Book Title: Jinabhashita 2003 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ 'संस्कार कवच आवश्यक है' माटी खाती है पद प्रहार, वन पंक कहीं पर सड़ती है, पा कुम्भकार से संस्कार, मंगल घट हो सिर चढती है। नर जीव रतन चिन्तामणि है, इसे संस्कार की आभा दो, वृष बीज को बो सींचो प्रतिफल, वट वृक्ष वरद शुचि शोभा दो । वैसे ही मानव दीन दलित, मूरख पड जीव कहाता है, पशुवत भय क्षुधा कष्ट सहकर, निद्रा मैथुन को करता है । शिक्षा संस्कार के बीज बपो, नर सन्त, भक्त या शूर बने, वह राष्ट्र भक्त या धर्म सन्त, अथवा बलिदानी वीर बने । यदि बीज पड़ा हो डिब्बी में क्या कभी वृक्ष बन पायेगा, मानव जीवन संस्कार बिना, वंजर सा रह मर जायेगा ॥ महा पुरुष जन्म से कहाँ महा, संस्कार से सदा बड़े होते, अर्जुन न द्रोण सा गुरु पाते, क्या वीर धनुर्धर बन जाते । Jain Education International हीरा की कनी छिपी माटी, उसे ढूढ जौहरी लेता है, सत संस्कार की चोटों से, आभामण्डित कर देता है। मानव भी बिना संघर्ष किये, क्या कभी महान बना करते, यदि राम न जंगल को जाते, पुरुषोत्तम राम न बन सकते । डॉ. विमला जैन 'विमल' सरिता में कंकर बहुत वहे, वे संघर्षों में पलते हैं, एक दिन ऐसा भी आता है, वे महादेव बन पुजते हैं। पर संघर्षों से लड़ने को संस्कार कवच आवश्यक है, नैतिक शिक्षा आध्यामिक बल, विकसित होना आवश्यक है। सीता अग्नि से डर जाती, क्या पावक नीर बना होता, जिसने संघर्ष किये हंसकर, वह नर नारायण भी होता । बचपन की कच्ची माटी पर गुरु कुम्भकार कर पड़ते हों, त्रुटि पाप के कंकर बीन बीन, मृदु माटी कलश सुगढते हों । " नारी तैयार स्व रक्षा को संस्कार प्रबल पाने होंगे, निर्बल तन भावुक मन बच के संस्कार सुदृढ करने होंगे। नर मंगल जीवन मंगल घट, यदि मंगल दायक करना हो, तो संस्कार शुचि शिक्षा दो, वृष वतन 'विमल' यदि करना हो । 1 / 344, सुहाग नगर फिरोजाबाद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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