Book Title: Jinabhashita 2003 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 4
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य फरवरी 2003 का जिनभाषित अंक हाथों में है। आद्योपान्त | जाए तो कान को काट कर फेंकना कैसे उचित है? संघ तो मुनि पढ़कर ही छोड़ने का मन हुआ। कवर पृष्ठ पर उड़ीसा की उदयगिरि आर्यिका, श्रावक-श्राविकाओं का रहेगा। पैरा नं. 11 में आपका गुफाओं का मनोहारी मनमोहक दृश्य देखकर मन प्रसन्नता से | विचार बहुत संकुचित विचारधारा का प्रतीत होता है। कृपया झूम उठा, परन्तु हमारा समाज इसके विकास के लिए क्या कर लेखों में यह ध्यान हर विद्वान को रखना उचित होगा कि उसकी रहा है? यह विचारणीय बिन्दु है। कवर पृष्ठ के पीछे इस युग के | भाषा से किसी भी संघ के प्रति समाज के आदर में कमी न आ महानतम आचार्य महावीर के लघुनंदन विद्यासागर जी का चित्र जाए। क्षमाचायना के साथ, सधन्यवाद। व उनकी पावन वाणी, समवशरण में महावीर स्वामी की दिव्य धनकुमार जैन झ-28 दादावाड़ी कोटा-9(राज.) देशना से कम नहीं है । पूज्य मुनिश्री प्रमाण सागर जी द्वारा लिखित दिसम्बर 2002 का अंक पढ़ा। अंतिम पृष्ठ को जिस तरह "धर्म जीवन की धुरी" पसन्द आया। आपने सँवारा है वह वास्तव में अनुकरणीय है। आप सदैव इसी 'पण्डित जीवन पर असन्तोष नहीं' यह कहना पं. कैलाश तरह के छायाचित्र प्रस्तुत किया करें। इस पत्रिका के लेख संकलन चन्द्र जी का बिल्कुल सत्य है। आज कोई अपने बच्चे को पं. या के योग्य हैं और समय-समय पर हमारे काम में भी आते हैं। जो शास्त्री नहीं बनाना चाहता क्योंकि आज समाज उन्हें दो वक्त की पंडित लोग केवल शास्त्रों की भाषा में बात करते हैं उन्हें आसानी रोटी भी नहीं देगा। आज जो पं., शास्त्री बेरोजगार हैं उनके प्रति से यह पत्रिका के माध्यम से हम समझा भी देते हैं। हमारे विद्वद्वर्ग एवं संस्थाओं को कोई हल शीघ्र ही खोजना चाहिए। विज्ञापन का प्रभाव पत्रिका पर नहीं है, इससे ज्यादा खुशी आदरणीय रतनलाल जी बैनाड़ा का शंका-समाधान सदैव की की क्या बात होगी? बैनाड़ा जी का शंकासमाधान भी काफी भाँति रोचक, ज्ञानवर्धक व प्रेरणाप्रद है। पत्रिका की इतनी तीव्र चुनौतियों भरा है, इसके लिए उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करें। प्रगति देखकर जैन पत्रकारिता के प्रति सम्पादक मण्डल का परिश्रम अक्षय जैन श्लाघनीय है। होली पर्व की पत्रिका परिवार को शुभकामनायें। चौक बाजार, भोपाल पं. सुनील जैन 'संचय शास्त्री नरवां विनम्र अपील जनवरी 2003 जिनभाषित अंक में सम्पादकीय' टिप्पणियाँ शैक्षणिक सहायता हेतु आपने अच्छी की हैं । वास्तव में हम एक दूसरे के ऊपर कीचड़ समाज के दानवीर महानुभावों से एवं संस्थाओं से निवेदन उछालने का कार्य बहुत करने लगे हैं। आपने सम्पादकीय में यह | है कि एक प्रतिभाशाली छात्र अर्थाभाव के कारण अपनी उच्च टिप्पणी कर हम जैसे लोगों का जिन्होंने पोस्टर रंगीन नहीं देखे शिक्षा से वंचित न हो, अस्तु सहयोग प्रदान करने की कृपा करें। उन्हें भी जिज्ञासा हो गई है कि वह ब्रह्मचारी कौन है ? वह छात्र का नाम- नीलेश कुमार जैन आचार्य कौन है? कैसे हैं पोस्टर? क्या है आशय? आपने पैरा नं. पिता का नाम - श्री अभय कुमार जैन 12 में परम पूज्य संत शिरोमणी आचार्य श्री के संघ का उदाहरण शिक्षा- कक्षा 12 वीं, जवाहर नवोदय विद्यालय भुलेश्वर देकर यह कहने का प्रयास किया कि वह सभी संघ जिनमें मुनि, | से 80 प्रतिशत अंकों सहित। आर्यिका, श्रावक, श्राविका रहती हैं वह सव संघ का आचरण निवासी - बड़ागाँव धसान, टीकमगढ़ (म.प्र.) संदिग्ध है? क्या राय देना चाहते हैं आप मुनि संघों को? आप हम उच्चस्तरीय शिक्षा प्राप्ति हेतु शैक्षणिक सहायता चाहता है, सब चतुर्विध संघ की बात करते हैं तो क्या बिना आर्यिकाओं के कृपया सहयोग प्रदान कर छात्र का उज्ज्वल भविष्य प्रशस्त करें। चतुर्विध संघ की कल्पना भी हो सकती है? समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाना है। यदि किसी सोने के आभूषण से कान कट द्वारा राकेश जैन बडागाँव 2 मई 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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