Book Title: Jinabhashita 2003 12 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 8
________________ संसार की समस्याओं का निदान : अहिंसा, संयम और तप श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं त्रयगजरथ महोत्सव, भाग्योदय तीर्थ, सागर म.प्र. २१ फरवरी २००३ को पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद साध्वी उमाभारती (वर्तमान मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश) के उद्बोधन का संपादित अंश जब मैं राजनीति में नहीं थी तब इनसे पहली बार मिलने । और सोच रहा है, बाणी में कुछ और बोल रहा है और कर्म से के लिए गई थी और तब से लेकर आज तक जहाँ भी आचार्य श्री | कुछ और कर रहा है। ये तीनों ही सुर बिगड़े हुए हैं। ऐसे बिगड़े होते हैं, मैं कोशिश करती हूँ कि दो घड़ी के लिए अनके दर्शन | हुए सुरों के लोग करोड़ों की संख्या में भूमण्डल पर विचरण कर करने जरुर जाऊँ। और यदि बताऊँ कि इसके पीछे मेरी राजनीतिक | रहे हैं, ऐसे समय में ये धरती अगर पाताल में नहीं जा रही है और आकांक्षा कभी नहीं होती, ये उनको भी मालूम है। राजनीति तो कलिकाल का भयानक विस्फोट अगर नहीं हो रहा है तो उसका जनता जनार्दन की कृपा से चलती है, महाराज श्री की कृपा से तो कारण एक मात्र है कि महाराज श्री जैसे लोग अभी इस धरती पर हम भगवत प्राप्ति का मार्ग खोजने के लिए आते हैं और इसलिए | मौजूद हैं। और इसलिए मैंने तो अपनी जिंदगी का भार ही उन पर यदि चित्त में अवसाद हो तो मैं महाराज श्री का ही स्मरण करती सौंप रखा है। और में आपको बताऊँ मेरे जीवन के कुछ मंत्र हैं, हूँ। .... अगर मैं लड़ती हूँ तो महाराज श्री से ही लड़ती हूँ, ये । | खास तौर पर मुझे जो जिम्मेदारी अभी तक मिली है तो उसके तीन उनको पता है। ऐसा कई बार हुआ है जब उनसे लड़ने पहुँच गई | मंत्र बनाए हैं और मैं उन्हीं पर चल रही हूँ- निर्विकार, निष्काम और मैंने उनसे अपने मन की बात रखी मैं उन्हें कुछ जिम्मेदारी और निर्भय। मैं किसी से विकार नहीं रखूगी, कोई कामना नहीं सौंप कर आई थी कि आपकी जिम्मेदारी है कि मेरी समस्या का रखंगी और किसी से भयभीत नहीं होऊंगी। लेकिन इन तीनों मंत्रों निदान होना चाहिए। मैंने कभी राजनीतिक समस्या उनके सामने | के पीछे कोई शक्ति प्राप्त होती है मुझे, तो आप विश्वास करिए वह नहीं रखी, साधना से संबंधित समस्या ही उनके सामने रखी है। | महाराज श्री ही हैं। मैं महाराज श्री की चमचागिरी नहीं कर रही हूँ इसलिए महाराज श्री को मैं एक सामान्य पंचतत्वों से भरे हुए | क्योंकि मुझे महाराज श्री की चमचागिरी करने की बिल्कुल जरुरत शरीर के अन्दर विचरण करने वाली चेतना के रूप में नहीं देखती नहीं है। मैं उनके स्नेह की पात्र हूँ। मैं हृदय की बात कह रही हूँ हूँ। इसलिए मैं इनको एक राष्ट्रीय संत नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय | कि मैं कभी किसी से भी भयभीत नहीं होती हूँ, लेकिन अगर मुझे स्तर की विभूति मानती हूँ। और उनको राष्ट्रीय संत की पदवी से किसी से डर लगता है और किसी के सामने दिल खोलकर बात बाँध देने से वह एक देश की सीमाओं में बँध जायेंगे। वह एक | कहती हूँ तो महाराज श्री के सामने ही कहती हूँ। देश की सीमाओं बँधने के योग्य व्यक्ति नहीं हैं। महाराजश्री के दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ, मुनिजनों आज संसार की सारी समस्याओं का निदान जो है वह | के दर्शन प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ, ये साधारण बात नहीं अहिंसा, संयम और तप के अलावा कुछ भी नहीं है। इसलिए | है। आप लोग जो देख रहे हो वो साधारण नहीं है। बिना वस्त्र के अहिंसा, संयम और तप की जीवंत प्रतिमा यदि आज इस भूमण्डल | रहना, भोजन नहीं के बराबर होना, फिर भी आँखों में इतनी पर कोई विचरण कर रही है तो वह सिर्फ आचार्य विद्यासागर चमक और चेहरे पर इतनी प्रसन्नता है। मैंने महाराज श्री से कई महाराज ही हैं। इसलिए मैं लोगों से कहती हूँ कि बद्रीनाथ, बार पूछा है कि मुझे ये भेद बताओ कि अन्तर्मुख क्या चीज केदारनाथ जाने में कठिनाई होती है, बहुत चढ़ाईयाँ चढ़ना पड़ती आपको मिल गई है कि संसार के सारे के सारे आनंद फीके पड़ हैं। केदारनाथ जब जाते हैं तो वहाँ आक्सीजन की बहुत कमी | गये हैं। वह क्या चीज है जो आप अन्तर्मुखी हैं, क्योंकि कोई तो होती है अत: वहाँ बहुत कठिनाई होती है। मैं वहाँ जाकर रही हूँ | चीज आपको मिलती ही होगी। जब १०० रुपया मिलेगा तो एक महीने, डेढ महीने । मुझे पता है कि वह कितनी बड़ी तपस्या है। | रूपया अपने आप छूट जाएगा। १रूपया मिलेगा तो दस पैसा लेकिन मैं आपको यह बतलाती हूँ भले ही आप तिरुपति बालाजी | अपने आप छूट जाएगा। उन्हें अंदर किसी परमानंद की प्राप्ति हो जायें, द्वारकाधीश जायें, बद्रीनाथ जायें, केदारनाथ जायें लेकिन | गई है। इसलिए तो जगत के सारे आनंद हैं, वे छूट गये हैं। अतः जब महाराज जी को देखती हूँ तो लगता है सारे देवता उनके वह अंदर क्या चीज है जो उन्हें मिल गई है? मैं आपसे भी अन्दर आ गये हैं। अनुरोध करुंगी कि आप जब महाराजश्री के पास आते हैं तो पैसे आज व्यक्ति के मन, वचन और कर्म में संगति नहीं रही। | के लिए मत आइए। आप किसी अन्य आकांक्षा से भी मत आइये। वह मन में क्या सोच रहा है, वाणी से क्या बोल रहा है और कर्म | आप उनसे वो वस्तु तलाशने के लिये आइये जो उनको अन्दर से क्या कर रहा है- तीनों के सुर बिगड़े हुए हैं। यह मन में कुछ । मिल गई है और जिसके कारण संसार के सारे आनन्द उनसे कब 6 दिसम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36