Book Title: Jinabhashita 2002 04 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 4
________________ दिया गया होगा। मुनिश्री ने कहा कि चंद्रप्रभु भगवान की प्रतिमा के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम चाँदखेड़ी रखा गया। इन प्रतिमाओं के निकलने के पश्चात् सम्पूर्ण भारतवर्ष में हर्ष की लहर है और क्षेत्र पर इन दिनों मेला सा लगा हुआ है। देश के कोने-कोने से यहाँ श्रद्धालु पहुँच रहे हैं और इन प्रतिमाओं तथा मुनिश्री के दर्शन कर स्वयं को धन्य कह रहे हैं। प्रतिदिन प्रात: 9 से 12 बजे एवं दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक प्रतिमाओं का महामस्तकाभिषेक किया जाता है। श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ 24 घंटे मन्दिर खुला रहता है। प्रबंध समिति की ओर से बाहर से पधारने वाले यात्रियों के आवास एवं भोजन की समुचित व्यवस्था की गई शोभित जैन C/o श्री भँवर लाल बालचन्द्र जैन, बाजार नं. 1, रामगंज मण्डी, कोटा भोपाल में आचार्य श्री विद्यासागर जी की भव्य अगवानी है । भोपाल के इतिहास में 17 अप्रैल चिरस्मरणीय दिवस रहेगा। 25 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के प्रश्चात् संत शिरोमणि आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज ससंघ भोपाल नगर में दिनांक 17.4.2002 को प्रातः 8:00 बजे पधारे। सम्पूर्ण शासन-प्रशासन चौकस था । सभी राजनैतिक दलों के नेता अपने गणवेश में अगवानी हेतु छोलारोड पर अग्रवाल धर्मशाला के वहाँ उपस्थित थे। बेण्डबाजों की धुनें अपने ढंग से आचार्य श्री के स्वागत में स्वरांजलि अर्पित कर रही थीं। जन सैलाब में सभी धर्म के दर्शनार्थी स्वागतार्थी अपनी उपस्थिति से सर्व धर्म समभाव का प्रत्यायन कर रहे थे। आचार्य श्री तेजगति से ईर्ष्यासमिति के साथ ससंघ भोपाल नगर की ओर बढ़ रहे थे। सम्पूर्ण जैन समाज की आँखें उनके दर्शन को लालायित थीं। फोटोग्राफरों की आँखों के सामने से काले कैमरे हट नहीं रहे थे। नर-नारी बाल-वृद्ध अधिकांश नंगे पैर संघ के साथ चल रहे थे। भीड़ में स्वतः अनुशासन का अभूतपूर्व दृश्य मन में आह्लाद भर रहा था। सभी जन आह्लाद से परिपूर्ण हर्ष के अश्रु से आपूरित नयनों से अपलक आचार्य श्री को निहार रहे थे। जिस प्रमुख मार्ग छोलारोड से आचार्य श्री ससंघ पधार रहे थे उसके दोनों ओर स्वागत व दर्शनार्थ जनसमूह खड़ा हुआ था। दोनों ओर के भवनों की छत व छज्जे दर्शक दीर्घा का स्वरूप ले चुके थे जिसको जहाँ जगह मिली वहीं से दर्शनार्थ मोर्चा साधे था। जगहजगह भक्त लोग भक्तिभाव से आरती उतारते अपने को धन्य करते अघा नहीं रहे थे। नगर के मार्ग, घर-द्वार केशरिया ध्वज बेनर से पटे हुए अपने परम पूज्य संत का दिल खोलकर स्वागत कर रहे थे। भोपाल की धरती धन्य हो गई। आचार्य श्री की चरणरज माथे लगाकर । लग रहा था आचार्य श्री केवल जैनों के संत नहीं जनजन के संत हैं। उनका निर्मल समता भाव सभी धर्म के लोगों को बाँधे था । उनके वात्सल्य की धारा में सभी बह रहेथे। मंदिर अप्रैल 2002 जिनभाषित 2 Jain Education International दर्शन के पश्चात् जवाहर चौक जुमेराती में अगवानी जुलूस धर्म सभा में परिवर्तित हुआ। सभी धर्म व दल के लोगों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा में अपार जनसमूह आशीर्वचन प्राप्त कर कृतार्थ हुआ। श्रीपाल जैन 'दिवा' भोपाल जैन समाज के सामने चुनौती जैन समाज को आज एक गंभीर समस्या व चुनौती का सामना करना है। हमारा प्राचीनतम व अनादिनिधन 'जैन धर्म एक स्वतंत्र धर्म-दर्शन है अथवा हिन्दू (वैदिक) धर्म की शाखा' इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की बेंच में 2 अप्रैल से सुनवाई प्रारंभ हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य विषय था अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों के द्वारा संचालित शिक्षा संस्थाओं को मान्यता का क्या आधार हो तथा ऐसी शिक्षा संस्थाओं को क्या विशेष अधिकार / सुविधाएँ प्राप्त हो? क्योंकि देश में अनेक जैन शिक्षा संस्थाओं को भी इस प्रकार की मान्यता मिली हुई है, अत: कोर्ट के सामने यह प्रश्न भी जुड़ गया है कि मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी धर्मों के अलावा क्या जैन धर्म भी एक स्वतंत्र धर्म है । यदि इसका फैसला विपरीत होता है तो हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा और कालान्तर में जैन धर्म व जैन संस्कृति का लोप हो जाएगा। भारत के संविधान की धारा 30 के अनुसार अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों को अपनी शिक्षा संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनको सरकारी हस्तक्षेप के बिना संचालित करने का अधिकार प्राप्त है। ऐसी संस्थाओं में यह भी सुविधा उपलब्ध है कि जिस धार्मिक समाज ने संस्था स्थापित की है वह अपने समाज के छात्रों को प्राथमिकता के आधार पर कक्षाओं में प्रवेश दे सकता है एवं अपने धर्म की शिक्षा भी दे सकता है। यह सुविधा प्राप्त करना नि:संदेह जैन समाज के हित में है। यह और भी अधिक आवश्यक इसलिए हो गया है कि आरक्षण के कारण बच्चों को स्कूलकॉलिजों तथा तकनीकी संस्थाओं में प्रवेश मिलना कठिन हो गया है । अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों को यह भी संरक्षण व विशेषाधिकार प्राप्त है कि सरकार उनके तीर्थक्षेत्रों अथवा न्यासों का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं ले सकती। देश के कई राज्यों में जैसे मध्यप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल आदि में जैनों को अल्पसंख्यक धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है, परंतु कुछ अन्य राज्यों में केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिश के बावजूद जैनों को बिना किसी कारण के अल्पसंख्यक मान्यता प्रदान नहीं की गई, जबकि संविधान की धारा 25 (2) के अनुसार भी जैन धर्म, बौद्ध व सिख धर्म के समकक्ष एक स्वतंत्र धर्म है। ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि। परंतु वहाँ भी जैन समाज सैकड़ों जैन शिक्षा संस्थाओं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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