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गृहस्थों को चाहिए कि अपने केश तथा दाँतों को धोकर पूर्व दिशा सभी शास्त्र सौधर्म, सानत्कुमार, ब्रह्म, लान्तव,आनत तथा अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके जीवरहित, पवित्र तथा | आरण स्वर्ग के इन्द्रों को दक्षिणेन्द्र मानने में एक मत हैं, परन्तु मार्जन (झाड़े) किये हुए किसी स्थान में छाने हुए तथा शास्त्रोक्त | पाँचवें एवं छठे युगल के किस स्वर्ग में इन्द्र रहता है इस संबंध में मन्त्रों से पवित्र किए हुए निर्मल जल से प्रतिदिन जिनपूजा के लिए | शास्त्रों में विभिन्न मत पाये जाते हैं। स्नान करें 150-51 ।।
(अ) निम्नलिखित शास्त्रों में पाँचवें युगल के महाशुक्र श्री यशस्तिलकचम्पू उपासकाध्ययन (रचियता-सोमदेव) | स्वर्ग में छठे युगल के सहस्त्रार स्वर्ग में इन्द्र माने गये हैं-श्री श्लोक नं. 439 में कहा है :
तिलोयपण्णत्ति अधिकार-8, गाथा नं. 131 से 135 एवं 341 से दन्तधावनशुद्धास्यो मुखवासोवृताननः । 352, सिद्धांतसार दीपक अधिकार-15, श्लोक 6-7, श्री त्रिलोकसार
असंजातान्यसंसर्गः सुधीर्देवानुपाचरेत्।।439॥ गाथा 4541
अर्थ- दातोन से मुख शुद्ध करे और मुख पर वस्त्र लगाकर (आ) निम्नलिखित शास्त्रों में पाँचवें युगल के शुक्र स्वर्ग दूसरों से किसी तरह का सम्पर्क न रखकर जिनेन्द्र देव की पूजा | में और छठे युगल के सतार स्वर्ग में इन्द्र माने गये हैं-सर्वार्थसिद्धि, करें 1439॥
राजवार्तिक, तत्त्वार्थवृत्ति, श्लोकवार्तिक इन सभी में तत्त्वार्थसूत्र सागारधर्मामृत अध्याय 6 के श्लोक नं. 3 की स्वोपज्ञ अध्याय-4, के 19वें सूत्र की टीका में तथा वृहदद्रव्यसंग्रह की टीका करते हुए पं. आशाधर जी ने शुचिः शब्द के अर्थ में "विधिवत् गाथा 35 की टीका में। शौच, दंतधाव न आदि करके" पूजन करे ऐसा कहा है।
(इ) हरिवंशपुराण सर्ग6 श्लोक नं. 101-102 के अनुसार इस प्रकार उपर्युक्त श्रावकाचारों के अनुसार दन्तधावन | | ब्रह्म और शुक्र स्वर्ग में इन्द्र माने गये हैं तथा लान्तव-कापिष्ठ (मंजन) करके ही मंदिर प्रवेश या पूजन करने का विधान पाया | युगल स्वर्ग में और सतार-सहस्त्रार स्वर्ग में इन्द्र माने गये हैं। जाता है।
उपर्युक्त तीनों मतों को ध्यान में रखने से यह निश्चित होता प्रश्नकर्ता - एच.डी. बोपलकर, उस्मानाबाद
जिज्ञासा-स्वर्ग के इन्द्रों में से कौन-कौन से इन्द्र दक्षिणेन्द्र 1. उपर्युक्त "अ" मान्यता वाले शास्त्रों के अनुसार पहले, हैं और कौन से उत्तरेन्द्र ?
तीसरे, पाँचवें, सातवें और तेरहवें, पन्द्रहवें स्वर्ग के 6 इन्द्र दक्षिणेन्द्र समाधान - तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार 16 स्वर्गों में 12 इन्द्र |
इन्द्र हैं और शेष 6 इन्द्र, उत्तरेन्द्र हैं। हैं अर्थात् सौधर्म ऐशान, सानत्कुमार व माहेन्द्र में एक-एक इन्द्र
2. उपर्युक्त "आ" मान्यता के अनुसार पहले, तीसरे, है। ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ, शुक्र-महाशुक्र, सतार-सहस्त्रार
पाँचवे, सातवें, नोंवें, ग्यारहवें, तेरहवें, पन्द्रहवें स्वर्ग के आठ इन्द्र इन चार युगलों में एक-एक इन्द्र हैं तथा आनत, प्राणत, आरण, अच्युत इन चार स्वर्गों में एक-एक इन्द्र है। यहाँ यह भी समझ
दक्षिणेन्द्र हैं शेष चार इन्द्र उत्तरेन्द्र हैं। लेना चाहिए कि स्वर्ग नं. 1-3-5-7-9-11-13-15 तो दक्षिण 3. श्री हरिवंशपुराण के अनुसार पहले, तीसरे, पाँचवे, के हैं, यदि इनमें इन्द्र रहता है तो दक्षिणेन्द्र है और शेष बचे हुए | नौंवें, तेरहवें और पन्द्रहवें स्वर्ग के 6 इन्द्र दक्षिणेन्द्र और शेष 6 2-4-6-8-10-12-14-16 ये उत्तर के स्वर्ग हैं, यदि इनमें इन्द्र | इन्द्र उत्तरेन्द्र हैं। रहता है तो उत्तरेन्द्र होता है।
___1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा- 282002 (उ.प्र.)
है कि
('जिनभाषित' के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा प्रकाशन स्थान
1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) प्रकाशन अवधि
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सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा- 282002 (उ.प्र.) ___मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है।
रतनलाल बैनाड़ा, प्रकाशक
22 सितम्बर 2002 जिनभाषित
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