Book Title: Jinabhashita 2002 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ ___750 750 750 छात्रावास में पधारने वाले संतों ने भी छात्रावास की प्रगति एवं | संस्थान द्वारा छात्रावास के छात्रों को ही संस्कारित नहीं उद्देश्यों को देखते हुये भरपूर आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन दिया है। किया जा रहा है अपितु समाज में या श्रावकों में धर्म के प्रति आ छात्रावास में गतवर्ष आचार्य श्री 108 बाहुबली सागर जी महाराज | रही उदासीनता को दूर कर उनके जीवन में सम्यक श्रद्धा जागृत ससंघ, उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री | करते हुये उन्हें पूजन, ध्यान, जैनदर्शन आदि का प्रशिक्षण देश के 108 तरुणसागर जी महाराज ससंघ, उपाध्याय श्री 108 समतासागर विभिन्न स्थानों पर शिविर लगा-लगाकर दिया जाता है । गतवर्ष के जी महाराज, मुनि श्री 108 क्षमासागर जी महाराज, मुनिश्री 108 | शिविरों एवं उनसे लाभान्वितों का विवरण निम्न प्रकार है : वरदत्तसागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री 108 रविनन्दी जी महाराज क्र. स्थान प्रांत | शिविरावधि शिवि. सं. आदि पधारे और छात्रों से सीधी बातचीत की तथा उनके ज्ञानार्जन 01 | शिवपुरी मध्यप्रदेश | 11 अक्टू. से 19 अक्टू. की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए छात्रों को एवं संस्थान को भरपूर | भोपाल मध्यप्रदेश 21 अक्टू. से 29 अक्टू. ___350 आशीर्वाद दिया। आचार्य श्री 108 विद्यानन्द जी महाराज, आचार्य 03 | मेरठ उत्तरप्रदेश 21 अक्टू. से 30 अक्टू. श्री 108 वर्द्धमान सागर जी महाराज, परम विदुषी आर्यिका 04 | कोटा राजस्थान 21 दिस. से 31 दिस. 2200 सुपार्श्वमति जी व उनके संघस्थ साधुजनों का भी छात्रावास को | सोलापुर महाराष्ट्र 02 मई से 14 मई आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। तारंगा जी गुजरात 19 मई से 28 मई छात्रावास के छात्र कॉलेज जाकर जो लौकिक शिक्षा प्राप्त | मडावरा उत्तरप्रदेश 15 मई से 25 मई 350 कर रहे हैं, उनका गतवर्ष का परीक्षा परिणाम भी श्रेष्ठ रहा जो | गुना मध्यप्रदेश 25 मई से 1 जून निम्न प्रकार है: 09 कृष्णानगर दिल्ली 5 जून से 15 जून कक्षा छात्र सं.] उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण परीक्षा 10 | कैलाश नगर दिल्ली 16 जून से 23 जून प्रथम द्वितीय तृतीय फल गाँधी नगर, दिल्ली 16 जून से 23 जून श्रेणी श्रेणी श्रेणी 12 | आगरा,छीपीटोला उत्तरप्रदेश 20 जून से 30 जून कनिष्ठ उपाध्याय 100% | रेवाड़ी हरियाणा 14 अप्रैल से 22 अप्रैल वरिष्ठ उपाध्याय 17 | 01 | 01 96% |मांतीतुगी महाराष्ट्र 30 मई से 5 जून 300 शास्त्री प्रथम वर्ष 100% 15 | बारामती महाराष्ट्र 8 जून से 16 जून शास्त्री द्वितीय वर्ष | 08 | 13 | 100% | उदयपुर राजस्थान 21 जून से 29 जून 400 शास्त्री तृतीय वर्ष | 16 94% 17 | सहारनपुर | उत्तरप्रदेश 22 जून से 30 जून 225 आचार्य प्रथम वर्ष 01 01 | - 100% 18 | विश्वास नगर, दिल्ली 23 जून से 30 जून | 400 इस वर्ष जुलाई 2002 में 37 छात्रों को परीक्षा एवं साक्षात्कार यहाँ के विद्वान छात्र पर्युषण एवं अन्य पर्यों पर प्रवचनार्थ लेने के बाद नवीन प्रवेश दिया गया जिन 15 छात्रों ने शास्त्री तृतीय | भी देशभर में जाते हैं। गत वर्ष दसलक्षण पर्व में प्रवचन हेतु वर्ष उत्तीर्ण कर ली उसमें से 3 छात्रों ने आचार्य में प्रवेश लिया है, दो संस्थान के छात्रों एवं सम्बन्धित 129 विद्वानों को विभिन्न स्थानों छात्र बी.एड्. करने के लिये दिल्ली, एवं श्रेगरी (कर्नाटक) चले गये पर भेजा गया था। इस वर्ष भी अभी तक बहुसँख्या में विभिन्न हैं। दो छात्रों ने एम.ए. में प्रवेश लिया है, शेष छ: छात्रों की सेवायें स्थानों से पत्र प्राप्त हो चुके हैं। आशा है कि इस वर्ष और भी विभिन्न जैन कॉलेज एवं जैन संस्थाएं प्राप्त कर रही हैं। वर्तमान में अधिक विद्वानों को भेज सकेंगें। छात्रावास में अध्ययनरत छात्रों की स्थिति निम्न प्रकार है : संस्थान में छात्रों को सभी सुविधा निःशुल्क होने के कारण कक्षा गत वर्ष की स्थिति | वर्तमान स्थिति | संस्थान पर आर्थिक भार स्वाभाविक है। संस्थान के लेखे यथा (छात्र संख्या) (छात्र संख्या )। समय अंकेक्षित कराये जाकर आयकर विभाग को विवरण प्रस्तुत कनिष्ठ उपाध्याय 27 किया जाता है। संस्थान को दिया गया दान आयकर अधिनियम वरिष्ठ उपाध्याय 80जी के अन्तर्गत आयकर से मुक्त है। यह भी उल्लेखनीय है कि शास्त्री प्रथम वर्ष यहाँ दिए गये सहयोग (दान) के एक-एक पैसे का सदुपयोग शास्त्री द्वितीय वर्ष 20 होता है तथा दातार को ज्ञानदान, आहारदान,औषधदान एवं अभयदान शास्त्री तृतीय वर्ष (चारों प्रकार के दान) का लाभ प्राप्त होता है। अतः अनुरोध है आचार्य प्रथम वर्ष कि संस्थान को अधिक-से-अधिक तन-मन-धन से सहयोग आचार्य द्वितीय वर्ष प्रदान कर जीवन्त प्रतिमायें संस्कारित करने एवं जिनवाणी के 114 प्रचार-प्रसार में सहभागी बन पुण्यार्जन करें। इसके अतिरिक्त 8 अन्य साधर्मी युवक, जो केवल शिक्षण ही मानद् मंत्री लेना चाहते हैं, भी छात्रावास में नियमित रूप से अध्ययन कर रहे हैं। श्री दिग. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर 24 सितम्बर 2002 जिनभाषित 21 03 01 134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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