Book Title: Jinabhashita 2003 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ भगवान् महावीर और महात्मा गाँधी प्रस्तुति : डॉ. कपूरचन्द्र जैन एवं डॉ. ज्योति जैन जैन इतिहास का धुंधला पृष्ठ । जब अंग्रेजों ने उनका लेख और जमानत जब्त कर ली एक जब्तशुदा लेख प्रस्तुत लेख उर्दू 'जैन प्रदीप' के अप्रैल एवं मई-जून | नामक लेख के कारण सरकार ने जैन प्रदीप पर जो पाबन्दी लगाई 1930 के अंकों में उर्दू भाषा में ही छपा था। 'जैन प्रदीप' की | उसी से वह बन्द हो गया, नहीं तो वह सदैव ठीक तारीख पर ही स्थापना 1912 में बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने की थी। बाबू ज्योतिप्रसाद | निकला। जैन अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण जैन समाज में 'समाज बाबू जी 1920 में समाज से राजनीति में आये, उन दिनों सुधारक' के नाम से विख्यात हुए हैं। वे सभी जलसों में शरीक होते और कांग्रेस संगठन को मजबूत नाटा कद, भरा-उभरा शरीर, भरी-झूगी मूंछे, चौड़ा ललाट, | बनाने में हिस्सा लेते। तिलक स्वराज फण्ड का चन्दा और भाषण भीतर तक झांकती-सी आँखें, धीमा बोल, सधी चाल, सदैव शान्त | उस युग की राजनीति के मुख्य अंश थे, जो बाबू जी करते थे। मुख-मुद्रा, मामूली कपड़े के जूते, कमीज और कभी-कभी बन्द | 1920 में वे जेल जाना चाहते थे पर सरकार ने गिरफ्तार नहीं गले का कोट, सिर पर गांधी-टोपी और कभी-कभी तिरछा साफा, किया। 1930 में वे पारिवारिक परिस्थितियों के कारण जेल नहीं चौड़ा पाजामा, नियमित जीवन, मिलनसार और अपनों को सबकुछ | जा सके पर आन्दोलन में पूरी निष्ठा से सक्रिय रहे। करने को तैयार यह व्यक्तित्व था बाबू ज्योतिप्रसाद का। 1930 में जैन प्रदीप में उर्दू भाषा में (उन दिनों जैन प्रदीप बाबू जी का जन्म आश्विन कृष्ण 10 वि.सं. 1939 (सन् | उर्दू में ही निकलता था) 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' 1882 ई.) को देवबन्द, जिला-सहारनपुर (उ.प्र.) में एक साधारण लेख लिखा। इसके कई अंशों पर सरकार को कड़ी आपत्ति थी, परिवार में हुआ था। बाल्यकाल में ही उन्हें जैन जागरण के दादा फलत: सरकार ने इस पर पाबन्दी लगा दी और आगे के लिए एक भाई बाबू सूरजभान वकील का संसर्ग मिला। वकील सा. ने इस हजार की जमानत मांगी, जिसे देने से बाबू जी ने इन्कार कर बालक में भविष्य को देखा और अपने पास रख लिया। जैन | दिया। इस सन्दर्भ में प्रभाकर जी ने अपने संस्मरण में लिखा हैसमाज में समाज-सुधार, पत्रकारिता, देशसेवा का बीजारोपण बाबू "डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट" ने उनसे कहा 'ऐडीटर साहब ! जी में यहीं से पड़ा। अपनी जबानी में बाबू जी लाला हरनाम सिंह | हमारे फादर ने, जब वह यहाँ कलेक्टर थे, आपके अखबार का के यहाँ मुनीम हो गये, जहाँ पहुँचकर वे बड़े अफसरों और जिले डिक्लेरेशन मंजूर किया था। हम नहीं चाहते कि हमारे समय में के बड़े आदमियों के संसर्ग में आये। वे देवबन्द में जोती मुनीम' | वह बंद हो, इसलिए आप हमको एक खत लिखो कि उस लेख के नाम से पहचाने जाने लगे। 1912 में 'जैन प्रदीप' की स्थापना | का वह मतलब नहीं है जो समझा गया है। बस हम अपना आर्डर और उसके सम्पादक होने के नाते वे 'जोती मुनीम' से 'जोती वापस ले लेंगे।' एडीटर' बन गये और अपने जीवन के अन्तिम समय तक वे इसी बाबू जी ने उत्तर दिया- 'कलेक्टर साहब आप मुझसे नाम से विख्यात रहे। इससे पूर्व बाबू जी 'जैन प्रचारक', 'जैन | सलाह करके पाबन्दी लगाते, तो उसे हटाने के लिए भी मेरे खत नारी हितकारी', 'पारस' जैसे पत्रों का सम्पादन कर चुके थे। जैन | की जरूरत पड़ती। अब तो वह हटेगी तो वेसे ही हटेगी, जैसे लगी प्रदीप के सन्दर्भ में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. कन्हैया लाल मिश्र | है।' और उठकर चले आये। 'प्रभाकर' ने लिखा है- 'जैन प्रचारक' के बाद उन्होंने अपना जैन नगर के एक बड़े रईस ने, जिसने कलेक्टर महोदय को प्रदीप' मासिक निकाला, जिसके वे चपरासी भी थे और चेयरमैन | नरम किया था, उसी दिन मुझसे कहा 'आज ऐडीटर साहब ने भी। वे स्वयं डाक लाते, स्वयं उसका जवाब देते, आई-गई डाक | हमारे किये-धरे पर चौका फेर दिया।' मैं तुरन्त उनके (बाबू जी रजिस्टर में चढ़ाते, लेख लिखते, कांट-छांट करते, पते लिखते, | के) घर गया, तो बहुत खुश थे। बोले- 'भाई, हम जेल नहीं जा चिपकाते..... 'जैन प्रदीप' में उन्हें कभी आर्थिक लाभ नहीं हुआ, | सकते, तो इज्जत के साथ अपने घर तो रह सकते हैं।' पर वह उनका क्षेत्र सारे जैन समाज को बनाये रहा, जिससे वे और | इस प्रकार जैन प्रदीप 1930 में बन्द हो गया। उनके वंशजों 'जैन प्रदीप' दोनों निभते रहे। 1930 में 'गांधी जी और महावीर' | ने अब उसे पुनः 5-6 वर्ष पूर्व हिन्दी में निकालना प्रारम्भ किया - मई 2003 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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