Book Title: Jinabhashita 2002 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य जिनभाषित एक अनूठी पत्रिका है। इसके अन्तस्तत्त्व का । बोध कथाएँ और व्यंग्य किसी मासिकी का ऐसा ज्ञानात्मक अध्ययन करते ही पता चल जाता है कि इसमें उच्चकोटि के | प्रिय व्यंजन होता है, जिसे हर पाठक चखना चाहता है। जब लेखक एवं मनीषियों के अत्यन्त उत्तम लेख हैं। पत्रिका में जैन पाठक गूढ़ चिंतनपरक लेखों से बोध कथाओं की संस्कारशीलता समाज की चहुँमुखी प्रगति का आकलन भी किया है साथ ही | पर आँखें डालता है तो निश्चित ही वह अपने बच्चों को पुकारता जिज्ञासा का समाधान भी पाठक के मानस को सन्तुष्टि प्रदान करता | होगा कि बेटा, आओ ! यह पृष्ठ पढ़ो। है। मुझे चिंतनपूर्ण लेखों के अतिरिक्त संक्षिप्त कविताएँ बहुत शिक्षा का श्रेयस संस्कारों का सिंहनाद हो/ होना चाहिए। आकर्षित करती हैं। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी के लेख | 'जिनभाषित' ऐसा गुरु बनकर अवतरित हुआ है, जो ऐसी शिक्षा आध्यात्मिक ज्ञान को अनुभवपूर्ण वाणी में मुमुक्षुओं के लिये | देने के लिए संकल्पित है, जो संस्कारों के बीज रोपण कर सके। प्रेरणा-प्रसून हैं। पत्रिका अपने कलात्मक आकार-प्रकार, उत्तम 'विज्ञेषु किं अधिकम्' छपाई एवं मुखपृष्ठ के चित्र द्वारा पाठक पर गहरी छाप छोड़ती है। प्राचार्य निहालचंद जैन जवाहर वार्ड, फरवरी, 2002 के अंक में सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरि का एक अत्यन्त बीना (म.प्र.)-470113 आकर्षक विहंगम चित्र बरबस तीर्थ की ओर हमारे मन को आकर्षित 'जिनभाषित' का मार्च अंक प्राप्त हुआ। सम्पूर्ण अंक करता है। पत्रिका अल्प समय में ही जैन समाज की एक अति ज्ञानस्तरीय सामग्री से समन्वित है। ब्र. महेश जैन, सांगानेर का उत्तम पत्रिका बन गई है। लेख-आहारदान की विसंगतियाँ सिर्फ विचारणीय ही नहीं, अपितु 'नई पीढ़ी के सम्बन्ध में सम्पादकीय, उनकी अद्यतन अनुकरणीय हैं। भावनाओं की पारदर्शी विवेचना है। ब.संदीप 'सरल' डॉ. जयकृष्ण प्रसाद खण्डेलवाल बीना (म.प्र.) 6/240 बेलनगंज आगरा (उ.प्र.) 282002 __'जिनभाषित' का फरवरी, 2002 का अंक मिला। आपने एक श्रावक के घर दस्तक देता हुआ यदि जिनभाषित आ 108 मुनि श्री प्रमाणसागरजी द्वारा लिखित शास्त्र'जैन तत्त्वविद्या' रहा है, तो यह उसका अहोभाग्य है। दिगम्बर जैन समाज की, का संक्षेप सार बताकर जैनधर्म के जिज्ञासु युवा वर्ग को यह शास्त्र इतने अल्प समय में शीर्ष स्थान ग्रहण करने वाली यह मासिकी पढ़ने के लिये प्रेरित किया। पढ़ने पर लगा, वास्तव में 'जैन तत्त्व अपनी गुणवत्ता के कारण ऐसी पहचान बना पायी है। इसके पीछे विद्या' आधुनिक भाषा-शैली में लिखा वैज्ञानिक सन्दर्भो सहित दो कारण नजर आ रहे हैं: प्रामाणिक ग्रन्थ है। 1. सम्पादक का वैशिष्ट्य-जो अध्यात्म, संस्कृत, प्राकृत समय-समय पर इसी प्रकार के आधुनिक भाषा-शैली के और व्याकरण के निष्णात विद्वान हैं और सेवानिवृत्त प्रोफेसर। ग्रन्थों का विवरण प्रकाशित करें तो युवावर्ग को लाभ मिलेगा। 2. समाज की धड़कन को, राडार की भाँति लक्ष्य कर | मुखपृष्ठ पर मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र का चित्र देखकर मन प्रसन्न एक सही प्रतिबिम्ब उजागर करना तथा चिन्तनशील, शोधपरक, हुआ। प्रकृति का मनोहारी दृश्य देखकर क्षेत्र पर जाने की इच्छा वैज्ञानिक आलेखों के साथ परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज बलवती हो गयी। काश! आप क्षेत्र का परिचय भी अन्दर के पृष्ठ के वचनामृतों को किसी न किसी विधा में पाठकों को उपलब्ध पर देते तो खुशी होती। छपारा पंचकल्याणक पर दिये गये आचार्यश्री कराना। विद्यासागरजी के प्रवचन पढ़कर ऐसा लगा, मानो आचार्यश्री की मुखपृष्ठ की बहुरंगी आभा में दिव्यमान किसी न किसी आवाज सुन रहे हों। प्रवचन को पढ़कर हम 'जिनभाषित' के सिद्धक्षेत्र/अतिशय क्षेत्र का मनमोहक चित्र इसकी आस्था को माध्यम से धन्य हो गये। 'संस्कार ही संतान के भविष्य का निर्धारण द्विगुणित कर देता है। करते हैं', प्रवचन दिल को छू गया। ऐसे प्रवचनों के प्रकाशन से कविताओं/गीतों का एक प्राञ्जल मापदण्ड सम्पादकजी | पत्रिका निश्चितरूप से युवावर्ग को सही दिशा देकर धर्म के प्रति ने सुनिश्चित कर चिंतन के क्षैतिज को बहुआयामी बनाया है। रुचि जाग्रत करेगी। 'शंका-समाधान' अध्यात्म-जगत की ताजी खबर होती अन्त में, यह सुझाव देना चाहूँगा कि पत्रिका समाचारों का है, जिससे मासिकी की नव्य/अभिनवता बनी रहती है और इस | प्रकाशन भी करे, जिससे देश को जैन समाज की गतिविधियों की उत्तरदायित्व को पं. रतनलाल बैनाड़ा बखूबी निभा रहे हैं। वर्षों जानकारी मिलती रहे। पंकज कुमार गंगवाल की स्वाध्याय साधना मथकर नवनीत उगल रही है। मंत्री-जैन नवयुवक मंडल, किशनगढ़- रैनवाल (राज.) 4 अप्रैल 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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