Book Title: Jinabhashita 2003 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ जैन पत्रिकारिता के भीष्म पितामह श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय (जैन) (जन्म शताब्दी महोत्सव पर विनम्र श्रद्धांजलि) डॉ. कपूरचन्द्र जैन एवं डॉ. ज्योति जैन, सिर पर टोपी, मंझोला कद, कसरती देह, गेंहुँआ रंग, गठे । भरकर आशीर्वाद दिया और कहा, "मैंने तुम्हें इसीलिए (आज के हुए अंग, भरी हुई सजग मुखाकृति, विरलश्मश्रु, वाणी में ओज, | लिए) जना था।" जनता ने जयजयकार की। शैली में गम्भीरता और निरालापन, यही व्यक्तित्व था वाणी के | ताऊजी और पिताजी दिल्ली के प्रथम नमक-सत्याग्रही जादूगर श्रद्धेय श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय का। | थे। दिल्ली में सबसे पहले नमक बनाकर उन्होंने बेचा। महामना जैन समाज में जागृति का शंखनाद करने वाले 'वीर, | मालवीय जी ने स्वयं उनसे नमक खरीदा था। अनेकान्त' जैसे प्रगतिवादी पत्रों के संपादक गोयलीय जी का जन्म कारावास के अनुभवों को पिता ने अपनी कहानी की 7 दिसम्बर, 1902 को वर्तमान हरियाणा के बादशाहपुर, जिला- | पुस्तकों 'गहरे पानी पैठ', 'जिन खोजा तिन पाइयाँ', 'कुछ मोती गुडगांवा में हुआ था। आपके पिता श्री रामशरणदास खानदानी कुछ सीप' और 'लो कहानी सुनो' (सभी भारतीय ज्ञानपीठ, बजाजे का व्यवसाय करते थे। कहा जाता है कि आपके दादा | दिल्ली से प्रकाशित) में पिरोया है। ये अनुभव अब साहित्य की दिगम्बरावस्था में जिन दर्शन करते थे। जब आप साढ़े तीन वर्ष के | बहुमूल्य थाती हैं। थे तब दादा जी का देहवासन होने से आपकी दादी आपको लेकर उनके जेल से छूटने का दिल्ली वासी बहुत बेतावी से कोसीकलां (मथुरा) उ.प्र. में आ गई थीं। इन्तजार कर रहे थे। भव्य स्वागत योजना थी। कारावास पिता जी गोयलीय जी की प्रारंभिक शिक्षा चौरासी (मथुरा) में हुई | आत्मशुद्धि के लिए गये थे। जेल से वे चुपचाप घर आ गये। लाला जहाँ उन्होंने मध्यमा तक अध्ययन किया। आपकी आजीविका | शंकर लाल और श्री आसफअली घर पर मिलने आये। पिताजी के और राजनीति में प्रवेश के संदर्भ में आपके पुत्र श्री श्रीकान्त त्याग एवं देशसेवा की सराहना की। श्री देवदास गाँधी ने गाँधी गोयलीय ने जो संस्मरण (तीर्थङ्कर नव.-दि. 1977) में लिखा है आश्रम में पिताजी को सर्विस देनी चाही; किन्तु उन्होंने देश सेवा उसे हम यहाँ यथावत् उद्धत कर रहे हैं। का मुआवजा स्वीकार नहीं किया। 'अपने पूर्वजों के नाम को रोशन करने के लिए पिताजी उनका दिल्ली के क्रान्तिकारियों से बहुत घनिष्ठ सम्पर्क दिल्ली आ गये। बाबा की बुआ (बैरिस्टर चम्पतराय जी की था। अपने ओजस्वी विचारों से वे आजीवन कारावास जाने वाले बहिन मीरो) के वात्सल्यपूर्ण निर्देशन में उन्होंने एक छोटा सा थे। पार्लियामेन्ट में साइमन कमीशन पर बम फेंका जाएगा, इसकी मकान लिया और बजाजे का पुश्तैनी कार्य संभाला। उनकी मिठास जानकारी उन्हें बहुत पहले से थी। उनके राजनैतिक शिष्यों में और ईमानदारी पर ग्राहक रीझे रहते थे। कारोबार चल निकला। क्रान्तिकारी श्री विमल प्रसाद जैन और श्री रामसिंह प्रमुख हैं। सबह-शाम सामायिक, स्वाध्याय और जिन-दर्शन उनका स्वभाव वे श्री अर्जुनलाल जी सेठी से बहुत प्रभावित थे। सेठीजी हो गया। दिल्ली के पहाड़ी धीरज और चाँदनी चौक ने उन्हें अपना पर उनके लिये संस्मरण ('जैन जागरण के अग्रदूत' भारतीय राजनैतिक नेता माना। एक बार वे चाँदनी चौक की विशाल जनसभा ज्ञानपीठ काशी) बहुत सजीव एवं मार्मिक बने हैं।" में धाराप्रवाह भाषण दे रहे थे। 'देहलवी टकसाली जुबान और गोयलीय जी लगभग 15 वर्ष भारतीय साहित्य की प्रसिद्ध मौके के चुस्त शेर' भीड़ को भारतमाता की बेड़ियाँ तोड़ने पर प्रकाशिका संस्था, भारतीय ज्ञानपीठ के अवैतनिक मंत्री रहे। यहीं जोश भर रहे थे। पुलिस-उच्चाधिकारी ने अदालत में कहा था उन्होंने ज्ञानपीठ की प्रसिद्ध पत्रिका 'ज्ञानोदय' का सम्पादन किया। 'गोयलीय साहब को सभा में गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल था। वे 'वीर' और 'अनेकान्त' के भी सम्पादक रहे। गोयलीय जी आप अवाम पर छाये हुए थे। पूरी भीड़ हम पर टूट पड़ती; अत: अपने जीवन में कितने ईमानदार थे यह बताने के लिए 'विकास' मीटिंग खत्म होने पर गोयलीय जी को गिरफ्तार करना मुनासिब और 'नया जीवन' के सम्पादक श्री अखिलेश शर्मा का निम्न समझा।" संस्मरण ही पर्याप्त है। आदरणीय ताऊजी (लाला नन्हेमलजी) और पिताजी | "सन् 1935 में भारतीय ज्ञानपीठ कार्यालय (काशी) को दिल्ली में एक साथ गिरफ्तार हुए। दादी ने अपने बेटों को जी | जाना हुआ। वहाँ गोयलीय जी डालमिया नगर से पधारे हुए थे। -फरवरी 2003 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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