Book Title: Jinabhashita 2002 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ जन्मतिथि पर महावीर की मुनि श्री समतासागर जी गीत डॉ. दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय' मत अहम् में डूब रे मन सत्य को पहचान। तुंग भवनों को बना भी कब सुरक्षित व्यक्ति, नष्टता अव्यक्त अपनी मधुमती अभिव्यक्ति; दैव को विज्ञान भी अब तक न पाया जान। मत अहम् में डूब रे मन सत्य को पहचान। साप .......... हव्य तक को तू बनाकर ऐंठता निज द्रव्य, सत्य शिव सुन्दर बने क्यों फिर कहीं भवितव्य। विकल विश्व की इस धरती ने फिर से तुम्हें पुकारा है।। जन्मतिथि पर महावीर की गूंज रहा जयकारा है ॥ शोषित थी मानव समाज, थी अन्ध-कुरीति फैली । धर्म नाम पर पशुबलि से, थी धरा रक्त रंजित मैली॥ सिहर उठे थे आप देखकर यह हिंसा का नर्तन। करूँ दूर यह सब कैसे बस करने लगे आप चिन्तन ॥ धर्म अहिंसा पथ दिखलाकर दिया नया उजियारा है। जन्म तिथि ...... फूटी विराग की किरण आप में उम्र तीस की पाकर। रहे खोजते बारह वर्षों तक निज को, निज में आकर। पाकर के कैवल्य आप अर्हन्त महाप्रभु आप्त हुये । पावापुर में ध्यान लगा फिर अंतिम शिवपद प्राप्त किये। कठिन साधना, त्याग, दिगम्बर चर्या, असिव्रत धारा है। जन्म तिथि . सार्वभौम, समभाव, समन्वय, सर्वोदय शासन प्यारा । हर आतम परमातम बन सकती, स्वाधीन जगत सारा । विश्वबंधुता, अनेकान्त सिद्धांत, सूत्रव्रत पाँच महान । दिये आपने, जो अपनाते, वे पाते सुख शांति निधान ।। मैं भूला सारे मत पथ, पथ जब से मिला तुम्हारा है। जन्म तिथि ....... आज मनुजता सिसक रही है इकतरफा कोने में। न्याय नीतियाँ जकड़ रही हैं चाँदी में सोने में ॥ करुणा काँप रही है थर-थर पतझड़ के पत्तों सी । कैसा युग आया है आई अब मनहूस घड़ी कैसी ॥ मानवता के बनो मसीहा फिर लेकर अवतारा है। जन्म तिथि ........ विश्व खड़ा वैभव लेकर के अब विनाश के तट पर। प्रश्न चिह्न है लगा शान्ति का इस विकसित संकट पर ।। प्राण प्यासे सभी चाहते कोइ दूत यहाँ आये । महावीर सा इस धरती पर कोई पूत जन्म पाये ।। सम्हल जायगा विश्व, तुम्हें पाकर विश्वास हमारा है । जन्म तिथि...... ऐसे में बस एक दीप तू ही बस एक सहारा है। आज पुनः इस जन्मतिथि पर सबने तुम्हें पुकारा है। हटे तिमिर, फैले प्रकाश, 'समता' का दीप जला देना। सुरभित हो मानव समाज इक ऐसा पुष्प खिला देना ॥ 'जियो और जीने दो' का गूंजे धरती पर नारा है। जन्म तिथि........ दुःख का कारण जगत में मोह का सन्धान। मत अहम् में डूब रे मन सत्य को पहचान। मार्ग है बस एक ही अध्यात्म की जय बोल, बंद जो है तीसरी वह आँख अपनी खोल; रोक कब भव भूति पाई सृष्टि का अवसान। मत अहम् में डूब रे मन सत्य को पहचान। 228-बी, सिविल लाइन्स, कोटा-324001 (राज.) अप्रैल 2002 जिनभाषित ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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