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देव ने कहा आप गुफा में जाइये अंदर जिनबिंब हैं आप लेकर । चन्द्रप्रभ भगवान् जिनकी ऊँचाई लगभग पौने तीन फीट एवं वजन आईये। इतना कहकर वह देव चला गया एवं मेरी नींद खुल गई। | लगभग डेढ़ क्विंटल रहा होगा। मुनिश्री ने चंद्रप्रभ भगवान् को मुनिश्री के मन में स्वप्न के प्रति शंका हुई की यदि गुफा में गया | ऊपर लाने के लिए पुरजोर प्रयास किया परंतु वे जरा भी नहीं उठा
और यदि जिनबिंब नहीं हुए तो। भद्रबाहु संहिता में भी स्वप्न का | पाये। तब मुनिश्री पांच बजकर पैंतीस मिनट पर गुफा के बाहर तो फल देखा जिसके अनुसार स्वप्न का फल देर से मिलेगा। मुनिश्री खाली हाथ आये परंतु उनके मुखमंडल पर प्रसन्नता एवं संतोष ने यह सोचकर कि हो सकता है धारणा के कारण ऐसा स्वप्न का सागर हिलोरें मार रहा था। मुनिश्री ने सारा बृतांत कमेटी के आया हो अत: इस स्वप्न को अधिक महत्व नहीं दिया। फाल्गुन | प्रमुख पदाधिकारियों को बताया एवं चन्द्रप्रभ भगवान् की प्रतिमा सुदी सप्तमी की रात्रि में वही देव उसी वेषभूषा में मुनिश्री के स्वप्न | भारी होने के कारण मुनिश्री ने मात्र संघस्थ पिच्छीधारी क्षु. गंभीर में पुनः आया एवं नमोस्तु कर कहने लगा कि आप मुझे और | सागर एवं क्षु. धैर्य सागर जी महाराज को दोपहर में गुफा में साथ अधिक न मनवायें, मैं आपकी साधना से प्रभावित होकर एवं | चलने की अनुमति प्रदान की। भूगर्भ से प्रतिमायें निकलने की आपको ही योग्य समझकर में जिनबिंब आपको सौंप रहा हूँ। | खबर सारे प्रांत में बिना किसी पूर्व प्रचार प्रसार के कानों कान आप किसी प्रकार की शंका न करें, गुफा के अंदर अलौकिक | फोन आदि के माध्यम से हवा की तरह इतनी अधिक फैल गई कि जिनबिंब हैं आप उनके दर्शन करायें। इस क्षेत्र पर पहले बहुत से | तीन चार घंटे में ही क्षेत्र पर लगभग दस हजार लोग चंद्रप्रभ साधु इन जिनबिंबों को निकालने के निमित्त से आये पर मैंने किसी | भगवान् के दर्शन के लिए एकत्रित हो गये। दोपहर दो बजे मुनिश्री को भी ये जिनबिंब नहीं सौंपे। आप नि:शंकित होकर फाल्गुन | ने श्रद्धालुओं से खचाखच भरे विशाल पंडाल में प्रवचन दिये सुदी नवमी के दिन शनिवार को रात्रि में आदिनाथ बाबा के समक्ष | जिसमें उन्होंने गुफा का सारा रहस्य बताया एवं कहा कि इन रात्रि प्रतिमा योग धारण कर ध्यान कीजिये, उस ध्यान में आपके | जिनबिंबों को देखकर अकृत्रिम जिनबिंबों का स्वरूप मानस पटल सारे विकल्पों का सामाधान स्वतः मिल जायेगा। आप अपनी पर झलक रहा है। मुनिश्री ने जिनबिंबों के बाहर रखे रहने का विशुद्धि को बढ़ाकर फाल्गुन सुदी दशमी सवंत 2058 दिन रविवार | समय पंद्रह दिन प्रवचन में ही नियत कर दिया। लगभग डेढ़ घंटे को ब्रम्हमुहूर्त में गुफा में प्रवेश कीजिये। दूसरी बार के इस स्वप्न के प्रवचन के बाद मुनि श्री क्षुल्लकद्वय के साथ गुफा में गये। लोग को मुनिश्री ने गंभीरता से लिया एवं स्वप्न का फल जैन शास्त्रानुसार वेसब्री से मंदिर के भीतर बाहर इंतजार करने लगे। भीड़ प्रतिक्षण देखने पर पाया कि स्वप्न का फल शीघ्र मिलने वाला है। इस बार | बढ़ती ही जा रही