Book Title: Jinabhashita 2002 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 18
________________ इन्दौर आदमी भेजकर पंडित जी को बुलवाया गया। पंडित जी । सानिध्य के अभाव में लगभग चार वर्षों से टाला जाता रहा यह इन्दौर में पर्युषण में एक भी दिन प्रवचन नहीं कर पाए और उन्हें | पंच कल्याणक उत्सव पुनः अनिश्चय के घेरे में आ गया। ज्योंलौटना पड़ा। पंडित जी के आने पर आचार्यश्री ने उन्हें कहा | ज्यों पंच कल्याणक की तिथियाँ निकट आ रही थीं हमारे श्वांस "पंडित जी मेरा समाधि का समय आ गया है। मैं समाधि लेना | ऊपर नीचे हो रहे थे। जयपुर के कुशल वैद्य सुशील कुमार जी चाहता हूँ, आप सहयोग करें।" पंडितजी स्थिति की विषमता को | का उपचार चल रहा था। एक-डेढ माह की लम्बी टाइफाइड की देखकर भी घबराए नहीं और द्रढ़ शब्दों में बोले "आचार्यश्री | बीमारी ने आचार्यश्री की देह को इतना कृष बना दिया था कि आपके शरीर पर केवल आपका ही अधिकार नहीं है। यह समाज उठना बैठना भी दूभर था। पंच कल्याणक उत्सव में केवल 10की सम्पत्ति है। आपको इस प्रकार गहन विचार किए बिना | 12 दिन का समय शेष रह गया था। पू. आचार्यश्री हमारी चिंता समाधि लेने की बात नहीं सोचनी चाहिए, अभी आपके द्वारा इस | को जान रहे थे और समय पर किसी भी तरह किशनगढ़ पहुँचने कलि काल में महती धर्म प्रभावना होना है। जल्दी ही आपका रोग | के लिए चिन्तित थे। दूसरे दिन प्रातः काल आचार्यश्री ने, जिस दूर हो जाएगा।" पंडितजी के आगे आचार्यश्री निरुत्तर हो गये। | मंदिर में ठहरे हुए थे उसकी वेदी की तीन प्रदक्षिणा लगाई। हमने धीरे-धीरे रोग शमन होने लगा और कुछ ही दिनों में पूज्यश्री इस को साधारण रूप में लिया, किंतु संभवतः आचार्यश्री तो स्वस्थ हो गए। जिस चमत्कारी ढंग से ऐसा भीषण रोग हुआ उसी अपनी देह की शक्ति को तोल रहे थे। शाम को लगभग 5 बजे मैं चमत्कारी ढंग से वह दूर भी हो गया और ऐसे मौत हार कर भाग | किसी सज्जन के निमंत्रण पर भोजन करने गया ही था कि पीछे से गई। मंदिर के माली ने आकर समाचार दिया कि महाराज पीछी कमंडलु तृतीय बार थुबौन क्षेत्र के द्वितीय चातुर्मास में आचार्यश्री | उठाकर मंदिर के बाहर आ गए हैं और चांदपोल की ओर जाने की पर अत्यंत भीषण रोग का आक्रमण हुआ। संभवत: इस बार तैयारी में है। मैं उलटे पांव लौटा और पू. आचार्यश्री का कमंडलु पहले दो बार की अपेक्षा रोग की भीषणता अधिक थी। रोग के | पकड़ चलने लगा। रास्ते में आए दो-तीन मंदिरों में आचार्य श्री से कारण शरीर केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया था। उस समय | रूकने की प्रार्थना की, किंतु वे तो आगे बढ़ते गए। मेरा विचार था का आचार्यश्री का फोटो देखकर उन्हें पहिचान पाना कठिन है। कि उन्हें आधा किलोमीटर से अधिक चलना नहीं चाहिए। किंतु तीन-चार मुनिराज कठिनता से उन्हें खड़ाकर आहार के लिए | वे तो चलते रहे और चांदपोल दरवाजे के बाहर खजांची जी की उठाते थे। कई दिन तक केवल आधा पौन कटोरी काढा मात्र | नसियाँ में आकर रूके। अब हमें यह विश्वास हो गया कि अब आहार में दिया जाता रहा। उस औषधि के आहार के समय आचार्यश्री किशनगढ़ की ओर विहार करेंगे। सांयकाल वैद्य जी सैकड़ों ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी बहिनें एवं श्रावक, श्राविकाएँ आए। