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समाचार
चर्चा हो सके। ब्र. पवन कमल जी ने कहा कि पंडित जी के
कृतित्व को और अधिक स्मरणीय बनाना हमारा कर्त्तव्य है। पं. डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य
श्रेयांस दिवाकर जी ने कहा कि जिनवाणी की गोद सूनी होती है, जबलपुर-जैन समाज के गौरव, माँ जिनवाणी के सच्चे
कोख नहीं। पंडित खेमचंद जी ने कहा कि पंडित जी विद्वत्न के उपासक, प्रेम, वात्सल्य, करुणा के संगम श्रद्धेय डॉ. पंडित पन्नालाल
साथ नर-रत्न भी थे। पंडित जी के मुख से नि:सृत अमृत भारती जी की प्रथम पुण्यतिथि एवं डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य श्रुत
का पीयूष पीकर हजारों छात्र धन्य हुए। संसार में बुराइयों, दोषों संवर्धन सम्मान समारोह विद्वत्संगोष्ठी के साथ प्रकाण्ड विद्वानों
की चर्चा करने वालों की कमी नहीं है, पर पन्नालालजी गुरुवर की गरिमामय उपस्थिति में सानंद सम्पन्न हुआ। प्रथम श्रुत संवर्धन
छात्रों के सद्गुणरूपी देवता को प्रोत्साहित कर विकास का पथ सम्मान बाल ब्रह्मचारी अध्यात्म मनीषी चारित्रनिष्ठ विद्वान, ज्ञान
प्रशस्त करते थे। डॉ. उदय चंद जी ने महान् शिक्षा शास्त्री पंडित वैराग्य के अनुपम संगम परम श्रद्धेय 'रतनलाल जी शास्त्री' इन्दौर
जी को प्रगतिशील विचारवादी मानते हुए कहा-पंडित जी का के कर कमलों में शोभायमान हुआ। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में
जीवन साहित्य एवं संस्कृतिमय था। ज्ञान रूपी रथ में आरूढ़ दैनिक भास्कर के सम्पादक श्री गोकुल शर्मा ने भावविभोर होते
महामना ही संसार का कल्याण करते हैं। ख्याति लब्ध साधक ब्र. हुए कहा-मैने जब जब श्रद्धेय पन्नालालजी को देखा तो मुझे लगा
राकेश जी ने पंडित जी की लघुता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कि यदि किसी को जैन श्रावक का शास्त्रोक्त स्वरूप देखना हो तो
बीसों बार अध्ययन कर चुके धर्म ग्रन्थों को भी पंडित जी पढ़ाने वह पन्नालाल जी को देख ले। जैन धर्म, सिद्धान्त और संस्कृति का
के पूर्व पढ़ते थे। पंडितजी की ज्ञान साधना अहं शून्य थी। शायद साकार रूप, जैनत्व की मूर्ति यदि पंडित जी को कहा जाए तो
इसीलिये पंडितजी को अपने क्षयोपशम पर अधिक विश्वास नहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रतिभा, विद्वत्ता एवं ज्ञान पंडित जी
था। नवभारत के महाप्रबंधक अनिल वाजपेयी ने कहा-मोक्षमार्ग के स्वरूप से टपकता था। विद्वत्ता के साथ शारीरिक एवं आरम्भिक
के जटिल ज्ञान को भाषाओं की दुरूहता से निकाल कर हिन्दी में उल्लास से ओत-प्रोत पंडित जी के व्यक्तित्त्व में आत्मविश्वास एवं
प्रस्तुत किया, अत: आपका ज्ञान मानव के लिए मोक्ष का पथ था। प्रतिभा की चमक स्पष्ट दिखाई देती थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता
ब्र. धर्मेन्द्र जी ने कहा कि सरल हृदय गुरुदेव का हर हृदय में परम करते हुए भूतपूर्व सांसद डालचंदजी जैन ने कहा कि पंडित जी ने
आदरणीय उच्च स्थान है। ब्र. श्री रतनलाल जी शास्त्री, इन्दौर जो लिखा है वह सम्मान से पढ़ा जाता है। अत: "कुछ ऐसा लिख
ने अत्यंत विनम्र भाव से कहा-जब तक हृदय में श्वास रहेगी, तब जाओ कि लोग चाव से पढ़ें, कुछ ऐसा कर जाओ कि लोग याद
तक श्रद्धेय पन्नालाल जी स्मृति में रहेंगे। पंडित जी ने परिवार, करें।" ब्र. विनोदजी ने कहा कि ज्ञान तो प्राणी मात्र में पाया जाता
