________________
विधिपूर्वक सत्कर्म के प्रेरक णायकुमार
अपभ्रंश कवियों में महाकवि पुष्पदन्त एक शीर्षस्थ साहित्यकार हैं। पहले शैव धर्मावलम्बी ये पुष्पदन्त अपने जीवन के अन्तिम चरण में जैनधर्म धारण कर जैन सन्यास विधि से ही मरण को प्राप्त हुए । हिन्दी साहित्य के 'सूर-सूर, तुलसी- शशी' इन दो महान् विभूतियों के समान अपभ्रंश साहित्य में भी 'सयम्भूभाणु-पुफ्फयन्त णिसिकन्त' कहकर इनका यशोगान किया जाता है ।
महाकवि पुष्पदन्त का समय १० वीं शताब्दी माना जाता है। इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं- 1. महापुराण सबसे प्रथम और विशाल इस रचना में जैन धार्मिक परम्परा में प्रख्यात त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित्र वर्णित है। 2. जसहर चरिउ ( यशोधर चरित्र) 3. णायकुमार चरिउ ।
इन्होंने अपने काव्य सृजन में मानवीय मूल्यों की गरिमा को तो सुरक्षित रखा ही है साथ में जीवन और जगत की सम्पूर्ण समस्याओं को गहराई के साथ स्वयं देखा परखा और समाज को भी उसके वास्तविक रूप के दर्शन कराये तथा उपयोगी युक्तियाँ सुझाने के माध्यम से सही मार्ग दिखलाने के दायित्व का भी निर्वाह किया।
अपभ्रंश कवियों ने परमपद प्राप्त करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों के जीवनचरित पर लेखनी चलाकर चरिउकाव्य के रूप में उनके आदर्श जीवन की प्रयोगशाला उपस्थित की है। उस प्रयोगशाला में उनके आदर्श जीवन चित्रण के साथ-साथ आदर्श जीवन को गति देने वाले महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को भी प्रायोगिक रूप देकर फलित होना सिद्ध किया है।
4
इस ही श्रृंखला में कवि पुष्पदन्त कृत यह णायकुमारचरित' भी गायकुमार के श्रेष्ठ जीवन को दर्शाने वाली एक ऐसी ही प्रयोगशाला है, जिसमें उन्होंने नागकुमार को कामचेतना के नियामक के साथ विधिपूर्वक सत्कर्म के अधिष्ठाता / प्रेरक के रूप में भी चित्रित किया है।
चूंकि कामचेतना को काव्यप्रक्रिया में अनुभूति के स्तर पर सम्प्रेषणीय बनाकर उसकी व्यर्थता या नियमितता में से विकसित होती हुई वीतरागता को अनुभूति का विषय बनाना बहुत ही कठिन काम है किन्तु कवि पुष्पदन्त ने णायकुमारचरित में कामदेव नागकुमार के माध्यम से इस नियमित कामचेतना तथा वीतरागता की सार्थकता को सहज में ही सिद्ध कर दिखाया है।
इस तरह इस णायकुमारचरित काव्यरूप प्रयोगशाला में कामदेव नागकुमार के पूर्वभव से लेकर वैराग्य धारण कर मोक्ष
16
दिसम्बर 2003 जिनभाषित
Jain Education International
श्रीमती स्नेहलता जैन
प्राप्ति होने तक का जीवन्त चित्रण तो है ही साथ में मोक्ष प्राप्ति में सहायक मूलभूत सिद्धान्त 'पूर्वजन्म के संस्कारों की परम्परा' तथा 'सत्कर्मों के आधार से मिलनेवाले पुण्योदय' को भी इसमें बहुत ही सहज रूप में फलित होता दिखाया है जो इस प्रकार है
1. नागकुमार के पूर्वभव के सुकृत । 2. सत्कर्म से पुण्योदय की प्राप्ति ।
3. नागकुमार भव के सत्कर्म ।
4. सत्कर्म से पुण्योदय की प्राप्ति ।
5. वैराग्य प्राप्ति एवं मोक्ष ।
1. नागकुमार के पूर्वभव के सत्कर्म नागकुमार जब अपने पूर्वभव में नागदत्त थे तब उन्होंने फाल्गुन मास में शुक्ल पंचमी के उपवास का व्रत ग्रहण किया। अर्द्धरात्रि बीतने पर नागदत्त के शरीर में तीव्र दाहकारी तृष्णा उत्पन्न हुई। तब उनके पिता ने जालमय खिड़की में जहाँ से सूर्य की किरणें आया करती थीं वहाँ अपनी प्रभा से स्फुरायमान सूर्यकान्तमणि को रखकर नागदत्त से कहा- देखो, सूर्य उदित हो रहा है अब तुम शैया छोड़ स्नान पूजादि देव कार्य कर सुपेय का पान करो। इसपर नागदत्त यह जानकर कि अभी तक रात्रि के तीन ही याम व्यतीत हुए हैं निर्णय लिया कि 'जब सूर्य का प्रकाश प्रकट हो जायेगा तब ही देव, शास्त्र, गुरु की भक्ति कर, मुनियों को आहार करवाकर स्वयं भोजन ग्रहण करूंगा।'
2. सत्कर्म से पुण्योदय की प्राप्ति अ तब विधिपूर्वक उपवास का व्रत ग्रहण करने से नागदत्त मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। वहाँ देव सुलभ भोगों को भोगकर ये ही नागदत्त भरतक्षेत्र में जयन्धर राजा के पुत्र नागकुमार हुए। जब उस बालक नागकुमार को लेकर माता-पिता जिन मंदिर में गये तो वज्रकपाट के सघन बन्द होने से जिनदर्शन नहीं होने के कारण अत्यन्त संक्लेश को प्राप्त हुए। जैसे ही नागकुमार बालक के पैर से कपाट को धक्का दिया तो वह कपाट खुल गया।
ब. बावडी में गिरते हुए नागकुमार को नाग ने अपने सिर पर झेल लिया। अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर उन्हें आभूषण व देवांगवस्त्र के साथ अक्षर-ज्ञान, गणित, संगीतकला, व्याकरण और राजनीति की शिक्षा भी दी, जिससे वे सरस्वती में निष्णात पंडित बन गये ।
3. नागकुमार भव के सुकृत 1 नवयौवन को प्राप्त नागकुमार नगर के दर्शनार्थ निकले तो समाज से उपेक्षित राजविलासिनी वैश्या देवदत्ता ने उनसे हाथ जोड़कर अपने घर के
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org