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री को एक-डेढ़ किलोमीटर से धर्मशाला के बगल की चट्टानों पर औषधि के निरंतराय आहार के अधिक नहीं चलाना है, नहीं तो टायफाइड का पुन: आक्रमण हो लिए णमोकार मंत्र का जाप देते रहते थे। अंत में 15-20 दिन के जायेगा। किशनगढ़ से और भी लोग आ गए। उस रात हम सो बाद धीरे-धीरे आचार्य श्री स्वस्थ होने लगे और पर्युषण के चतुर्दशी | नहीं सके । योजनाएँ बनाने में ही रात निकल गई। रात को नौ बजे के दिन सब भक्त जनों की प्रार्थना पर 10 मिनिट उपदेश दिया। किशनपोल बाजार से एक दुकान से लकड़ी का पटिया व प्लास्टिक सब श्रोता धन्य हो गए। आगामी 8-10 दिनों में आचार्यश्री उठने- की रस्सी खरीदकर डोली बनवाई जिसमें आचार्यश्री को बैठाकर बैठने, चलने लगे और धीरे-धीरे स्वस्थ हुए। ऐसे पुनः मौत हार | ले जाया जा सके। किशनगढ़ से एक जीप में चौके का पूरा सामान गई। आ गया। पुरुष महिलाएँ भी आ गए। रात को ग्यारह बजे अजमेर चौथी बार पू. आचार्यश्री ने मौत का सामना किया कुंडलपुर | केसरगंज के श्री श्रीपत जी को फोन किया और उनसे जैसवाल से किशनगढ़ की यात्रा के बीच जयपुर में। कुंडलपुर से जयपुर | नव युवक मंडल के आठ मजबूत युवकों को डोली उठाने के लिए तक की लगभग 700 किलोमीटर की लगातार लम्बी यात्रा भीषण | भेजने के लिए कहा। उन्होंने तुरंत जीप से आठ युवकों को भेजा गर्मी के दिनों में पूरी की। यह यात्रा वास्तव में कठिन रही। मार्ग | जो प्रात: पाँच बजे तक जयपुर पहुँच गए। हम सबने मिलकर में एक बार तो लालसोट के आस-पास आहार की व्यवस्था भी मीटिंग की और आचार्यश्री को डोली से ले जाने की योजना नहीं बन पाई। गर्मी में लम्बा चलने के कारण जयपुर आते-आते | बनाई। हमने सोचा कि एक-डेढ़ किलोमीटर तक चलने के बाद आचार्यश्री को तीव्र ज्वर ने आ घेरा, जो धीरे-धीरे टाइफाइड में | सड़क के किनारे किसी वृक्ष के नीचे थोड़ी देर तक विश्राम करने बदल गया। निरंतर 106 डिग्री के आस-पास ज्वर रहने लगा। की आचार्य श्री से प्रार्थना करेंगे और जब वे बैठ जायेंगे तो उठने से आचार्यश्री के सानिध्य के बिना पंच कल्याणक उत्सव नहीं कराने पहले ही उन्हें चार युवक पकड़कर डोली में बैठा देंगे और का संकल्प लिए मदनगंज-किशनगढ़ की समाज उनके जयपुर | एकदम तेजी से चल पड़ेंगे। युवक इतने उत्साही थे कि वे कहने तक आने से अत्यंत हर्षित थी, किंतु आचार्यश्री की यह असाधारण | लगे कि चार-चार युवक बारी-बारी से डोली उठायेंगे और एक अस्वस्थता समाज की चिंता का कारण बन गई। पू. आचार्यश्री के | दिन में बीस पच्चीस किलोमीटर आसानी से पार कर लेंगे। चौका 16 सितम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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