Book Title: Jinabhashita 2003 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 20
________________ तीर्थंकर एवं चक्रवर्तियों की प्राचीन धरोहर-कम्पिल तीर्थ सुरेश चन्द जैन बारौलिया तीर्थ हमारी श्रद्धा एवं निष्ठा के। की। भगवान ने अपनी दिव्यध्वनि से विश्व हितार्थ प्राणियों का सर्वोपरि मापदण्ड हैं। तीर्थ ही वे माध्यम हैं जिनके द्वारा हम अतीत के अध्यात्म श्री कम्पिल जी तीर्थक्षेत्र का इतिहास एवं पुराणों के आलोक को जान सकते हैं। हर धर्म तीर्थ से | में कम्पिल एक विश्व विख्यात प्राचीन नगर रहा है। भगवान जुड़ा है तीर्थ से ही धर्म को जीवन ऋषभदेव, भगवान नेमीनाथ, भगवान पार्श्वनाथ और भगवान मिलता है। श्रमण परम्परा के प्रतीक महावीर सहित अनेकों तीर्थकरों के समवसरण श्री विहार यहाँ पर एवं ज्ञान वैराग्य के प्रेरक स्थल तीर्थक्षेत्र आ चुके हैं। इसके अलावा कम्पिल नगरी भारत का प्रमुख राजनैतिक हैं। भारतीय संस्कृति का प्राचीनता और | आर्थिक केन्द्र रही है। यहाँ दसवें चक्रवर्ती हरिषेण एवं बारहवें गरिमा की आधार जैन संस्कृति ही रही है। संस्कृति और सभ्यता | चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त की राजधानी थी। अनेकों राजाओं ने यहाँ राज्य तथा साहित्य की खोज, शोध के मूल आधार हैं। जैन तीर्थ अपनी | किया है। महाभारत काल में महासती द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद शांत, निराकुल एवं पवित्र जीवन के प्रबल प्रेरक जीवन्त स्थल हैं।। भी कम्पिल के राजा थे। द्रोपदी का स्वयंवर भी यहीं पर हुआ था इतिहास के पन्नों में अपनी धार्मिक पुरातात्विक एवं | जिसमें भगवान नेमीनाथ के पिता राजा समुद्रविजय वसुदेव श्री पर्यटनीय अस्मिता के लिए भारत में जो अनेकों तीर्थ प्रसिद्ध हैं | कृष्ण बलभद्र अर्धचक्री जरासंध भी पधारे थे। उसका साक्षी द्रोपदी उन्हीं में एक परम पवित्र आस्था है वह है उत्तर भारत के फरुख्खाबाद कुण्ड अभी कम्पिल जी में मौजूद है। उस समय अखण्ड पांचाल्य जनपद की कायमगंज तहसील से १० कि.मी. कम्पिल नगरी माँ राजधानी कम्पिल थी। इस काल में गंगा नदी तक कलापूर्ण सुरंग श्री गंगा के किनारे बसी है। तीर्थराज कम्पिल जैन धर्म के तेरहवें बनायी थी जिसमें ८० बड़े द्वार, ६४ छोटे द्वार थे। कहते हैं कि तीर्थंकर १००८ भगवान श्री विमलनाथ जी के गर्भ, जन्म, तप, उसमें एक ऐसी मशीन थी जिसमें कील ठोकते ही सभी द्वार स्वतः । ज्ञान (चार) कल्याणक स्थली है। श्री विमलनाथ भगवान श्री | बंद हो जाते थे। महान तपस्वी कपिल मुनी का आश्रम यहीं था ऋषभदेव के वंशज थे। महाराज कृतवर्मा की महारानी श्यामादेवी तथा तपस्या भी यहाँ की थी। कपिल्य नगरी को तीर्थराज कहना के गर्भ से ज्येष्ठ कृष्णा दशमी के दिन स्वर्ग से इन्द्र का जीव आयु न्याय संगत है। यहाँ की पवित्र भूमि को अनेकों सिद्ध पुरुषों को पूर्ण होने पर माता के गर्भ में आया। देवों ने गर्भ कल्याणक उत्सव जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मनाया। रत्नों की वर्षा होने लगी। युवा होने पर श्री विमलनाथ को यहाँ १४०० वर्ष से भी प्राचीन देवों द्वारा निर्मित एक वैवाहिक जीवन में दीक्षित किया गया। राज्याभिषेक कर स्वयं । वन्दनीय श्री विमलनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जी, जिसमें गंगा नदी पिता ने मुनिदीक्षा धारण करली । राज्यकीय जीवन के ३० लाख के गर्भ से प्राप्त चतुर्थ कालीन पाषाण श्याम वर्ण चमत्कारिक वर्ष बीत जाने पर उन्होंने हिमखण्डों को सूर्य के ताप से पिघलते भगवान श्री विमलनाथ की प्रतिमा, भारतीय दिगम्बर जैन कला हुये देखा। संसार की असारता जान तत्क्षण भगवान को वैराग्य की प्राचीनता के दर्शन करा रही है। वर्तमान में सरकार ने इसे उत्पन्न हो गया। भगवान इसी कम्पिल नगरी के उद्यान में जाकर पर्यटक स्थल घोषित कर दिया है। आधुनिक सरकारी अतिथिगृह शुक्ल चतुर्थी के दिन समस्त देव, विद्याधर और मनुष्यों की उपस्थिति भी उपलब्ध हैं। यहाँ पर एक दिगम्बर जैन मंदिर व एक श्वेताम्बर में पंचमुष्टि केशलोंच कर निर्ग्रन्थ दीक्षा लेकर दिगम्बर वेष धारण | जैन मंदिर है। वर्तमान में यह तीर्थ क्षेत्र भगवान विमलनाथ के कर लिया। अनेकों क्षेत्रों का विहार कर 4 घातिया, कर्मों को नाश | विश्वशांति व अहिंसा के सन्देश को जन-जन में प्रसारित कर रहा कर अरिहंत पद प्राप्त किया। कम्पिल जी में एक अघनिया टीला है। वर्तमान में यहाँ पर चौबीसों जिनेन्द्रों की प्रतिमायें भी निर्मित है. मान्यता के अनुसार उसी स्थान पर केवलज्ञान प्राप्त किया था | करायी हैं तथा एक भव्य मानस्तम्भ का निर्माण भी हआ है। तथा देवों ने आकर ज्ञानकल्याण मनाया और समवसरण की रचना | यात्रियों की सुविधा हेतु आधुनिक धर्मशाला है। बी-677, कमला नगर, आगरा 18 दिसम्बर 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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