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- इत्यादि बहुत कथानक शास्त्रों में मिलते हैं। जिन कार्यों ] किया है, कि निकाला जाऊँ। प्रथम तो मैंने आज्ञा ले ली थी। हाँ, की सम्भावना भी नहीं, वे आकर हो जाते हैं और जो होने वाले हैं, | इतनी गल्ती अवश्य हुई कि सामायिक के पहले नहीं ली थी। वे क्षणमात्र में विलीन हो जाते हैं। कहाँ तो यह मनोरथ कि इस | बाबा भागीरथ जी बोले- “रात्रि अधिक हो गई, सब छात्रों को वर्ष 'अष्टसहस्री' में परीक्षा देकर अपनी मनोवृत्ति को पूर्ण करेंगे | निद्रा आती है। एवं देहात में जाकर पद्मपुराण के स्वाध्याय द्वारा ग्रामीण जनता मैं बोला-बाबा जी! इन छात्रों को तो आज ही निद्रा जाने को प्रसन्न करने की चेष्टा करेंगे। कहाँ यह बाबाजी का मर्मघाती | का कष्ट है, परन्तु मेरी तो सर्वदा के लिये निद्रा भंग हो गई? संदेश?
बाबा जी! मुझे तो क्रोध के ऊपर क्रोध आ रहा हैयह आज्ञा कि निकल जाओ ..... पाप कटा ! यह उनका
अपराधिनि चेत्क्रोधः क्रोधे क्रोधः कथं न हि। दोष नहीं, जब दुर्भाग्य का उदय होता है, तब सबके साथ यही
धर्मार्थकाममोक्षाणां चतुण्णां परिपन्थिनि ॥ होता है।
'यदि आप अपराधी पर ही क्रोध करते हो, तो सबसे बड़ा आप लोगों से हमारा घनिष्ठ सम्बन्ध रहा, आप लोगों के | अपराधी क्रोध है, क्योंकि वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का शत्रु सहवास से अनेक प्रकार के लाभ उठाये अर्थात् ज्ञानार्जन किया, | है, उसी पर क्रोध करना चाहिये।' मैं सानंद यहाँ से जाता हूँ। न सिंहपुरी, चंद्रपुरी की यात्रा की। पठन-पाठन का सबसे बड़ा लाभ | आपके ऊपर मेरा कोई वैर-भाव है और न छात्रों के ही ऊपर। यह हुआ कि आज स्याद्वाद पाठशाला, 'विद्यालय' के रूप में
अन्त में, बाबाजी को प्रणाम और छात्रों को सस्नेह जय परिणत हो गई। जहाँ काशी में जैनियों के नाम से पण्डितगण | जिनेन्द्र कहकर जब चलने लगा तब नेत्रों से अश्रुपात होने लगा। नास्तिक शब्द का प्रयोग करते थे, आज उन्हीं लोगों द्वारा यह न जाने, बाबाजी को कहाँ से दया आ गई ! सहसा बोले उठेकहते सुना जाता है कि जैनियों में प्रत्येक विषय पर उच्च कोटि 'तुम्हारा अपराध क्षमा किया जाता है तथा इस आनंद में कल का साहित्य विद्यमान है। हम लोग इनकी व्यर्थ ही नास्तिकों में | विशेष भोजन कराया जावेगा।' गणना करते थे। यह सब छात्र तथा बाबा जी का उपकार है, जिसे
'जीवन यात्रा' से साभार समाज को हृदय से मानना चाहिए। मैंने इस योग्य अपराध नहीं
विद्यार्थी भवन, 81, छत्रसाल रोड, छतरपुर (म.प्र.) 471001
क. वीणा को 'नेशनल अवार्ड' : जैन समाज गौरवान्वित
राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (नेशनल चाइल्ड अवार्ड) 2001 | 36 झूलते हुए कलश सिर पर रखकर नृत्य में अखिल भारतीय प्रदान करते हुए महामहिम उपराष्ट्रपति श्री कृष्णकान्त ने विज्ञान रिकार्ड बनाने वाली भीलवाड़ा की इस बालिका ने देश-विदेश भवन, देहली में अपने उद्बोधन में कहा 'ऐसी असाधारण में 60 से अधिक प्रदर्शन देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है प्रतिभाओं पर हमें नाज है तथा इनसे देश को बहुत आशाएँ हैं। एवं अब यह विश्व रिकार्ड स्थापित करने हेतु गहन अभ्यासरत जैन समाज को कला जगत में गौरवान्वित कर रही 14
है। कु. वीणा के प्रदर्शन मात्र लोकरंजन के लिये न होकर वर्षीय कु. वीणा अजमेरा जैन ने सम्पूर्ण जैन जगत में पहली बार
लोकमंगल हेतु भी महत्त्वपूर्ण हो यह उसके परिजनों की भावना भारत सरकार का नेशनल अवार्ड प्राप्त किया, ख्याति प्राप्त
रही है। इस हेतु गत 2 वर्षों में वह अनेक कार्यक्रम गोपालन लिम्काबुक में अपना रिकार्ड दर्ज कराया, संगीत नाटक अकादमी
केन्द्र, चिकित्सालयों, भूकंप पीड़ितों एवं शैक्षणिक कार्यों के से पुरस्कृत होकर व यूनेस्को एसोसिएशन अवेयरनेस अवार्ड
सहायतार्थ प्रस्तुत कर चुकी है तथा शीघ्र ही अंधता निवारण प्राप्त कर यह साबित कर दिया है कि जैन समाज में प्रतिभाओं
अभियान आईलैंस प्रत्यारोपण हेतु कुछ प्रदर्शन देगी। 'म्यूजिक की कमी नहीं है। आवश्यकता है उन्हें उचित प्रोत्साहन, प्रशिक्षण
फार मेनकाइन्ड' के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही कु. वीणा व प्रकाश में लाने हेतु समाज के अग्रणी लोगों के सहयोग व
से जैन समाज ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण कला जगत को बहुत समर्थन की। अपने प्रसिद्ध मंगल कलशनृत्य से अहिंसा पर्यावरण,
आशाएँ हैं। सुरक्षा, शाकाहार, व्यसनमुक्ति व विश्व बंधुत्व के संदेशवाहक
निहाल अजमेरा, निदेशक
18 अप्रैल 2002 जिनभाषित
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