Book Title: Jinabhashita 2003 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ पर स्त्रीपर्याय से मोक्ष नहीं जा सकती। यह कथन भी उसके | का सामना करना, प्रसव पीड़ा वैधव्य जैसे दुखों को समतापूर्वक सहनशील संवेदनशील स्वभाव का द्योतक है। इस स्वभाव के | सहते हुए जीवन निर्वाह कर लेती है। वह सभी परिजनों तथा कारण उसके मन में कहीं न कहीं दया के बीज अंकुरित हो जाते अतिथियों की सेवा भी उत्साहपूर्वक करती है और धार्मिक क्षेत्रों हैं जो उसके परिणामों को परिवर्तित कर देते हैं। ये हिंसात्मक में तो उसकी भूमिका अग्रणी है। तीर्थंकरों के समवशरण में विचारों को उग्रतमरूप में भडकने नहीं देते परिणामस्वरूप वह आर्यिकाओं की संख्या का आधिक्य इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इतना पाप कार्य नहीं कर पाती कि छठे नरक से आगे जा सके। जिनालय में पूजन विधानादि कार्यों में तथा व्रत उपवास आदि में इसी तरह आत्म साधना में राग अंश के कारण सवस्त्र होने तथा | महिलाओं की तथा चिकित्सालयों में परिचारिकाओं की बहुलता पूर्ण कर्मक्षय न कर सकने के कारण मोक्ष भी नहीं जा पाती। | सहज ही देखी जा सकती है। महिलाओं में मात्र एक्स क्रोमोसोम्स का होना तथा मस्तिष्क | इस प्रकार सहनशील स्वभाव के कारण नारी विविध क्षेत्रों के दोनों गोलार्धा में क्रिया नियन्त्रण व्यवस्था का समानरूप में बटा में अपने कार्यों को सफलतापूर्वक कर लेती है। होना उसके सहनशील होने का कारण है। इसी गुण के कारण वह भगवान् महावीर मार्ग पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र में होने वाले विरोधों/अवरोधों गंजबासौदा (विदिशा) म.प्र. आर्यिका-संघ द्वारा औरंगाबाद महानगर में महती धर्मप्रभावना प.पू. संतशिरोमणी आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी | प्रति कर्त्तव्य का महत्त्व बतलाया गया। उसके तुरंत उपरांत महाराज की सुशिष्या प.पू. आर्यिका 105 श्री अनंतमती माताजी 7.30 से 8.00 तक भक्तामर उच्चारण वर्ग में उच्चारण कैसे एवं प.पू. आर्यिका 105 श्री आदर्शमती माताजी, 30 आर्यिकाओं योग्य है, यह बतलाकर शुद्धता के साथ भक्तामर उच्चारण सभी एवं 20 ब्रह्मचारिणी दीदी के विशाल संघ के साथ औरंगाबाद उपस्थितिको इसका सराव भी करा दिया। यह वर्ग प्राय : प.पू. नगरी में दिनांक 20.11.2002 को पा.ब्र. आश्रम एलोरा के आर्यिका आदर्शमती माताजी एवं ससंघ आर्यिकाओं के द्वारा चातुर्मास उपरांत मंगल प्रवेश हुआ। संपन्न हुआ। दोपहर 2.30 से 3.30 तक श्रावकों की षड् आवश्यक अग्रसेन भवन, सराफा में 30वाँ आचार्य पदारोहण दिन कर्तव्यों की जानकारी प्राप्त हुई। इस वर्ग के माध्यम से सच्चे बहुत धूमधाम एवं अपार भीड़ समुदाय के साथ भक्तिमय | देव, शास्त्र, गुरु की आगमोक्त उपासना पद्धति की जानकारी वातावरण में संपन्न हुआ। मंगल प्रवचन एवं मंगल आशीर्वाद | प्राप्त होने पर औरंगाबाद का श्रावक प्रभावित हुआ है। 3.30 से प.पू. उपाध्यायं 108 श्री जयभद्र जी महाराज एवं आर्यिकाओं | 4.00 बजे तक श्रावकों के सभी शंकाओं का समाधान किया का प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में अध्यक्ष सकल मारवाड़ी महासभा जाता था। 4.00 से 4.45 तक पुनः आलोचना पाठ, प्रतिक्रमण अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम दरख और प्रमुख अतिथि के स्वरूप में के साथ ध्यान वर्ग किया गया है। दोपहर का वर्ग प.पू. आर्यिकाओं पा. आश्रम एलोरा के मंत्री पन्नालालजी गंगवाल एवं कोपरगाँव अनंतमती माताजी एवं प.पू. आर्यिका निर्मलमती माताजी के के सामाजिक कार्यकर्ता नितिन कासलीवाल थे। आचार्य श्री मंगल प्रबोधन से संपन्न होते थे। का फोटो अनावरण आचार्यश्री के पूजन संगीतद्वारा (णमोकार . कार्यक्रम को सफलता पूर्वक संपन्न कराने हेतु डॉ. सन्मति भक्ति मण्डल, राजाबाजार) भक्तिमय वातावरण में जालना | ठोले, दिनेश गंगवाल, भागचंद बिनायके, अशोक पाटणी, डॉ. निवासी झुंबरलालजी पाटणी एवं ब्र. भैय्या के करकमलों द्वारा | प्रेमचंद पाटणी, पन्नालाल गंगवाल, किरण गंगवाल, वसंतराव किया गया। आचार्य विद्यासागर आहार विज्ञान संस्था, श्री मनोरकर, शांतीनाथ गोसावी, प्रभाकरराव शिंगारे, दिलीप पहाड़े, 1008 चंद्रनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, भाजीबाजार एवं दिगम्बर सुकुमार साहुजी, पसारे, सुगंधी, महावीर ठोले, बडजाते, पाटणीर, जैन धार्मिक सेवा समिति द्वारा आर्यिकाद्वय के मंगल सान्निध्य बोपळकर, मच्छिंद्रकर, क्षीरसागर, मोगले आदि ने प्रयत्न किये में सप्तदिवसीय विद्या, ज्ञान एवं ध्यान शिविर का आयोजन | हैं। शिविर में प्रतिदिन 500-500 श्रावकों ने उपस्थित रहकर दिनांक 28.11.2002 से 4 दिसंबर तक श्री चंद्रसागर दिगम्बर इस-धर्मप्रभावना से, प्रभावित होकर सच्चे शास्त्र, गुरु के प्रति जैन धर्मशाला के भव्य हॉल में संपन्न हुआ। समर्पित हुए हैं। डॉ. सन्मति ठोले प्रतिदिन सुबह 6.30 से 7.30 तक विविध ध्यानों का सेक्रेटरी ज्ञान एवं उसकी पद्धति एवं श्रावकों को देव, शास्त्र, गुरु के आ. विद्यासागर आहार विज्ञान संस्था, एलोरा 22 फरवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36