Book Title: Jinabhashita 2002 09 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य जिनभाषित में आपके सम्पादकीय सभी स्पष्टोक्ति सहित | जिनभाषित के जून-जुलाई के अंक मिले। जून अंक आचार्य एवं समाज के लिए आगमिक विवादों को सुलझाने में काफी | श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज के प्ररेक कर्तत्व एवं व्यक्तित्व को उपयोगी एवं प्रशंसनीय हैं । बधाई स्वीकार करें। समर्पित है। विपरीत परिस्थितियों में विद्याध्ययन पश्चात संस्कृतपं. शिवचरणलाल जैन, शास्त्री हिन्दी में जयोदय, वीरोदय, दयोदय, भाग्योदय आदि विपुल साहित्य सीताराम मार्केट, मैनपुरी (उ.प्र) की रचना अद्भुत एवं प्ररेक प्रसंग है, 'वीतरागता की पराकाष्ठा' जून 2002 की जिनभाषित पत्रिका प्राप्त हुई। इसमें उद्वेलित करता है। उनका संदेश 'मोक्षमार्ग पर चलने के लिए सम्पादकीय लेख महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का 30वाँ समर्पित भाव से समीप आये उसे शरण देना और स्वयं अनासक्त समाधि दिवस एवं अन्य सभी लेख पठनीय, मननीय एवं अत्यंत रहकर अपने आचरण में तत्पर रहना' आत्मार्थी के कल्याण हेतु ज्ञानवर्द्धक हैं। पत्रिका का इतने सुंदर रूप में नियमित प्रकाशन ही राजमार्ग है। 'श्रुतपंचमी हमारा कर्तव्य' आलेख मार्गदर्शक है। महान उपलब्धि है, जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई व कोटिशः आज के समय जबकि यत्र-तत्र जिनवाणी का बहिष्कार अपने धन्यवाद। द्वारा ही की जा रही हो, श्रुतपंचमी का संदेश दिशाबोधक सिद्ध पत्रिका निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर रहकर उच्चतम होता है। ज्ञातव्य है कि 19.1.1935 में ग्वालियर स्टेट मे महगाँव ऊँचाइयों को प्राप्त करे ऐसी मेरी शुभभावना है। मैं इसमें बराबर में जैनधर्म के द्रोहियों द्वारा जैन मंदिर अपवित्र कर जैनशास्त्र जला सहयोग प्रदान करूँगा। मेरे पास 100जैन पत्र आते हैं, उनमें दिये थे। तब परिषद के प्रस्ताव पर सर सेठ हुकमचन्द्र जी के आपकी पत्रिका सर्वश्रेष्ठ है। नेतृत्व में 10 महानुभाव राजमाता ग्वालियर से न्याय प्रदान हेतु डा. ताराचन्द्र जैन बख्शी 'वीर' सम्पादक : 'अहिंसा वाणी' मिले। और 19.1.1936 को (महगाँव अत्याचार काण्ड) की वर्षी जिनभाषित के अंक अत्यन्त पठनीय तथा अनुकरणीय | पर उपवास जल्से एवं तार आदि से आन्दोलन किया। ऐसी सामग्री से साथ बराबर मिल रहे हैं। मई अंक में दोनों पूजा जागरूकता अब समाज में दिखाई नहीं देती। चिंता का विषय है। पद्धतियाँ आगमसम्मत लेख पढ़ा। बीसपंथ और तेरापंथ,पद्धतियाँ विश्वास है कि जिनदेवता-वाणी, गुरु आदि की रक्षा का भाव देश के कोने-कोने में (ये दोनों पद्धतियाँ) प्रचलित हैं। उत्तर जागृत होगा। भारत में तेरापंथ की बहुलता, परन्तु दक्षिण में बीस पंथ प्रचलन में | जुलाई अंक के देवदर्शन हिन्दुत्व और जैन समाज, अहिंसा हैं। अत: सामाजिक सामंजस्य के लिए जन भावनाओं का सम्मान पर हमला, सम्पादकीय एवं अन्य आलेख वस्तु स्वरूप का चित्रण होना चाहिए। एक तीर्थस्थल पर वर्षों से सार्वजनिक मस्ताकाभिषेक | करते हैं। समाज के कर्णधार, अपने आपसी मतभेद भुला कर में पंचामृत अभिषेक नहीं होता था, परन्तु एक व्यक्ति के महामन्त्री महावीर की वीतरागता/अहिंसा को केन्द्र बिन्दु बनाकर अपने बनने पर वहाँ यह पद्धति अपनायी गई। ऐसी स्थिति में तेरापंथी अस्तित्व की रक्षा में संगठित हो तभी हमारी आत्मियता अक्षुण्ण लोगों में रोष देखा गया। इतना ही नहीं जब अभिषेक करने वालों | बनी रहेगी। एकांकी अपनी-अपनी प्रशंसा, घटकों में विभाजन ने जल से अभिषेक की माँग की, तब वह अनसुनी कर दी गई। आदि स लाभ का अपक्षा हान हा आधक है। अत: नय-नय ऐसे लोगों के लिए इस लेख से शिक्षा लेनी चाहिए। जनभावना को | विवाद बिन्दु उत्पन्न कर समाज में विग्रह/विभ्रम के बीज बोये जा सर्वोपरि मानकर किसी को भी दूग्रही नहीं बनना चाहिए। रहे हैं। सम्पादक जी, आप अपने दीर्घ अनुभव एवं जैन समाज की जुलाई माह में देवदर्शन पर पूज्य आचार्य विद्यासागर जी व्यक्तिवादी छीन्न-भिन्न स्थिति को दृष्टिपात कर पत्रिका के माध्यम महाराज का प्रवचनामृत, श्री अजित प्रसाद जैन का "हिन्दुत्व और | से एकता के सूत्र संजोने की कृपा करें, इसी से जिन शासन, वीर जैन समाज" तथा जे.एल. संघवी का "अहिंसा पर हमला" लेख | शासन जयवन्त रहेगा। व्यक्ति नहीं शासन महान है। पढ़कर यदि समाज जागरूक बन सके तो अच्छा है । मूकमाटी पर डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल, अमलाई सम्पादकीय सम्पादक की विद्वत्ता का दिग्दर्शन कराता है। जिनभाषित जुलाई 2002 का अंक प्राप्त हुआ। हम हमेशा आत्मान्वेषी आचार्य श्री विद्यासागर जी, रत्नत्रय का प्रकाशपुंज, जिनभाषित के नये अंक की प्रतीक्षा करते रहते हैं। अन्य अजैन के साथ जिज्ञासा-समाधान भी पूर्ण लेख है। सामग्री का चयन मित्रों को भी इसके अंक दिखाते समय गौरव का अनुभव होता है। उत्कृष्ट गैट, अप सुन्दर है। इसके लिए बधाई। इस अंक का आलेख 'हिन्दुत्व और जैन समाज'- श्री अजित डॉ. नरेन्द्र जैन"भारती" वरिष्ठ सम्पादक पार्श्व ज्योति | प्रसाद जी का काफी महत्त्वपूर्ण व प्रासंगिक है। फिलहाल जैन अ.दि.जैन उ.मा. विद्यालय सनावद (म.प्र.) | समाज का प्रधान लक्ष्य अल्पसंख्यक' वाला मुद्दा ही होना चाहिए। 2 सितम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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