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बाबा भागीरथी के शासन काल में
स्व. पू. गणेशप्रसाद जी वर्णी
डॉ. श्रीमती रमा जैन घटना उस समय की है, जब छात्र श्री गणेशप्रसाद जी | देखने के लिए रामनगर गया। यदि आज नौका डूब जाती, तो स्याद्वाद विद्यालय काशी में अध्ययन करते थे। उस समय संस्था पाठशालाध्यक्षों की कितनी निंदा होती? हमें इस अपराध में बाबाजी के अधिष्ठाता बाबा भागीरथ जी थे। घटना स्वयं वर्णी जी के | पाठशाला से निकाल देंगे। भागीरथ बाबाजी ने कुछ विस्मय के शब्दों में प्रस्तुत है-आश्विन सुदि 9वीं को मेरे मन में आया कि साथ कहा तुम अक्षरशः सत्य कहते हो? बिल्कुल यही होगा। रामलीला देखने के लिए रामनगर जाऊँ। सैकड़ों नौकाएँ गंगा से उन्होंने सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब को बुलवाया और शीघ्र ही रामनगर को जा रही थीं। मैंने भी जाने का विचार कर लिया। 5 या | पत्र लिखकर उसी समय लिफाफे में बंद किया, उसके ऊपर 6 छात्रों को भी साथ में लिया। उचित तो यह था कि बाबाजी लेटफीस लगाकर चपरासी के हाथ में देते हुए कहा कि तुम इसे महाराज से आज्ञा लेकर जाता, परन्तु महाराज सामायिक के लिये इसी समय पोस्ट आफिस में डाल आओ। मैंने बहुत ही विनय के बैठ गये थे। बोल नहीं सकते थे, अतः मैंने सामने खड़े होकर साथ प्रार्थना की-महाराज! अबकी बार माफी दी जावे। अब ऐसा प्रणाम किया और निवेदन किया कि महाराज! आज रामलीला अपराध न होगा। बाबाजी एकदम गरम हो गए। जोर से बोले-तुम देखने के लिए रामनगर जाते हैं। आप सामायिक में बैठ चुके हैं, | नहीं जानते, मेरा नाम 'भागीरथ' है और मैं ब्रज का रहने वाला हूँ अतः आज्ञा न ले सके।
अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि यहाँ से चले जाओ। गंगा के घाट पर पहुँचे और नौका में बैठ गये। नौका घाट 'अच्छा महाराज जाता हूँ' कह कर शीघ्र ही बाहर आया से कुछ ही दूर पहुंची थी कि इतने में वायु का वेग आया और और चपरासी से, जो कि बाबाजी चिट्ठी डाक में डालने के लिए नौका डगमगाने लगी। बाबाजी भागीरथ की दृष्टि नौका पर गई | जा रहा था, मैंने कहा-भाई चिट्ठी क्यों डालते हो? बाबाजी
और उनके निर्मल मन में एकदम विकल्प उठा कि अब नौका | महाराज तो क्षणिक रुष्ट हैं, अभी प्रसन्न हो जावेंगे। यह एक रुपया डूबी, अनर्थ हुआ। इस नादान को क्या सूझी, जो आज इसने | मिठाई खाने को लो और चिट्ठी हमें दे दो। वह भला आदमी था, अपना सर्वनाश किया और छात्रों का भी। नौका पार लग गई। | चिट्ठी हमें दे दी और दस मिनट बाद आकर बाबाजी से कह गया रात्रि के दस बजे हम लोग रामनगर वापिस आ गये। आते ही | कि चिट्ठी डाल आया हूँ। बाबा जी बोले - 'अच्छा किया पाप बाबाजी ने कहा- 'पंडित जी! कहाँ पधारे थे?'
कटा।' मैं इन विरुद्ध वाक्यों को श्रवण कर सहम गया। हे भगवन्! __यह शब्द सुनकर हम तो भय से अवाक् रह गये। महाराज क्या आपत्ति आई ? जो मुझे हार्दिक स्नेह करते थे, आज उन्हीं के कभी तो पंडित जी कहते नहीं थे, आज कौन सा गुरुतम अपराध | श्रीमुख से यह शब्द निकले कि 'पाप कटा।' हो गया, जिससे महाराज इतनी नाराजी प्रकट कर रहे हैं? मैंने | मैंने कहा - 'महाराज! यदि आज्ञा हो तो जाते-जाते छात्र कहा- बाबाजी रामलीला देखने गये थे। उन्होंने कहा- “किससे | समुदाय में कुछ भाषण करूँ और चला जाऊँ। बाबा जी ने कहाछुट्टी लेकर गये थे? मैंने कहा- 'उस समय सुपरिन्टेन्डेन्ट साहब | अच्छा जो कहना हो, शीघ्रता से कहकर 15 मिनट में चले जाना। तो मिले न थे और आप सामायिक करने लग गये थे, अत: अन्त में, साहस बटोर कर भाषण करने के लिए खड़ा हुआआपको प्रणाम कर आज्ञा ले चला गया था। मुझसे अपराध अवश्य | महानुभावो, बाबाजी महोदय! श्री सुपरिन्टेन्डेन्ट सा. तथा छात्रवर्ग! हुआ है, अत: क्षमा की भिक्षा माँगता हूँ।
कर्मों की गति विचित्र है। देखिये, प्रात:काल श्री रामचन्द्र जी का बाबा जी बोले- 'यदि नौका डूब जाती तो क्या होता? मैंने युवराज-तिलक होने वाला था, जहाँ बड़े-बड़े ऋषिलोग मुहूर्त कहा 'प्राण जाते। उन्होंने कहा- फिर क्या होता? मैंने मुस्कराते शोधन करने वाले थे। किसी प्रकार की सामग्री की न्यूनता न थी, हुए कहा- 'महाराज ! जब हमारे प्राण चले जाते, तब क्या होता | पर हुआ क्या? सो पुराणों से सबको विदित है। किसी कवि ने वह आप जानते, या जो यहाँ रहते वे जानते, मैं क्या कहूँ? अब | कहा भी हैजीवित बच गया हूँ। यदि आप पूछे कि अब क्या होगा? तो उत्तर यचिन्तितं तदिह दूरतरं प्रयाति, दे सकता हूँ।' 'अच्छा कहो ..... बाबाजी ने शान्त होकर कहा?
यच्चेतसापि न कृतं तदिहाभ्युपैति। मैं कहने लगा -- "मेरे मन में तो यह विकल्प आया कि आज मैंने
प्रातर्भवामि वसुधाधिपचक्रवर्ती महान् अपराध किया है, जो बाबाजी की आज्ञा के बिना रामलीला
सोऽहं व्रजामि विपिने जटिलस्तपस्वी।
-अप्रैल 2002 जिनभाषित 17
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