Book Title: Jinabhashita 2004 11 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ पूछे कि क्या जैन संस्कृति और तीर्थों की रक्षा करना उनके एजेण्डे । इस हेतु शुल्क मांगें तो न दें। और अगर आक्रोश दिखायें तो में नहीं है? जमकर मुकाबला करें। 2. यदि है तो वे मौन क्यों हैं? तथा राम, कृष्ण जन्मभूमि 6. इस बात की रिपोर्ट तालुका पुलिस चौकी जूनागढ़ में की तरह जैन संस्कृति पर हमले पर बौखलाते क्यों नहीं हैं? | दें तथा एफ.आई.आर. जरूर दर्ज करायें। इसमें बंडी धर्मशाला के 3. ऐसा एक भी दिन खाली नहीं जाना चाहिए जब मैनेजर सुनीलकुमार पूरा सहयोग देते हैं। बंडी धर्मशाला की गिरनार पर्वत की पाँचवीं टोंक की यात्रा जैन यात्री न करें। सौ, | शिकायत पुस्तिका में अपनी शिकायत जरूर लिखायें। पाँच सौ की संख्या में जायें और पूरे रास्ते एक जुट रहें और | 7. संपन्न लोग गिरनार यात्रायें आयोजित करें। बसों में नेमिनाथ का जयकारा लगाते हुये जायें। बडी धर्मशाला से 'गिरनार | भर-भर कर यात्रियों को नि:शुल्क यात्रायें करायें। गौरव' पुस्तक खरीदकर, पढ़कर जायें। 8. पूरे देश में रैलियाँ, अनशन, उपवास आयोजित करें। 4. रास्ते में किसी से व्यर्थ की बहस न करें, किसी को | इस घटना का पुरजोर विरोध करें और अपने हक की माँग करें। गाली, अपशब्द या ऐसे वचन न कहें, जिससे वहाँ पूजित देवी | 9. आपका एक छोटा सा योगदान और साहस पूरी काया देवताओं का अपमान हो। पलट सकता है। याद रखें - 5. फोटो कैमरे, वीडियो कैमरे, साथ लेकर जायें। पाँचवीं यदि अब भी न जागे तो मिट जायेंगे खुद ही। टोंक पर दत्तात्रेय महाराज की मूर्ति को बिना छुये वहाँ नीचे स्थित दास्ताँ एक भी न होगी हमारी दास्तानों में। नेमिनाथ भगवान के चरणों पर, चढ़े फूलों को विनम्रता से हटायें, व्याख्याता एवं जैनदर्शन विभागाध्यक्ष अर्घ बोलकर चावल चढ़ायें। फिर पीछे स्थित भगवान नेमिनाथ श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ की मूर्ति के समक्ष अर्घ चढ़ायें। भजन, पूजन, पाठ करें। पंडा यदि (मानित विश्वविद्यालय) कुतब सांस्थानिक क्षेत्र, नई दिल्ली - ११००१६ वीरायन प्रवचनमाला का शभारभ __ सिवनी (म.प्र.) 5 नवम्बर 2004 दि.जैन धर्मशाला सिवनी में निरंतर धर्म की अमृतधारा । समतासागर जी की समता देखकर मैं बहुत ही प्रभावित हूँ। प्रवाहित करने वाले दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज | प्रवचनकला में पारंगत मुनिश्री जब धाराप्रवाह ज्ञान की गंगा के परम प्रभावक तत्त्वचिंतक, युवामनीषी मुनि श्री समतासागर | बहाते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है मानो साक्षात् सरस्वती उनके जी महाराज द्वारा भगवान महावीर के जीवनवृत्त पर प्रकाश कंठ में विराजमान हो गई हो। ऐलक श्री निश्चयसागर जी डालने हेतु 'वीरायन प्रवचन माला श्रृंखला' आज यहाँ प्रारंभ | महाराज की सहज साधना और प्रसन्न मुद्रा की आपने अपने की गई। उद्बोधन में अत्यधिक सराहना की। प्रवचन श्रृंखला का शुभारंभ बरकतउल्ला विश्वविद्यालय ज्ञातव्य है कि पण्डित जी स्वयं संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड भोपाल में अनेक वर्षों तक संस्कृत विभाग के प्रमुख पद को | विद्वान हैं एवं वर्तमान में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सुशोभित करनेवाले संस्कृत के उद्भट विद्वान पंडित श्री रतनचन्द्र आशीर्वाद से प्रतिभा मण्डल की ब्रह्मचारिणी बहिनों को संस्कृत जी के शुभहस्ते भगवान महावीर के चित्र के सम्मुख दीप का अध्ययन करा रहे हैं । मुनिश्री द्वारा चातुर्मास के दौरान जितने प्रज्वलन द्वारा हुआ। भी धार्मिक कार्य, पूजा विधि-विधान प्रवचन श्रृंखलायें एवं अपने शुभारंभ उद्बोधन में आदरणीय पंडित जी ने | शिक्षिण शिविर आयोजित किये गये, उन सभी की जानकारी कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे महाश्रमण महावीर के चातुर्मास वर्षायोग समिति द्वारा पंडित जी को प्रदान की गई। चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन का सुअवसर प्राप्त हुआ। भगवान पडत जी ने रुचिपूर्वक जानकारी लेते हुये प्रसन्नता व्यक्त की। महावीर ने अपने चरित्र से समस्त जगत को प्रकाशित कर मुनिश्री के प्रवचन के पश्चात् आदरणीय पंडित जी के दिया। मुनिश्री के द्वारा 'वीरायन प्रवचन माला' के माध्यम से कर कमलों से 'ज्ञान विद्या शिक्षण शिविर' में भाग लेने वाले वह ज्ञान आपको प्राप्त होगा, जो भगवान महावीर को और भी शिविरार्थियों को प्रतीक स्वरूप प्रमाण पत्र वितरित किये गये। आपके करीब लायेगा। मुनिश्री के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते | अंत में पंडित जी का सम्मान तिलक लगाकर शाल एवं श्रीफल हुये धर्मनिष्ठ पंडित जी ने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर जी । तथा 'ज्ञान विद्या शिक्षण शिविर' का स्मृति चिन्ह देकर, चातुर्मास महाराज ने अपने इन प्रिय शिष्य का नाम समतासागर बहुत ही कमेटी के संयोजक डॉ.डी.सी.जैन द्वारा किया गया। सोच विचार कर रखा है वास्तव में यथानाम तथा गुणवाले प्रेषक - राजेश बागड़, सिवनी, (म.प्र.) - नवम्बर 2004 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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