Book Title: Jinabhashita 2003 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 28
________________ परिचय श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर (म.प्र.) gradaste यह श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल के नाम से विख्यात है।। आवास, भोजन, औषधि व शिक्षा आदि की समुचित सुविधा गुरुकुल के उदयकाल में महान् शिक्षाविद् महासन्त प्रातः स्मरणीय प्रदान की जाती है तथा छात्र लौकिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी ने अपने जीवन काल में देश | शिक्षा भी ग्रहण करते हैं। छात्रावास के संयोजक ब्र. पवन में अनेक शिक्षा संस्थाओं का शुभारंभ कराया। सिद्धान्तरत्न व सुरेन्द्र जी 'सरस' दर्शनाचार्य हैं। उनका मानना था कि देश की प्रगति शिक्षा से ही संभव इसी कड़ी में जुलाई २००० से गुरुकुल परिसर में श्री वर्णी है। इसी कड़ी में महाकौशल क्षेत्र की संस्कारधानी जबलपुर में | दि. जैन उच्चतर माध्यमिक शाला व शिशुओं के लिये अंग्रेजी आध्यात्मिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु सन् १९४६ में उन्होंने माध्यम का शिशु मंदिर प्रारम्भ किया गया है। वर्तमान में यहाँ पिसनहारी मढ़िया क्षेत्र में गुरुकुल की स्थापना की। प्रारम्भ में श्री लगभग १५ ब्रह्मचारी भाई व ७० छात्र आवासित होकर शिक्षा वर्णी जी स्वयं इसके अधिष्ठाता रहे उसके पश्चात् श्री पं. देवकीनन्दन ग्रहण कर रहे हैं। जी, पं. जगन्मोहनलाल जी शास्त्री एवं पं. मोहनलाल जी शास्त्री इन सभी के सुचारु रूप से संचालन में गुरुकुल के आवासित आदि श्रेष्ठतम विद्वान् यहाँ के अधिष्ठाता रहे। सुप्रसिद्ध साहित्य ब्रह्मचारी विद्वान् भाईयों का मार्गदर्शन व समर्पण उलेखनीय है। मनीषी डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य सन् १९८६ से फरवरी जिनमें प्रमुख हैं : श्री ब्र. राकेश जी, ब्र. प्रदीप जी 'पीयूष', त्रिलोक जी, महेश जी विधानाचार्य, कमल जी, नरेश जी, अनिल जी, राजेन्द्र जी, विनोद जी (भिण्ड), विनोद जी (सागर), रवीन्द्र जी, पुष्पेन्द्र जी, चक्रेश जी, महेन्द्र जी व ब्र. दीपक जी। जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सन् १९९७ में यहाँ एक विशाल साहित्य केन्द्र की स्थापना की गई। जिसके द्वारा अल्प अवधि में ही लगभग ८० ग्रन्थों का प्रकाशन ब्र. प्रदीप जी 'पीयूष' के संयोजकत्व में किया जा चुका है। यहाँ प्राचीन व नवीन सभी प्रकार का श्रेष्ठतम जैन साहित्य सुगमता से उपलब्ध होता है। स्व. डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की स्मृति में पुस्तकालय का शुभारंभ किया गया है। २००१ तक यहाँ के अधिष्ठाता रहे उनके समाधिस्थ होने के उपरान्त यह उल्लेखनीय है कि इस गुरुकुल में साधु सन्तों के इस परंपरा का निर्वहन युवा ब्र. जिनेश जी प्रतिष्ठाचार्य कर रहे हैं। आवागमन/चातुर्मास आदि समय-समय पर हुआ करते हैं। इन इस तरह देश के ख्यातिप्राप्त शिक्षकों की सेवायें इस गुरुकुल को पावन प्रसंगों पर जैन आगमवाचनायें और शिक्षण शिविर आदि मिलीं। प्रारंभ से यहाँ विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा के साथ | संचालित हुआ करते हैं। संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी लौकिक शिक्षा भी दी जाती रही है। महाराज के विशाल संघ के चातुर्मास सन् १९८४ व १९८८ में सन् १९८६ में आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज | गुरुकुल परिसर में संपन्न हुए। आचार्य श्री विद्यासागर जी के के परम आशीष से गुरुकुल को नई चेतना प्राप्त हुई। अब यहाँ ससंघ सान्निध्य में ही सन् १९८१ व १९८८ में गौरवशाली विशाल ब्रह्मचारी भाइयों को आवासित कराकर धार्मिक शिक्षा प्रदान की | सिद्धान्त वाचना शिविर आयोजित हुए। आचार्य श्री के प्रभावक जाने लगी। यहाँ के विद्यार्थी ब्रह्मचारीगण विशारद्, शास्त्री, सिद्धान्तरत्न व आचार्य परीक्षा उत्तीर्ण कर सारे देश में विद्वत्ता का प्रकाश विखेर रहे हैं। आत्म साधना हेतु श्री १००८ भगवान् महावीर जिनालय गुरुकुल परिसर में स्थित है। शिक्षा के विस्तार की श्रृंखला में सन् १९९९ में जबलपुर के समीपवर्ती क्षेत्रों के प्रतिभावान् छात्रों को धार्मिक संस्कारों के साथ शिक्षा की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिये गुरुकुल भवन में ही एक वृहद् छात्रावास प्रारंभ किया। जहाँ छात्रों को 26 दिसम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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