समाज एवं धर्म के लिये जो अमूल्य योगदान दिया है उसे भुलाया है, लेकिन उस ज्ञान के साथ दिव्यता है, अलौकिकता है तो ज्ञान
नहीं जा सकता। ब्र. संजीव ने कहा कि पंडित जी के व्याख्यान को विश्ववंद्य हो जाता है। वर्णी गुरुकुल के अधिष्ठाता ब्र. जिनेशजी ने
सुनकर ही मेरे मन में जैन धर्म के अध्ययन के प्रति भाव जाग्रत कार्यक्रम का सफल एवं सरस संचालन करते हुए कहा कि
हुए अत: वह मेरे गुरु हैं। परिश्रम से, पसीने से ही पंडित जी का व्यक्तित्व जैनत्व के
आचार्यश्री विद्यासागर जी, वर्णीजी एवं पंडितजी के चित्र आकाश पर चमका। संचालक, ब्र. प्रदीप जी पीयूष ने कहा कि
अनावरण के साथ मंगलाचरण सुश्री रमा वैद्य ने किया। दीप गुरुकुल की बगिया को ज्ञानामृत के नीर से सींचकर पंडित जी ने
प्रज्वलन, नव भारत के महाप्रबंधक अनिल बाजपेयी व श्री जैन समाज के ऊपर महान उपकार किया है। ब्र. सुरेन्द्र जी 'सरस'
गुलाबचंद जी दर्शनाचार्य ने किया। कार्यक्रम के अन्य वक्ता थेने कहा कि ग्वाले से ज्ञानी बनाने की कला में सिद्धहस्त साधक
श्री जीवन्धर शास्त्री, विद्या बाई, ब्र. अनिल जी, आर.के. त्रिवेदी, पंडितजी सदा याद रहेंगे। डॉ. भागचंद 'भागेन्दु' ने साहित्याचार्य
डॉ. राजेश जी, ब्र. संदीप जी, ब्र. धर्मेन्द्र जी, पं. दयाचंद जी सतना जी के 75 वर्षों तक अनवरत लेखन, ग्रन्थ प्रणयन पर प्रकाश
पं. रमेश चंद जी, ग्वालियर आदि। आभार प्रदर्शन महामंत्री कमल डालते हुए कहा-पंडितजी ने अश्रान्त और अक्लान्त प्रतिभा से
कुमार जी दानी ने किया। अनेक ग्रन्थ रत्नों का प्रणयन एवं सम्पादन कर संस्कृत, प्राकृत
ब्र. त्रिलोक जैन,वर्णी गुरुकुल, जबलपुर-3 तथा अपभ्रंश के युग में विवेकशील जिज्ञासुओं की अभिलाषाओं को तृप्त किया। हिन्दी के युग में मौलिक संस्कृत साहित्य का
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा संचालित वर्ष 2002 के सृजन एवं स्वोपज्ञभाष्य कर स्वातः सुखाय के साथ सर्वजन हिताय विभिन्न पुरस्कारों हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित का आदर्श भी प्रस्तुत किया। लब्ध प्रतिष्ठित प्रतिष्ठाचार्य श्री गुलाबचंद कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा संचालित वर्ष 2002 के विभिन्न जी 'पुष्प' ने कहा-श्रद्धेय पंडितजी ने सतत ज्ञानाराधना करके | पुरस्कारों हेतु सम्यक् प्रस्ताव 31 जून 2002 तक आमंत्रित हैं। अज्ञान के अन्धेरे को दूर करने का जो प्रयास किया, वह सराहनीय | 1.कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार - इस पुरस्कार के अंतर्गत है। आयु कर्म पूर्ण होने पर शरीर तो तिरोहित हो जाता है, पर | चयनित कृति के लेखक को 25,000 रुपये नकद, शाल, श्रीफल जीवनकाल में किये गए उपकारों का अन्त नहीं होता। वर्णी से सम्मानित किया जाता है। इसके अंतर्गत अब तक 7 विद्वानों गुरुकुल ने पंडित जी के प्रति श्रद्धाभक्ति की जो मिसाल कायम | को सम्मानित किया,जा चुका है। जैन विद्याओं से संबद्ध किसी भी की है वह मशाल बने और अगले वर्ष दो दिवसीय गोष्ठी नहीं, | विषय पर लिखित मौलिक/प्रकाशित/ अप्रकाशित एकल कृति पर सप्त दिवसीय शिविर लगे ताकि पंडितजी के योगदान पर व्यापक | 2002 का प्रस्ताव देय है। निर्धारित प्रस्ताव पत्र एवं नियमावली
-अप्रैल 2002 जिनभाषित 31
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