Book Title: Jinabhashita 2002 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ सुधारकों ने मदनपुर, गोलाकोट, गोपाचल का खण्डित होता पुरातत्त्व | हो, इस सजगता से इनकार नहीं किया जा सकता। किन्तु पुरातत्त्व नहीं देखा? आखिर ये कौन से विश्वकोश पुरातत्त्व की परिभाषा के संरक्षण के नाम पर हम अपनी निरन्तर क्षरित हो रही मूर्ति एवं पर अमल करते हैं जो इन्हें हर संरक्षण का कार्य विनाश नजर मन्दिर सम्पदा को कब तक देखते रहेंगे? विचार करेंगे कि अहारजी आता है? जरा सोचिए। में यदि भ.शान्तिनाथ की मूर्ति को खंडित ही रहने दिया गया होता अभी हाल ही में एक वयोवृद्ध समाज सेवी ने बिना तथ्य | तो क्या वह स्थिति होती जो अब वहाँ है ? मेरा तो मानना है कि जाने चाँदखेड़ी में चल रहे सुधारकार्यों पर ऊँगली उठायी है। क्या | यदि कहीं भूल हुई है तो विचारें कि - उन्हें पता नहीं कि वहाँ की क्षेत्र प्रबन्धकारिणी कमेटी में जागरूक हमसे खता हुई तो बुरा मानते हो क्यों? समाजसेवियों की कोई कमी नहीं है, जो बढचढ़कर विकास को हम भी तो आदमी हैं कोई खुदा नहीं ॥ गति दे रहे हैं, उनकी भावना क्या है ? या मात्र मुनिश्री सुधासागर दरअसल आज इस बात पर विचार की आवश्यकता है जी के पदार्पण से ही कमेटी के विचार बदल गये हैं ? मूलनायक | कि देवगढ़, बजरंगगढ़, कुण्डलपुर, अमरकंटक, मुक्तागिरि, रामटेक, प्रतिमा हटाने का न आज संकल्प समिति ने किया है, न हटाई | नेमावर, सांगानेर, बैनाड़, रैवासा, भाग्योदय तीर्थ अस्पताल गयी है तो फिर अग्रिम बावेला क्यों? क्या आपने पुरातत्त्व से प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान, श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल मढ़ियाजी बड़वानी में बावनगजा की मूर्ति से छेड़छाड़ नहीं की? क्या मूर्तियों जबलपुर, श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर, ऋषभदेव ग्रन्थमाला, पर लगे सीमेन्ट के जोड़ समाज से छिपे हैं? क्या यह सच नहीं कि सांगानेर, आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, अशोक नगर उन जोड़ों को ढंकने के लिए मेले से पूर्व बीसों किलो नारियल का स्थित त्रिकाल चौबीसी, शताधिक शोध प्रबन्धों और द्विशताधिक तेल नहीं पोता जाता है? मैंने स्वयं जीर्णोद्धार के पहले भी बावनगजा धार्मिक ग्रन्थों का प्रकाशन, शोध संगोष्ठियों के आयोजन, वाचनाओं के दर्शन किये थे और जीर्णोद्धार के बाद भी। मेरा दिल कहता है, का आयोजन, श्रावक संस्कार शिविरों का आयोजन आदि कार्य आपका दिल भी कहता होगा कि जो हुआ वह अपेक्षा के अनुरूप आवश्यक थे या नहीं? इनसे जैनत्व की प्रभावना हुई या अप्रभावना? खरा नहीं उतरा। कोई भी पुरातत्त्वप्रेमी जानकार निष्पक्ष दर्शक- हमने अपनी धरोहर कम की है या बढ़ायी है? आप इनके प्रेरकों समीक्षक इस कार्य-परिणति पर शाबाशी नहीं देगा। मैं यहाँ यह | पर आपत्ति करते हैं या इनके कार्यों पर? मुझे यह भी पता है कि भी कहना चाहता हूँ कि जिन्होंने जीर्णोद्धार की योजना बनायी थी विरोध करने वालों में अनेक लोग तीर्थक्षेत्रों की समितियों से वे गलत नहीं थे, उनका सोच गलत नहीं था। वे भी उतने ही मूर्ति | सम्बद्ध हैं, जहाँ लाखों रुपये प्रति वर्ष आते हैं, फिर भी वहाँ आज या पुरातत्त्व के शुभचिन्तक थे जितने कि आचार्य श्री विद्यासागर तक न तो कोई श्रावक संस्कार शिविर लगा है, न कोई विद्यालय या मुनिश्री सुधासागर, किन्तु जब मूर्ति पर कोई लेप टिका ही नहीं खुला है, साधुओं के आहार-वैयावृत्य तक की व्यवस्था नहीं है ? तो कोई क्या कर सकता था? आयोजकों के इस तर्क को मैंने भी | मेरा विरोधियों से भी विरोध नहीं है, क्योंकि विरोध से काम में स्वीकार किया था, किन्तु जब ऐसे लोग दूसरों के अच्छे कार्यों पर | गति आती है, किन्तु दुःख तो यह है कि इन विरोध के तीखे स्वरों ऊँगली उठाते हैं, तो टीस होती ही है। मेरा तो मानना है कि जो | से समाज में कलुषता, मनोमालिन्य का वातावरण बन रहा है, जो करता है, गलती की संभावना उसी से होती है, निकम्मों से क्या | उन्हें भले ही इष्ट हो, एक सामाजिक के नाते मुझे इष्ट नहीं है। गलती होगी? सवाल आस्था का भी है। कुंवर बैचेन ने ठीक ही , आशा है, सबको सद्बुद्धि आयेगी। लिखा है कि सफर लम्बा है पर चलते रहिए। अगर पूजो तो पत्थर भी मूरत है, दिल से दिल और हाथ से हाथ मिलाते रहिए। अगर फेंको तो मूरत भी है पत्थर ॥ एल-65, नया इन्दिरा नगर 'ए' यदि कोई गल्ती कहीं हो भी गयी हो तो वह भविष्य में न बुरहानपुर- 450331 (म.प्र.) अजमेर में श्री सिद्धचक्र मण्डल विधान सम्पन्न परमपूज्य मुनि 108 श्री गुणसागरजी महाराज एवं संघस्थ आर्यिकागण के शुभ आशीर्वाद से हाथीभाटा-स्थित जैन मन्दिर में श्री नेमीचन्द्र रूपेशकुमार कुहले परिवार द्वारा श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान पूजन दिनांक 21 से 28 मार्च तक सानंद सम्पन्न हुआ। जैन सेवा समर्पण मंच एवं जैन महिला जागृति मंडल की ओर से दिनांक 31.3.2002 को श्री दि. जैन ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र नारेली में स्नेह मिलन समारोह में समाज के प्रबुद्ध महानुभावों का सम्मान आयोजित हुआ। हीराचन्द्र जैन, प्रचार-प्रसार संयोजक 20 अप्रैल 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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