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आचार्य यह श्लोक मातृत्व के श्रेष्ठत्व का विश्लेषण करने । असामान्य, अनोखा आदर्श है यह। मथुरा के शिलालेख से पता वाला है। माँ अपने पुत्र को जन्म देने के बाद उसका पालन-पोषण | चलता है कि जैन नारियों ने ही जैनमन्दिर और कलात्मक शिल्प
और संरक्षण भी करती है। हृदय में पैदा होने वाले वात्सल्य की | बनाने में नेतृत्व किया था। भावना से माता कठिन प्रसव वेदना भी सुसह्य मानती है। इसी अनेक जैन नारियों ने आर्यिकाका व्रत लिया, कठोर तपचर्या कारण मानव जीवन में, समाज में और संसार रचना में नारी को | की, मन और इन्द्रियों को वश में करने का यत्न किया। जम्बुस्वामी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। संसार के अनेक प्रसिद्ध नेताओं | के दीक्षा लेने के बाद उनकी पत्नी ने भी दीक्षा ली। वैशाली के का व्यक्तित्व बनाने का कार्य उनकी माताओं ने किया है। नेपोलियन, | चेटक राजा की कन्या चन्द्रासनी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार हिटलर, छत्रपति शिवाजी और महात्मा गान्धी के असमान्य जीवन | कर भगवान् महावीर से दीक्षा ली और आर्यिका व्रतका अनुष्ठान के लिये उनकी माताओं का योगदान ही कारण है। संसार के किया। वह महावीर के 36 हजार आर्यिकाओं के संघ में गणिका सर्वस्व त्याग, समस्त प्रेम, सर्वश्रेष्ठ सेवा और सर्वोत्तम उदारता बनी। पम्बबबे नाम की कर्नाटक की नारी ने तीस साल तपश्चरण 'माँ' नामक अक्षर में भरी है। मातृत्व के एक एकमेवाद्वितीय | किया। विष्णुवर्धन राजा की रानी शांतल देवी ने 1123 में विशेषत्व से ही समाज ने नारी को प्रथम वन्दनीय माना है। श्रवणबेलगोला में भगवान् जिनेन्द्र की विशालकाय प्रतिमा स्थापित धर्मनिष्ठ नारी
की तथा कुछ काल तक अनशन और ऊनोदर व्रत का पालन कर्तव्यनिष्ठा के साथ ही धर्मनिष्ठा में भी जैन नारियाँ प्रसिद्ध किया। हैं। जैन नारी ने जैनधर्मतत्त्व के अनुसार सिर्फ आत्मोद्धार ही नहीं | साहित्य क्षेत्र में कार्य किया, अपितु अपने पति को भी जैन धर्म का उपासक बनाया है अनेक जैन नारियों ने लेखिका और कवियित्री के रूप में
और अपने लड़के लड़कियों को सुसंस्कारित और आदर्श बनाने | साहित्य के क्षेत्र में योगदान दिया है। 1566 में रणमति ने यशोधरकाक का यत्न किया है। लिच्छिविवंशीय राजा चेटककी सुपुत्री चेलनाने नाम का काव्य लिखा । आर्य रत्नमती की समकितरास एक हिन्दीअपने पति मगधदेश के नरेश श्रेणिक को जैनधर्म का उपासक गुजराती मिश्र काव्य की रचना है। कर्नाटक में साहित्य के क्षेत्र में बनाया। उसके अभयकुमार और वारिषेण नामक दोनों पुत्रों ने उज्ज्वल नाम कमाने वाली कन्ती प्रसिद्ध है। उसे राजदरबार में ही सांसारिक सुख और वैभव का त्यागकर आत्मसाधना के लिये सम्मान और उच्च पद मिला था। महाकवि रत्नने अपनी अमरकृति अनेक व्रतों का पालन किया। कर्नाटक के चालुक्य नरेश को अजितनाथपुराण की रचना दान-चिंतामणि अंतेतेमब्बे के सहकार्य उसकी पत्नी जाकलदेवी ने जैनधर्मानुयायी बनाया और उसके | से ही 983 में की। श्वेताम्बर पथ की सूरिचरित्र लिखने वाली प्रसार के लिये प्रेरणा दी।
गुणसमृद्धि महत्तरा के चारुदत्तचरित्र लिखने वाली पाश्री, अनेक शिलालेख में जैन नारी के द्वारा जिनमन्दिर बनाने कनकावती आख्यान लिखने वाली हेमश्री नामके महिलायें प्रसिद्ध की जानकारी मिलती है। इन मन्दिरों के पूजोत्सव आदि का हैं। काव्यक्षेत्र में प्रतिभा सम्पन्न साहित्य निर्माण का महत्त्वपूर्ण प्रबन्ध भी उनके द्वारा किया जाता था। कलिंगाधिपति राजा खारवेल कार्य अनेक जैन महिलाओं ने किया है। उदाहरण के लिये अनुलक्ष्मी, की रानी ने कुमारी पर्वत पर जैन गुफा बनाई। सीरेकी राजा की अवन्ती, सुन्दरी, माघवी आदि प्राकृत साहित्य की पूरक कवियित्रियाँ पत्नी ने अपने पति का रोग हटाने के लिये और शरीर स्वस्थ होने हैं। उनकी रचनायें जीवन दान, प्रेम, संगीत,आनन्द और व्यथा, के लिये अपनी नथ का मोती बेचकर जिनमन्दिर और तालाब की आशा और निराशा, उत्साह आदि गुणों से भरी हुई हैं। इसके रचना की। आज ही यह मन्दिर 'मुतनकेरे' नाम से प्रसिद्ध है। अलावा नृत्य, गायन, चित्रकला, शिल्पकला आदि क्षेत्रों में भी जैन आहवमल्ल राजा के सेनापति मल्लमकी कन्या अत्तिमब्बे जैनधर्म महिलाओं ने असामान्य प्रगति की है। प्राचीन ऐतिहासिक काल में पर श्रद्धा रखने वाली और दानशूर थी। उसे ग्रन्थों में दानचिन्तामणि जैन नारी ने जीवन के सभी क्षेत्रों में अपना सहयोग दिया है। कहकर उल्लिखित किया गया है। उसन चादा आर सान का | समाज भी उसकी ओर सम्मान की दृष्टि से देखता था। समाज ने हजारों जिनमूर्तियाँ बनवाई ! लाखों रुपयों का दान दिया। जबलपुर नारी को उसकी प्रगति के लिये सब सुविधायें दी थीं। पुरुष और में पिसनहारी की मढ़िया नामक जैन मन्दिर है । एक जैन नारी ने नारी में सामाजिक सुविधायें मिलने की दृष्टि से अन्तर नहीं था। आटा पीसकर जो रकम कमाई, उससे वह मन्दिर बना है। कितना ।
'पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ' से साभार
रागद्वेषद्वयीदीर्घनेत्राकर्षणकर्मणा।
अज्ञानात्सुचिरं जीव: संसाराब्धौ भ्रमत्यसौ। भावार्थ- चिरकाल से यह जीव अज्ञान के द्वारा संसारसमुद्र में राग-द्वेष रूपी दो रस्सियों से मथानी की तरह घूम रहा है,(भ्रमण कर रहा है)
18 फरवरी 2003 जिनभाषित
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