Book Title: Jinabhashita 2004 11 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ (सम्पादकीय साधुओं का शिथिलाचार अभी दि. ७-११-०४ को "आज तक " टी.वी.चैनल ने जुर्म विषय के अंतर्गत दिगम्बर आचार्य श्री विरागसागर जी के जर्म को प्रदर्शित किया था। उन पर व्यभिचार का दोषारोपण किया गया और उसकी पुष्टि में दो आर्यिकाओं, एक श्रावक और एक ब्रह्मचारी के बयान कराए गये। एक दिगम्बर जैन आचार्य पर अपने ही संघ की अपने ही द्वारा दीक्षित आर्यिकाओं द्वारा स्पष्ट शब्दों में व्यभिचार एवं गर्भपात के आरोप लगाये जाना एवं उनका 'जुर्म' शीर्षक के अंतर्गत सार्वजनिक प्रदर्शन दिगम्बर जैन साधु संस्था का ही नहीं, दिगम्बर जैन समाज का भी घोरतम अपवाद है। ऐसी घटनाएँ तो गत वर्षों में और भी घटी हैं, किन्तु उनकी चर्चा दिगम्बर जैन समाज तक ही सीमित रही है। एक आचार्य सन्मतिसागर जी की घटना देश-विदेश के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी। तब भी हमने अत्यंत पीड़ा का अनुभव किया था, किन्तु अभी आचार्य विरागसागर जी की घटना का टी.वी. पर प्रदर्शन व्यापक होने और गर्हित रूप में होने के कारण अधिक पीड़ाकारक है। ऐसा कौन धार्मिक श्रद्धालु व्यक्ति होगा जिसका हृदय अपने महान् जैनधर्म की ऐसी घोर कुप्रभावना से तिलमिला न गया हो। परमेष्ठी पद पर स्थित साधुओं के आचरण का ऐसा अध:पतन सत्य हो या न हो, परंतु उसका ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन हमारे लिए सर्वाधिक पीड़ा का विषय है। हमारे गुरुओं की और हमारे धर्म की कुप्रभावना का यह महान संकट हमें चिंता के साथ-साथ गहन चिंतन की भी प्रेरणा देता है। टी.वी. का यह दण्डनीय प्रदर्शन सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के माथे पर कलंक का टीका है। हम उस टी.वी. वाले पर सम्भवतया कानूनन कोई कार्यवाही नहीं कर सकेंगे। जब दो आर्यिकाएँ पीड़िताओं के रूप में स्वयं आचार्य जी के विरुद्ध जुर्म की घोषणा कर रही हैं, तो टी.वी. वाले का प्रदर्शन किसी अनुचित एवं अवैधानिक कृत्य की श्रेणी में नहीं आता है। यदि हम गहराई से सोचें, तो दिगम्बर जैनधर्म की इस घोर कुप्रभावना के कारण हम स्वयं हैं । दिगम्बर जैन साधु के लिए हमारे शास्त्रों में स्थापित आचारसंहिता का अनेक आचार्य एवं साधुओं के द्वारा दण्डनीय रूप में उल्लंघन किया गया है और हम उसका विरोध नहीं करके उसको प्रोत्साहित करने का अपराध करते हैं। आचार्य सन्मतिसागर प्रकरण में भी लीपापोती की गई। अभी आसाम में आ.दयासागर जी के शिथिलाचरण के विरुद्ध गौहाटी समाज ने आवाज उठाई, तो समाज के कुछ नेतागण उस शिथिलाचरण की सुरक्षा के लिए ढाल बनकर खड़े हो गए। आज अनेक संघों में मुनि, आर्यिका, ब्रह्मचारिणियाँ साथ रहती हैं। एक ही स्थान पर ठहरती हैं। कहीं-कहीं तो एक मुनि और एक आर्यिका साथ रहते हैं। इसके साथ-साथ पारस्परिक आचार व्यवहार के सारे निर्दिष्ट बंधनों को तोड़कर उच्छृखल, स्वछंद व्यवहार से डर नहीं रह गया है। संध्या काल के बाद मुनियों के निवास पर महिलाओं का आवागमन निषिद्ध रहना चाहिये, किन्तु हमें यह देखकर भारी पीड़ा होती है कि मुनि रात्रि को कविसम्मेलन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गरबानृत्य, जिनमें महिलाएँ भाग लेती हैं, बैठकर देखते हैं। रात्रि में महिलाओं से वार्ता करते हैं। विडम्बना यह है कि मुनियों के शिथिल आचरण की चर्चा करने वालों को मुनिनिंदक घोषित कर उनकी उपेक्षा की जाती है। अब तो साधुओं में बढ़ रहे शिथिलाचार के लिए शिथिलाचार शब्द भी बौना हो गया है। उसको हम दुराचार कहें तो अनुचित नहीं होगा। - यदि अब भी हम नहीं चेतेंगे तो टी.वी. और समाचार पत्रों में दिगम्बर जैन साधुओं के चरित्रदोष की घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी। काश यह "आज तक " टी.वी. के प्रदर्शन की घटना हमारी आँखें खोल सके और हम अपने परमेष्ठी जैसे भगवान के समान पद पर प्रतिष्ठित हमारे साधुओं की गरिमा को इस प्रकार मिट्टी में मिलने से रोकने के अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग हों और संगठित होकर मुनि महाराजों को विनयपूर्वक आगमानुकूल आचार संहिता की परिपालना के लिए निवेदन करें और जानबूझकर स्वार्थ साधना के कारण कोई साधु उनकी पालना नहीं करे, तो हम कठोरतापूर्वक उनके विरुद्ध उचित कदम उठाएँ। प्रेस एवं प्लेटफार्म के माध्यम से जागृति उत्पन्न करें कि धर्म का स्वरूप अंधभक्ति से मुक्त होकर समीचीनता की परिक्षा करके ही देवशास्त्रगुरु की उपासना-भक्ति करनी है। दि.जैन समाज की अखिल भारतीय प्रतिनिधि संस्थाओं से निवेदन है कि कुप्रभावना को रोकने के बिन्दु पर वे सब संगठित होकर समय रहते धर्म प्रभावना के अपने दायित्व का निर्वाह करने के प्रति जागरूक हों। मूलचन्द लुहाड़िया लुहाड़िया सदन जयपुर रोड, मदनगंज-किशनगढ़ (अजमेर) - ३०५८०१ (राज.) 2 नवम्बर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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