Book Title: Jinabhashita 2003 02 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ विशेष समाचार हजारों श्रद्धालुओं ने किया गर्भपात रोकने का संकल्प भोपाल। 21 जनवरी 2003 दशहरा मैदान में चल रहे पंचकल्याणक के तीसरे दिन आचार्य श्री विद्यासागर जी ने हजारों श्रद्धालुओं को संयमित जीवन जीने के साथ गर्भपात कराने की प्रथा के खिलाफ जनमत जाग्रत करने और भ्रूण हत्या न कराने का संकल्प दिलाया। राजधानी में चल रहे सात दिवसीय पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव के तीसरे दिन इस क्रांतिकारी जनांदोलन की शुरुआत सर्वोदयी संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कराई। आज का दिन जीवन के पाँच कल्याणक सिद्धान्तों में से सबसे प्रमुख गर्भ कल्याणक का था । आचार्यश्री ने कहा कि संयम मनुष्य के जीवन के कल्याण का माध्यम है। यह माता पिता का दायित्व है कि वे बच्चों में सात्विक जीवन के संस्कार डालें। उन्होंने कहा कि गर्भपात कराने वाले माता-पिता अपने ही बच्चों का इच्छानुसार वध कर रहे हैं। दरअसल उन्हें संयमित जीवन की समझ ही नहीं आ पाई है। जिस बेख्याली में वे बच्चों के जन्म का कारण बनते हैं। उसी गफलत में वे गर्भपात कराकर अपना भविष्य अपने ही हाथों चौपट किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने सोनोग्राफी से लिंग परीक्षण पर रोक लगाई है लेकिन हमें कोशिश करनी होगी कि न तो अवांछित बच्चे गर्भ में आएँ न ही गर्भपात की कुप्रथा जारी रहे । उन्होंने दैहिक सौंदर्य की लालसा में भटकने वालों का उपदेश देते हुए कहा कि सच्चा सौंदर्य संयम में है। जैन दर्शन में सिद्धचक्रमण्डल विधान में उल्लेख है कि इसके विधि विधान से पूजन करने पर कोढ़ी भी कंचन के समान हो जाती है। यही सौंदर्य सच्ची खूबसूरती है। यदि मन में भाव पवित्र हैं तो वे चेहरे पर अवश्य ही झलकने लगते हैं। जो सभी को प्रभावित करते हैं। आलोक सिंघई बार्डर पर आर्डर की प्रतीक्षा करने वाले जवान भी धर्मध्यानीः आचार्यश्री भोपाल 23 जनवरी। जिस तरह प्रजा के धर्म ध्यान का छठवाँ हिस्सा राजा को मिलता है उसी प्रकार देश की सीमा पर आदेश की प्रतीक्षा में आँधी तूफान का सामना करके जान की बाजी लगाने वाले सैनिकों को भी धर्म का सीधा लाभ मिलता है। यदि देश की सीमाएँ झंझावातों से मुक्त नहीं रहीं तो फिर किसी भी प्रकार का अनुष्ठान करना संभव नहीं । हाल ही सीमा पर वीरगति को प्राप्त भोपाल के सपूत श्रेयांस गाँधी के माता-पिता को स्नेहाशीष देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि राष्ट्र की रक्षा में लगे जवानों के सामने मृत्यु हमेशा आँकती रहती है। हवा में गोलियाँ बरसती रहती हैं। फिर भी हमारे सैनिक गौतम जैन का उदाहरण देते हुए बताया कि उस नवयुवक की तो शादी हुए ही चंद रोज हुए थे ऐसे ही न जाने कितने सैनिक 2 फरवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International अपने सुख-दुख की परवाह किए बगैर अपनी जान की बाजी लगाने को तत्पर रहते हैं। इन सैनिकों का त्याग और समर्पण हमें नहीं भूलना चाहिए। वैराग्य ही मुक्ति का सोपानः आचार्य विद्यासागर जी संसार में सुख शांति कहीं नहीं है, यह निश्चय सबसे बड़ा धन है। इस धन के समान सत्य दुनियाँ के तीनों लोकों में कोई नहीं है। जबकि वैराग्य ही एकमात्र अभय है, यही वैभव है, यही मुक्ति का सोपान है। इसी के अभाव में अपने पराए की रेखा खिंच जाती है। वैराग्य ही एकमात्र ऐसा विचार है जो माँ की ममता को भी पराजित कर सकता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आज दशहरा मैदान में चल रहे पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव के पाँचवे दिन तप (दीक्षा) कल्याणक के अवसर पर अपने प्रवचनों में यह बात कही। पंचकल्याणक के अवसर पर अयोध्या में तब्दील राजधानी के टी.टी. नगर स्थित दशहरा मैदान में बालक आदिनाथ के जन्म की खुशियों में आज गांभीर्य का पुट आ गया। इसका कारण था कि आदिकुमार के राज्याभिषेक होने पर उनके राज दरबार में नर्तकी नीलांजना की नृत्य के दौरान मृत्यु हो जाती है। महाराजा आदिनाथ सोचते हैं कि जीवन कितना नश्वर है। इसके साथ ही वे अपना राजपाट भरत और बाहुबली को सौंपकर वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं। साथ ही आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने प्राण प्रतिष्ठा के लिए रखी गई प्रतिमाओं के वस्त्राभूषण उतारे और उन पर अंक न्यास और संस्कार आरोहण किया। दीक्षा कल्याणक मनाने का प्रयोजन समझाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि राग और विराग दोनों साथ नहीं चल सकते। जिसे वैराग्य हुआ उसे कोई नहीं बाँध सकता। रत्नत्रय को समझने वाले व्यक्ति की दृष्टि किसी चमकीली सचित्र और अचित्र वस्तु की ओर नहीं देख सकता, जबकि अपने पराए के राग में लिपटे माता-पिता पुत्र भाई, बहन इसे नहीं समझ पाते और वे बैरागी को रोकते हैं। हर प्राणी अपने जन्म के समय कुछ नहीं लाता और मृत्यु के समय खाली हाथ ही जाता है। यह समझाना जितना सरल है उतना ही समझना कठिन उन्होंने कहा कि यह अंतर्दृष्टि खरीदी नहीं जा सकती इसे सतत प्रयास से जाग्रत करना पड़ता है। आचार्य श्री ने कहा कि जिस वस्तु का उपयोग है उसी का मूल्य होता है। यदि वस्तु उपयोगी नहीं हो तो उसे कोई नहीं पूछता। उन्होंने सागर जिले के धामोनी का उदाहरण देते हुए बताया कि वहाँ पूरा गाँव बसा हुआ है। हवेलियाँ बनी हुई हैं। लेकिन यह गाँव वीरान है क्योंकि बरसों पहले यहाँ कोई रोग के चलते पूरा गाँव खाली हो गया था। आज वहाँ रहने वाले नहीं है तो उन कीमती हवेलियों की कोई उपयोगिता नहीं है। इसी प्रकार यदि वस्त्र पहनने वाला ही न हो तो वस्त्रों का कोई मूल्य नहीं। 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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