दिल्ली धोलाकुंआँ से जयपुर के लिए रात दो ढाई बजे सरकारी रोडवेज में बैठा तो देखा कि मेरी आगे वाली सीट पर बैठा हुआ एक व्यक्ति धूम्रपान कर रहा था। परिचालक ने उसे एक बार मना करके अपनी औपचारिकता पूरी कर ली। परंतु मेरे पास में बैठे हुए किसी एक शिक्षित व्यक्ति ने उसे बस में लिखे हुए साइन बोर्ड को दिखाते हुए धूम्रपान नहीं करने के लिए समझाया तो वह व्यक्ति उससे लड़ पड़ा और कहने लगा मैं देहरादून से सिगरेट पीता आ रहा हूँ किसी ने मना नहीं किया तुम कौन होते हो मुझे टोकने वाले? तुम्हें तकलीफ है तो पीछे जाकर बैठ जाओ यात्रा की थकान से गहरी नींद में सोया था तब तक मेरी नींद भी खुल चुकी थी और मुझे एहसास होने लगा था कि मैं वापस भारत आ गया दोनों लोगों को प्रेम से समझाया और झगड़ा शांत कराया। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि 25 दिन विदेश की हवा लगने के बाद मेरा मन एवं चिंतन प्रणाली विदेशी संस्कृति परक हो गयी हो और अपने देश भारत के प्रति हीनता और लघुता प्रदर्शित सी हो रही हो। आज मैं यह गौरव के साथ कहता हूँ कि जितनी पवित्रता और मर्यादा हमारी अपनी संस्कृति में है वह और कहीं नहीं। सुबह उठकर जो मंदिरों के घण्टों की ध्वनियाँ या जुबान पर भगवान का नाम होता है वैसा एक अदृश्य भगवान के प्रति श्रद्धा और समर्पण कहीं नहीं है। पारिवारिक संबंधों में जो संवेदनायें हैं एवं विश्वास हमारे देश में है वैसा और कहीं नहीं । परंतु फिर भी 'गुण ग्रहण का भाव रहे नित' इस दृष्टि से यदि ऐसा देश एवं राष्ट्र के प्रति हम सबकी श्रद्धा और समर्पण रहे तो मैं समझता हूँ हम 2020 से पहले ही विकसित देशों की पंक्ति में आ जायेंगे। For Private & Personal Use Only संस्कृत व्याख्याता श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर (जयपुर) राजस्थान www.jainelibrary.org

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