थी। सारी भीड़ एक साथ मंदिर के अन्दर प्रवेश मुनिश्री ने स्वप्न के बारे में किसी को नहीं बताया परंतु स्वप्न के | कर भगवान् का प्रथम दर्शन करना चाह रही थी। शांति एवं अनुसार क्रियान्वित करने का अपना मन्तव्य संघ एवं कमेटी के | व्यवस्था के लिए त्वरितरूप जो उपाय किये गये थे वे सारे के सारे सम्मुख रखा। तत्पश्चात् मुनिश्री ने फाल्गुन सुदी नवमी संवत् | अपूर्ण एवं अपर्याप्त लगने लगे। लोग मुनिश्री सुधा सागर जी 2058 की रात्रि ध्यान योग पूर्वक आदिनाथ बाबा के सम्मुख बैठे महाराज की जय जय की ध्वनि से सारा मंदिर परिसर गुंजायमान एवं ब्रम्हमुहूर्त में कमेटी के पदाधिकारी को गुफाद्वार की चुनाई कर रहे थे। ठीक चार बजकर उन्नीस मिनट पर मुनिश्री एवं तोड़ने को कहा। गुफाद्वार के टूटते ही भीषण गर्म हवा गुफा के क्षुल्लकद्वय चंदप्रभ भगवान् को लेकर गुफा से बाहर आये। जो अन्दर से निकली। कुछ देर बाद जब गर्म हवा का आना बंद हुआ | लोग शुद्ध वस्त्र पहिन कर एवं मुकुटबद्ध होकर भगवान् के अभिषेक तो मुनिश्री सुधासागर जी महाराज घुप्प अंधेरी गुफा में प्रवेश कर | के लिए घंटों पूर्व से इंतजार कर रहे थे उनकी आँखे भगवान् को गये। जैसा कि मुनिश्री ने बाद में अपने प्रवचन में बताया कि गुफा | बिना पलक झपके निहारने लगीं, सभी लोग भगवान् को स्पर्श के अन्दर उन्हें 2-3 सीढ़ियाँ एक साथ कूदना पड़ी, कहीं पर | करने के लिए एक साथ बढ़ने लगे। पूरा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा एकदम छोटे से द्वार से उन्हें बैठकर जाना पड़ा तब कहीं वे उस | था मानो स्वर्ग से आकर इंद्रगण भगवान् को जन्माभिषेक के लिए द्वार पर पहुँचे जिसके भीतर वह धरोहर थी जिसके लिए एक | पांडुकशिला पर विराजमान कर प्रथम अभिषेक के लिए होड़ कर साधक ने अपनी साधना के सहारे लक्ष्य बना लिया था। द्वार के | रहे हों। प्रत्येक व्यक्ति के मन में खुशी एवं उत्साह का दरिया पत्थर को हटाते ही एक अद्भुत अति तेज प्रकाश मुनिश्री की उमड़ रहा था। एक ऊँचे मंडप में चंद्रप्रभ भगवान् को विराजमान आँखों पर पड़ा जिसे देख मुनिश्री कुछ देर के लिए नेत्र बंद कर | करने के बाद मुनिश्री पुनः गुफा में गये एवं दूसरी एवं तीसरी बार खड़े रहे एवं जय श्री ॐ नमः सिद्धेभ्यः का स्मरण करने लगे। में क्रमश: सिद्ध भगवान् की लगभग दो फुट ऊँची और पार्श्वनाथ थोड़ी देर बाद जब नेत्र खोले तो मुनिश्री के सम्मुख महाकांती - भगवान् की लगभग सवा फुट ऊँची प्रतिमा लेकर आये। तीनों युक्त तीन जिनबिंबों (स्फटिक मणि/हीरामणि) के दर्शन किये। जिनबिंबों को एक साथ विराजमान कर अभिषेक प्रारंभ किया मुनिश्री ने इन अलौकिक जिनबिंबों के दर्शन कर अपना जीवन | गया। प्रथम अभिषेक श्री कस्तूरचद जी जैन, रामगंजमंडी वालों ने धन्य मानते हुये जिनबिंबों को बार-बार नमोस्तु किया एवं तीन | तीन लाख रूपये की बोली लेकर किया। बारह अन्य इंद्रों की प्रदक्षिणा देकर पुन: नमोस्तु किया। तीन जिनबिंबों में सबसे बड़े | बोलियाँ बोली गईं जो लाखों रूपये से ऊपर लेकर लोगों ने अभिषेक
- मई 2003 जिनभाषित 19
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