Book Title: Jinabhashita 2003 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 32
________________ शोक संदेश पढ़ा। श्री बी.सी.जैन, शासकीय अधिवक्ता ने कहा । उनकी वक्तव्य शैली भी थी। पण्डित जी द्वारा सृजित ग्रन्थों से कि हमारे देश में प्रवचनसागर जी ऐसे मुनि हुए हैं जो पंचम काल | भारतीय समाज, साहित्य एवं संस्कृति उनके उपकारों से कभी भी में रहते हुए भी चतुर्थ कालीन मुनियों जैसी चर्या का पालन किया उऋण नहीं हो सकता है। आप अनेक संस्थाओं के संस्थापक तो एवं इतना भीषण परिषह सहन किया यह उनकी अध्यात्म चेतना थे ही साथ ही आपने भदैनी स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय में की ही शक्ति थी। यह आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का ही लगभग ३० वर्ष तक प्राचार्य के पद पर रहकर शताधिक विद्वान आशीर्वाद था कि उन्होंने अंत समय तक संयम के साथ शांत भाव तैयार किये। प्रेमी जी ने पूज्य पण्डित जी का जन्म शताब्दी समारोह से अपने प्रभु एवं गुरु चरणों का स्मरण किया। पूरे देश में विभिन्न नगरों में पूरे वर्ष भर आयोजित करने हेतु समाज ब्र. सुषमा दीदी ने कहा कि पूज्य मुनि श्री प्रवचनसागर जी का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि अखिल भारतवर्षीय दिग, ने अपने गुरु की साधना के समान ही परिषह को सहन किया एवं जैन विद्वत् परिषद् की ओर से इस अवसर पर एक व्याख्यानमाला अपने गुरु से भी एक कदम आगे बढ़कर यह दिखा दिया एवं | का आयोजन तथा एक स्मारिका प्रकाशित करने की योजना है। सल्लेखना मरण को स्वीकार किया। श्री राजेन्द्र सुमन एवं गुलाबचंद सुरेन्द्र कुमार जैन जी पटना वालों ने कहा कि परम पूज्य मुनि श्री अजितसागर जी के स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनी, वाराणसी प्रवचन का ऐलान कल यहाँ किया गया था परन्तु कौन जानता था दीपावली स्नेह मिलन समारोह सम्पन्न कि यह सभा शोक सभा में परिवर्तित हो जायेगी। परमपूज्य मुनि श्री सुधासागरजी महाराज के आशीर्वाद से ब्र. अक्षय भैया ने सल्लेखना का संस्मरण सुनाया पूज्य मुनि पल्लवित ज्ञानोदयनगर में श्री समतासागर जी के आने पर वे मुनि श्री प्रवचनसागर से नीचे परमपूज्य आचार्य १०८ बैठ गये तब उन्होंने तुरन्त ऊपर बैठने का संकेत किया, डॉ. राजेश श्री विद्यासागर जी जी भोपाल वाले पहुँचे और अंत समय में ब्लड प्रेशर नापने को महाराज के ३१ वें कहा परन्तु इशारे से उन्होंने मना कर दिया, मेरे कहने का अर्थ यह आचार्य पद आरोहण एवं है कि वे अंत समय तक सजग रहे। कार्यक्रम का संचालन शिखर ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र महिला लम्बरदार ने किया। समिति के सातवें वार्षिक सकल दि. जैन समाज, सागर म.प्र. | समारोह एवं द्वितीय दीपावली स्नेह सम्मेलन के उपलक्ष में महिला सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री का | समिति ने विशाल सम्मेलन आयोजित किया। इसमें अजमेर जिले जन्म शताब्दी समारोह का शुभारम्भ की नसीराबाद, किशनगढ, ब्यावर एवं मकराना की लगभग २५० वाराणसी ५ नवम्बर को भदैनी स्थित श्री स्याद्वाद महिलाओं ने तीर्थक्षेत्र पर प्रातः ९ बजे से एक बजे तक 'चौसठ ऋद्धि मंडल विधान' पूजा की। तत्पश्चात् मध्यान्ह २ बजे से ५ बजे महाविद्यालय के प्रांगण में विद्यालय के पूर्व प्राचार्य विद्वत् शिरोमणि तक प्रतियोगिता एवं धार्मिक प्रश्न मंच का आयोजन किया। सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री के जन्म शताब्दी समारोह श्रीमती निर्मला पांडया का शुभारम्भ उप-अधिष्ठाता एवं श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर महामंत्री जैन विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष डॉ. फूलचन्द्र जी जैन प्रेमी - जैन मानस्तंभ शिलान्यास संपन्न दर्शन विभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की कटंगी (जबलपुर) चंदाप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के प्रांगण अध्यक्षता में आयोजित हुआ। में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से आर्यिका ___ डॉ. प्रेमी जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रशांतमति माताजी की प्रेरणा से ब्र. अभय भैया, ब्र. अरुण भैया, पूज्य पण्डित जी ने अपना सारा जीवन देश, समाज एवं धर्म, ब्र. संजीव भैया, ब्र. संजय भैया के निर्देशन में संगीतमय शांति संस्कृति व साहित्य के लिए समर्पित किया। पण्डित जी का विधान एवं भक्तामर विधान के साथ मानस्तंभ शिलान्यास किया आदर्श व्यक्तित्व एवं कृतित्व हमारे लिए अनुकरणीय है। पण्डित गया। ब्राह्मी विद्या आश्रम की बहनें एवं स्थानीय ब्र. आभा दीदी, जी जैनधर्म, दर्शन एवं इतिहास के तो उत्कृष्ट विद्वान थे ही साथ प्रभा दीदी, सुनीता दीदी की गरिमामय उपस्थिति ने अपार जन ही साथ वे समस्त प्राचीन भारतीय भाषाओं के विशेषज्ञ भी थे। समुदाय को भक्ति रस में सराबोर कर दिया। अल्प समय के बाद पण्डित जी ने उत्कृष्ठ तीस ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद एवं मौलिक पंचकल्याणक महोत्सव के आयोजन की घोषणा की गई। सृजन कर भारतीय वाड्मय की उत्कृष्ठ सेवा की है। उन्होंने अपने ग्रन्थों में भारतीय इतिहास को एक नई दृष्टि दी है । जितनी सरल रिषभ सिंघई और सहज उनकी उत्कृष्ट लेखन शैली थी, उतनी ही प्रभावक 30 दिसम्बर 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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