Book Title: Jinabhashita 2003 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ नारी की सहनशीलता : वैज्ञानिक दृष्टि डॉ. (कु.) आराधना जैन 'स्वतंत्र' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:'- जहाँ नारियों की पूजा होती हैं वहाँ देवता निवास करते है । यहाँ प्रयुक्त देवता शब्द स्त्री-1 - पुरुष के संसार चक्र की श्रेष्ठता का द्योतक है। इसमें नारी के सद्गुणों के सम्मान हेतु निर्देशित किया गया है। क्षमा, धैर्य, गम्भीरता, सहनशीलता, कर्तव्य परायणता, श्रमशीलता, लज्जा, समता, सौन्दर्य आदि अनेक सद्गुण नारी में अन्तर्निहित हैं। प्रतिकूलताओं में, आपत्ति आने पर धैर्य के साथ स्वयं को समायोजित कर लेना, आयी हुई आपदाओं का अत्यन्त साहस के साथ निवारण करना, विपत्तियों को समताभाव पूर्वक सहन करना आदि नारी की अनन्यतम विशेषताएँ हैं। वह पिता का स्थान लेकर अपने बच्चों को सुयोग्य बना देती है पर पिता अनेक प्रयास करने के उपरान्त भी माता का स्थान ग्रहण नहीं कर पाता। महिला की यह विशेषता उसके मानसिक संतुलन, दृढ़ संकल्प, धैर्यता आदि का सुपरिणाम है। यहाँ पर नारी के सहनशील होने के कतिपय वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत किये जा रहे हैं जीवविज्ञान के अनुसार मानव शरीर की कोशिका संरचना में उसके नाभिक के अन्दर 46 क्रोमोसोम्स होते हैं। पुरुष में 23x (एक्स) क्रामोसोम्स तथा 23 (y) क्रामोसोम्स इस प्रकार 46 क्रोमोसोम्स होते हैं पर नारी के 46 क्रामोसोम्स'x' (एक्स) रूप में ही होते हैं। एक्स क्रोमोसोम्स की अधिकता के कारण ही वह सहनशील होती है। नेब्रास्का विश्वविद्यालय के डॉ. डेविड परतीलो तथा अन्य वैज्ञानिक मार्टिन के अनुसार महिलाओं में एक्स क्रोमोसोम्स होना प्रकृति प्रदत्त उपहार है। उनके अनुसार एक्स क्रोमोसोम्स व्हाई क्रोमोसोम्स की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होता है। इसलिए महिलाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है और उम्र भी। आधुनिक युग में विश्व में विभिन्न देशों की संस्कृतियाँ, आहार-विहार, जीवन शैली तथा बीमारियों के कारण भिन्न-भिन्न हैं पर एक बात सभी देशों में समान है कि नारियाँ पुरुष से अधिक जीती हैं। अस्सी वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या पुरुषों से लगभग दो गुनी है। स्टजर्ज विश्वविद्यालय न्यूजर्सी के साइकोएंडोक्राइनोलाजिस्ट डॉ. रायनिश के अनुसार स्त्री तथा पुरुष के मस्तिष्क की क्रियाओं में भिन्नता होती है। पुरुष की कुछ क्रियाएँ मस्तिष्क के वाम गोलार्ध तथा कुछ दक्षिणी गोलार्ध से नियन्त्रित होती हैं जब कि महिलाओं में क्रिया नियन्त्रण व्यवस्था दोनों गोलार्ध में समान रूप से होती है। इसीलिए पुरुषों में दोनों के बीच आपस में उतना समायोजन नहीं हो पाता जितना कि नारियों में होता है। पुरुषों में इस संतुलन को परिणति गम्भीर मस्तिष्कीय चोटों के समय दिखाई पड़ती है। डॉ. रायनिश ने अपने सहयोगियों Jain Education International के साथ अनेक केसों का अवलोकन किया और पाया कि अधिकांश पुरुषों के वाम मस्तिष्क में चोट लगने तथा क्षतिग्रस्त होने पर उनकी बोलने की क्षमता नष्ट हो जाती है और यदि दाहिने भाग पर चोट पहुँचती है तो उनके देखने की क्षमता कम हो जाती है पर ऐसा महिलाओं में प्रायः कम होता है। दोनों के बीच इस अन्तर के कारण को वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के दोनों गोलार्थों के बीच असंतुलन व संतुलन का होना बतलाया है। नारी के मस्तिष्क के दोनों गोलाधों के बीच संतुलन होना ही उसे सहनशील बनाता है। कनाडा के एलवर्ट विश्वविद्यालय के सुविख्यात मनोचिकित्सक प्रो. पीयर क्लोर हेनरी ने स्त्री व पुरुषों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विशिष्टताओं को गहराई से परखा और एक ही निष्कर्ष प्रस्तुत किया मस्तिष्क के दायें व बायें भाग के क्रमिक सन्तुलित विकास के फलस्वरूप ही स्त्रियों में आक्रामक एवं हिंसात्मक प्रवृत्तियाँ नहीं भड़कती। दोनों गोलाधों में समान रूप से नियन्त्रण रहने से ये शारीरिक व मानसिक दृष्टि से स्वस्थ एवं तनावमुक्त रहती हैं। पुरुष के मस्तिष्क का दाँया भाग ही अधिक सक्रिय होता पाया गया है जिसकी वजह से वह किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए अत्यधिक बैचेनी / बेसव्री को प्रगट करते हुए अपने पुरुषत्व का प्रमाण देता है तथा तुरन्त उसे पूरा करने में लग जाता है। मस्तिष्क के बायें भाग पर उसका नियंत्रण कम ही रहता है जब कि वाणी में शालीनता और सामाजिक प्रवृत्तियों को प्रभावित करने की क्षमता इसी भाग में अधिक होती है। अमेरिकी नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ को एक मन: चिकित्सक ने अनुसंधान द्वारा पाया है कि मस्तिष्क के दायें एवं बायें गोलार्ध की नियन्त्रण क्षमता के कारण ही नारियों में सभी परिस्थितियों से समायोजन की क्षमता पुरुषों से लगभग पाँच गुनी होती है। महिलाओं में अन्तर्ज्ञानात्मक प्रतिभा भी अधिक पायी जाती है। समस्याओं का समाधान भी वे पुरुषों की तुलना में अधिक शीघ्रता से ढूंढ लेती हैं। असन्तुलनजन्य विक्षेप से पुरुष ही अधिक परेशान रहते हैं। इसका प्रमाण यह है कि विश्व में महिलाओं की तुलना में पुरुष मानसिक रोगियों का अनुपात चार गुना है। I इस प्रकार स्पष्ट है कि नारियों का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक वैशिष्ट्य ही उन्हें सहनशील, संवेदनशील बनाता है। यही उन्हें क्रूरतम कार्यों को करने से रोकता है। जैनागम में यह उल्लेख है कि नारी कितने भी हिंसात्मक / क्रूरकार्य करे वह छठे नरक से आगे नहीं जा सकती तथा कितनी भी आत्मसाधना करे -फरवरी 2003 जिनभाषित 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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