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वचन में एकरूपता लानी होगी तभी हम युवा पीढ़ी को धर्म की । संगत की त्रिवेणी है। किंतु प्रस्तुतीकरण, भाषा-शैली पुरानी है, भावना में निहित वास्तविक कल्याण की ओर कर पायेंगे। जो नई पीढ़ी को कम आकर्षित कर रही है। इसे नया रूप देना
युवा शक्ति एक ऐसी शक्ति है, जिससे बड़े से बड़े काम | जरूरी हो गया है। एक ओर तो हम पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा दे आसानी से हो जाते हैं। क्योंकि युवाओं में जोश होता है, कुछ कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी संस्कृति वाले शाकाहार, रहनगुजरने की क्षमता होती है और जो करना चाहते हैं,उसे जल्द ही सहन एवं फैशन में भारतीयता की नकल कर रहे हैं। सभाकरके सबके सामने प्रस्तुत करते हैं । युवाओं की तार्किक शक्ति, संस्थाओं के कार्यक्रमों में अथवा प्रवचनों में हम देखते हैं कि सोचने, विचारने की शक्ति बच्चों और वृद्धों की अपेक्षा अधिक | बुजुर्ग एवं बच्चे युवक-युवतियाँ सभी होते हैं कितु मेरा अनुभव है होती है। वे जो सोच लेते हैं, करके दिखलाते हैं। धर्म के प्रचार- | कि काफी संख्या में युवा पीढ़ी ध्यान से प्रवचन/व्याख्यान/भाषणों प्रसार के लिये आवश्यक है, कि नव युवकों को इस ओर प्रेरित | को सुनते हैं तथा यदि कहीं उन्हें शंका होती हैं, तो पास बैठे लोग किया जाये। इसी बात को लक्ष्य करके जगह-जगह मंडल, युवा | तुरंत समाधान भी करते हैं। क्या उसे इनकी धर्म प्रभावना नहीं संगठन, युवा फेडरेशन आदि संस्थायें स्थापित हैं।
| मान सकते हैं? अवश्य मानते हैं। विज्ञान के नवीनतम आरामदेह संसाधन और भोग सामग्रियाँ
हमारा प्रत्येक जैन-परिवार से आग्रह है कि साधु-साध्वियों इतने समय के पश्चात भी मानव जगत में शांति का सौहार्दपूर्ण
के सान्निध्य में होने वाले प्रवचनों, सभाओं में अवश्य ही युवा वातावरण निर्मित करने में समर्थ नहीं हो सकी हैं, और नहीं
पीढ़ी को भेजने एवं साथ ले जाने का लक्ष्य रखें। युवक-युवतियों भविष्य में कर पाना ही संभव है। आज युवा को भौतिक पर्यावरण की चकाचौंध से हटाकर धर्म की आरे प्रेरित करना है, क्योंकि
से भी कहना है कि घर में कभी अश्लील साहित्य न पढ़ें, बल्कि विश्व में शान्ति लाना है। शांति लाने का एक मात्र उपाय धार्मिक
जैन साहित्य अवश्य पढ़ें। जिससे कि अपने संस्कारों को पूर्ववत् भावनायें जागृत करना है।।
संजाये रखें और गर्व का अनुभव करें। तथा समस्त युवा वर्ग से आज अंग्रेजी शिक्षा युवाओं पर अधिक हावी है। बदलते
आग्रह है कि हमेशा अहिंसामयी जैन-धर्म का प्रचार-प्रसार करें। परिवेश में तो अंग्रेजी शिक्षा गलत नहीं है। किंतु अपने धर्म एवं
तब हम कह सकते हैं कि समाज में युवाओं की अहं भूमिका है। संस्कारों के साहित्य को भी इसमें जोड़ना जरूरी है। युवा वर्ग
समाज का उत्थान युवाओं के द्वारा ही हुआ है, और होता रहेगा। आदि कोई बात स्वीकारना भी चाहता है, तो उसके लिए वैज्ञानिक
सुपुत्री - श्री सुरेश जैन 'मारौरा' आधार होना जरूरी है। हमारा धर्म बौद्धिक, वैज्ञानिक एवं तर्क
जीवन सदन, सर्किट हाउस के पास शिवपुरी (म.प्र.)
वाह रे! दूध के धुले
सब जन अपने आप को, समझत हैं निर्दोष। किन्तु उन्हें यह होश ना, यह भी है इक दोष ॥ मात्र दोष ही देख मत, कुछ तो गुण भी देख। दोष देखना आपका, बडा दोष है एक ॥ कठिन काम समझो वही, जो खुद को उपदेश। सरल काम समझो वही, जो पर को उपदेश ॥ सज्जन पूजन भजन में, अपना समय बिताय। दुर्जन भोजन कलह में, जीवन व्यर्थ गमाय ॥ दुर्गुण रूपी खून से, भरे हो खुद हि आप। फिर भी दूध के ही धूले, क्यों समझत हो आप॥ पाप करे दिन रात तो, पुण्य कहाँ से आय। बोये बीज बबूल तो, आम कहाँ से आय ॥
मुनि श्री उत्तमसागर जी केवल दुर्गुण देखना, दुर्जन का है काम। ज्यों सूअर मल शोधता, पाकर भी फल-धाम ॥ साथी का साथी बनो, चलो साथ ही साथ। यह न बने तो मत करो, साथी का ही घात ।।
आँखें सब को देखती, खुद को देखत नाहि । दुर्जन भी पर दोष ही,-देखे खुद को नाहि ।। सज्जन का धन गुण रहा, दुर्जन का धन दोष। दोनों उद्यम नित करें, भरने निज-निज कोष । बोली गोली से बड़ी, कर देती है घाव। याते ऐसा बोल मत, बिगड़े सब के भाव ।। दुर्जन की अरु आग की समझो एक ही जात । दूसरों को तो शुद्ध करे, स्वयं राख हो जात।
(संघस्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज)।
-सितम्बर 2002 जिनभाषित 19
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