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शिष्य श्री १०५ क्षु. ध्यानसागर जी के सान्निध्य व गुरुकुल के अधिष्ठाता डॉ. पं. पन्नालाल जी के कुलपतित्व में सन् १९९३ से १९९७ तक लगातार पाँच वर्ष क्रमशः जबलपुर, गोलबाजार जबलपुर, कटनी, नागपुर व छिन्दवाड़ा में ग्रीष्मकालीन वाचनायें संपन्न हुई। गौरव का विषय है कि यहाँ से शिक्षा प्राप्त, कई ब्रह्मचारी भाई मुनि, ऐलक, क्षुल्लक पद को धारण कर आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हुये । यहाँ के पूर्व ब्रह्मचारी छात्र शिक्षोपरांत देश में अनेक जगहों पर धार्मिक शिक्षा संस्थाओं का संचालन भी कर रहे हैं। इसी क्रम में ब्र. विनोद जैन (भिण्ड ) द्वारा जैन विषयों पर शोध करने वाले छात्रों को मार्गदर्शन तथा ब्र.
एक बूढ़े सन्त ने अपना मरण निकट जानकर अपने भक्तों और शिष्यों को पास बुलाकर कहा भाई तनिक मेरे मुंह के भीतर तो देखो, कितने दांत बचे हैं ? हरेक शिष्य ने मुंह के अंदर देखा। हरेक ने कहा-दांत तो कई वर्ष पहले टूट चुके हैं, एक भी दांत अब नहीं है।
सन्त बोले - जीभ तो मौजूद है ? सबने कहा- जी हाँ ।
सन्त ने कहा- यह बात कैसे हुई ? जीभ तो जन्म के समय भी मौजूद थी दांत उससे बहुत पीछे आये। पीछे जाना चाहिए था ये दांत पहले कैसे चले गये ?
शिष्य बोले- हमें तो इसका कारण समझ नहीं पड़ा ?
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डॉ. नवीन जी द्वारा योग व ध्यान का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रकार ब्रह्मचारी भाईयों व छात्रों की उत्तरोत्तर प्रगति के लिये हम निरन्तर संकल्पित हैं। हमारे इस कार्य में आप तनमन-धन से भरपूर सहयोग देकर देश, धर्म और समाज के हित में सहभागी बनें।
ब्रह्मचारी वर्ग
1. कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इन्दौर द्वारा संचालित विशारद, शास्त्री व सिद्धान्तरत्न परीक्षा ।
2. अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा (म.प्र.) द्वारा जैन दर्शन में शास्त्री की परीक्षा जो स्नातक के समकक्ष है। 3. संपूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा जैन दर्शनाचार्य परीक्षा । छात्र वर्ग
बोध कथा
माध्यमिक शिक्षा मंडल, भोपाल द्वारा संचालित ९, १० व ११ व १२ वीं परीक्षायें (हिन्दी माध्यम ) शिशु वर्ग - अंग्रेजी माध्यम
नर्सरी, के.जी. कक्षा १ व २
अधिष्ठाता वर्णी दि. जैन गुरुकुल पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर म.प्र.
डॉ. रमा जैन, छतरपुर
सन्त ने धीमी आवाज में उत्तर दिया यही समझाने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया है। देखो यह वाणी, जो जीभ की सहायता से बोली जाती है, अभी तक मौजूद इसलिए है कि इसमें कठोरता नहीं और ये दांत पीछे आकर पहले चले गये, क्योंकि ये बहुत कठोर थे । इन्हें अपनी कठोरता का घमण्ड था, यह कठोरता ही इनके नाश का कारण बनी। इसलिए मेरे बच्चो यदि देर तक जीना चाहते हो तो नम्र विनयी बनो। कठोर स्वभाव बाले न बनो ।
कौवा कासों लेत है, कोयल का को देत । मीठी वाणी बोलि के, जग अपनो कर लेत ॥
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कक्षा
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दिसम्बर 2003 जिनभाषित 27
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