Book Title: Jinabhashita 2003 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 16
________________ 44 है, सम्प्रति सम्पादक श्री कुलभूषण कुमार जैन हैं। हमें भी पूज्य बाबू जी के कक्ष को देखने का सौभाग्य, सामग्री संचयन हेतु देवबन्द जाने पर, मिला । यह हमारा अहोभाग्य है । बाबू जी के योगदान के सन्दर्भ में 'सहारनपुर सन्दर्भ' (पृष्ठ 535) लिखता है" देवबन्द में उत्पन्न बाबू ज्योति प्रसाद जैन सहारनपुर के वन्दनीय पुरुषों में हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देवबन्द में हुई। वहीं बाबू सूरजभान वकील की संगति से आप समाज सेवा में प्रवृत्त हुए । कवि के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली । 'जैन प्रचारक, ''जैन प्रदीप', 'जैन नारी हितकारी' और 'पारस' के सम्पादक के रूप में उन्होंने अपनी लेखनी का परिचय दिया । उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया और स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी बने। उनकी पुस्तकों की संख्या तीस से ऊपर है। 28 मई 1937 को उनका देहान्त हुआ।" उनकी सभी रचनाओं को एक प्रन्थावली के रूप में प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। आगे हम मूल उर्दू लेख के हिंदी रूपान्तरण के सम्पादित अंश दे रहे हैं । सम्पादित अंश 2500 साल पहले की तारीख से पता चलता है कि भारतवर्ष में अंधेरगर्दी थी । जुल्म व सितम का बाजार गर्म था। यह वह जमाना था कि देवी देवताओं के नाम पर खून की नदियाँ बहाई जाती थीं । देव मंदिर तक तलघरों का काम देते थे। इनकी दीवारें बेजुवान जानवरों के खून से रंगी हुई दिखलाई देती थीं। घोर हिंसा फैली हुई थी और ऐसे पाप, अत्याचार धर्म के नाम पर देवीदेवताओं के नाम पर किये जाते थे तमाम जीव दुखी थे कोई रक्षक नजर नहीं आता था । इन नाजुक जमाने में श्री महावीर भगवान् का जन्म हुआ। भगवान् ने कहा कि घबराओ नहीं तुम्हारा उद्धार में करूंगा। तुम सब बराबर हो, ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र सब इन्सान हैं, सबकी आत्माएँ पवित्र हो सकती हैं। सब का उद्धार शुद्ध आचरण से ही हो सकता है। क्या बादशाह ! क्या रियाया ! क्या अमीर ! क्या गरीब ! क्या विद्वान ! क्या मूर्ख! सब ही इन्सान हैं और इन्सानी हैसियत से सब का दर्जा एक है। धर्म ही सच्चाई है। झूठ फरेब हिंसा चोरी जिनाकारी वगैरह पापों का तर्क करके धर्म का पालन करो। भगवान् महावीर के बारे में साधू टी. एल. वास्वानी लिखते हैं- "इन महावीर का, जैनियों के इस महापुरुष का चरित्र कितना सुन्दर है वह बादशाही घराने में जन्म लेते हैं और घर को त्याग देते हैं। वह अपना धन गरीबों को दान में दे देते हैं और सन्यासी होकर जंगल में आत्मध्यान और तपस्या के लिए चले जाते हैं। कुछ लोग उन्हें वहाँ मारते हैं, तकलीफें देते हैं, लेकिन वह शान्त और मौन हैं । " भगवान् ने कहा कि इंसान मुकम्मिल नहीं है। इसमें बहुत सी कमियाँ हैं, इसलिये अगर मुझे इस जुल्मोसितम को दुनिया के 14 मई 2003 जिनभाषित Jain Education International तख्ते से उठा देना है तो पहिले मुझे आदर्श बनना चाहिये, मुकम्मिल बनना चाहिए, तभी काम होगा। इसलिये बारह साल सख्त रियाजत की और बहुत सी तकलीफों का सामना भी किया और आखिर मुकम्मल होकर ही छोड़ा। आपने साबित कर दिया कि तशद को अदम तशद ही जीत सकता है। आपने सन्यास लेते वक्त पांच महाव्रत लिये थे । 1. अहिंसा, 2. सच बोलना, 3. चोरी नहीं करना, 4. ब्रह्मचर्य का पालन, 5. अपरिग्रही रहना, यानि दुनियाँ की चीजों में मोह न रखना या यूं कहो कि अपने पास जरूरत से ज्यादा सामान न रखना। 1 भगवान् महावीर ने केवलज्ञान हासिल करके उपदेश दिये और कहा कि हर एक प्राणी धर्म का पालन कर सकता है, क्या ब्राह्मण ! क्या शूद्र ! क्या वैश्य ! क्या गरीब ! क्या राजा ! क्या मर्द! क्या औरत ! सिर्फ इन्सान ही क्यों बल्कि पशु-पक्षी भी धर्म का पालन कर सकते हैं। धर्म बेजुबान जानवरों और इन्सानों को कल्ल करके यज्ञ करने में नहीं है, बल्कि धर्म तो अहिंसा परम धर्म है। धर्म का स्वरूप " आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्" है। यानि जो अपनी आत्मा अपने जमीर के खिलाफ हो वह दूसरे के लिए हरगिज न करे। जैसे अगर तुम्हें कोई मारता है तो तुम कितना दुःख महसूस करते हो, इस तरह हमारा धर्म है कि हम बेजुबान जानवरों को कत्ल करने में धर्म न मानें, अगर कोई हमारे सामने झूठ बोलता है तो हम झुंझला उठते हैं, तो हमारा फर्ज है। कि हम कभी झूठ न बोलें। वगैरह-वगैरह। अगर कोई हमारी चोरी करता है, तो हमें बहुत रंज होता है, तो हमारा फर्ज है कि हम खुद चोरी न करें। दुश्मनी कभी पापी इन्सान से न करो लेकिन उसके पाप से करो। इस पर दया भाव रखकर उसको समझाओ और अच्छे रास्ते पर लाकर उसके पाप को धो डालो। दूसरे की माता - बहिन को अपनी माता बहिन समझो जरूरत से ज्यादा सामान अपने पास मत इकट्ठा करो, वगैरह-वगैरह । भगवान् महावीर का उपदेश कितना आला और सुन्दर था । उसका जिक्र करते हुए प्रसिद्ध कवि फरवे कौम रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं कि Mahavir proclaimed in India the message of salvation; that religion is a reality and not a mere social convention, that salvation comes from taking refuge in that true religion and not observing that external ceremonies of the community; that religion can not regard any barrier between man and man as an external verity, wonderous to relate, this leading rapidly overtopped the barrier of the races abiding instinct, conquered the infleuence of kshtriya period, now the infleunce of kshtriya teachers completely suppressed the Brahmin power. भगवान् महावीर ने भारतवर्ष को बा-आवाज बुलन्द मोक्ष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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