Book Title: Jinabhashita 2002 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ - हैं । को स्वप्न देकर यह क्षेत्र प्रकाश में आया। खुदाई के फलस्वरूप | दरख्वास्त मंजर भई मौजे मजकूर की अछीतरा आबाद करो अरु स्वप्न में दिखा हुआ मंदिर वन्य झाड़ियों के नीचे से निकल पड़ा। | जात्रा लगवावों जो मान मुलाहजों इहाँ से बनो रहो सो बदस्तूर यह मंदिर पूर्णतः प्रस्तर निर्मित था। इस मंदिर में देशी पाषाण की | बनों रहेगो। नये सिर जास्ती कौन हू तरा न हू है और मौजे मजकूर अनेक अत्यंत प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं, जिनमें खजुराहो की स्पष्ट की खबरदारी अछीतरा राखियों जीमें कौन हू तरा की नुकसान झलक मिलती है। ये प्रतिमाएँ उसी मंदिर (नम्बर 6) में दीवालों | सरहद के भीतर जमीन को न होने पावें। वैशाख सुदी १५ सं. में लगा दी गई हैं। इन्हीं प्रतिमाओं के साथ एक शिलालेख भी प्राप्त | १९४२ मु.पन्ना हुआ था, जिसमें उल्लेख है कि यह मंदिर विक्रम संवत् 1109 में सील चैत्रमास में गोलापूर्व पतरिया गोत्रीय द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठित है। मूल प्रति क्षेत्र कार्यालय में सुरक्षित है एक अन्य शिलालेख भी नीचे के मंदिर नम्बर 14 की बाहर वाली उपर्युक्त आदेश के बाद से ही यहाँ प्रति वर्ष अगहन दीवाल में लगा हुआ है। इन दोनों शिलालेखों का शुद्ध अध्ययन शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक मेला भरता है। इस अवसर पर पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा किया जाना आवश्यक है। सागर, दमोह तथा छतरपुर जिलों के समीपस्थ ग्रामों के व्यक्ति कुछ वर्ष पूर्व पहाड़ पर किञ्चित् खुदाई की गई थी, बाजार हेतु एकत्रित होते हैं तथा भारत के कोने-कोने से श्रद्धालुजन जिसमें चन्देल काल की शिल्पकला के पत्थर एवं मिट्टी के बर्तन | दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं। प्राप्त हुए थे, किन्तु किसी कारण से खुदाई बंद कर दी गई। यह जनसाधारण की सुविधा हेतु यहाँ क्षेत्र की ओर से तालाब ज्ञात होता है कि पर्वतीय मंदिरों के पीछे पहिले बहुत बड़ा नगर | खुदवाया गया था। जिसकी सुरक्षा एवं क्षेत्र की सामान्य बसा हुआ था। जहाँ आज धर्मशालाएँ आदि निर्मित हैं, यह पूर्व में | आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तत्कालीन पन्ना नरेश से निम्न आज्ञा श्मशानस्थल था। पर्वत के पीछे अभी भी करीब 200 एकड़ भूमि | प्राप्त हुई थीमें समतल मैदान स्थित है। पहाड़ पर आज भी इस नगर के दरबार महान से अवशेष दीवालों एवं चबूतरों के रूप में तथा पुराने कुँओं के रूप 1. मंदिर नैनागिरिजी के लिए ५०० कुरबा, १५ बाँस, में देखने को मिलते हैं। ये अवशेष अपनी लीला उद्घाटित करवाने | जलाऊ लकड़ी माफी में दी। हेतु पुरातत्त्ववेत्ताओं के पथ पर आँखें बिछाये हुए हैं। 2. तालाब में नैनागिरि की जनता व मानकी आदि के पर्वत के करीब एक मील दूर भयानक जंगल में एक 52 | मछली न मारें, न मवेशी नहलायें। जो शख्स मछली मारे, उन पर गज लंबी वेदिका है, जो कला की दृष्टि से 11-12वीं शताब्दी की | दफा ५ कानून जंगल के अनुसार सजा दी जायेगी। ज्ञात होती है। इसी वेदिका के समीप हाथी खूटा है जो पत्थर का 3. खदान से पत्थर खोदने की माफी दी जाती है। बना हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि 11-12वीं शताब्दी में मूर्ति 4. भट्टा चूना वास्ते सवा प्रति भट्टा देना होगा। प्रतिष्ठा हेतु गजरथ महोत्सव का आयोजन किया गया था। यहीं पर 16-12-40 समीप में एक विशाल नदी की बीच धारा में करीब 40-50 फुट . सही निशानी ऊँची शिला है। सुनते है, इसी शिला से वरदत्तादि पंच यतीश्वरों ने डिवीजन साहिब की है मिसल पर मोक्ष लक्ष्मी का वरण किया था, इसे आज भी सिद्धशिला कहते किन्तु खेद का विषय है कि वर्तमान शासन इस क्षेत्र के हैं। इस शिला के ऊपर अनेक सुन्दर चित्र लाल रंग से अंकित हैं, विकास की ओर अपेक्षित एवं पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा है। परिणामतः जो हजारों वर्षों की वर्षा तथा धूप सहन करने के बावजूद आज भी इस क्षेत्र पर पहुँचने में यात्रियों को अत्यधिक कठिनाइयाँ होती हैं। सुरक्षित हैं। इसी सिद्धशिला पर विराजमान होकर आचार्य विद्यासागर मध्यप्रदेश शासन तथा केन्द्रीय शासन से निवेदन किया जाना जी ने अपने उत्कृष्ट हिन्दी महाकाव्य “मूकमाटी" को पूर्ण किया चाहिए कि इस क्षेत्र को सांस्कृतिक तथा पर्यटन केन्द्र के रूप में था। विकसित किया जावे। शासकीय संरक्षण मूर्तियाँ, मंदिर एवं सम्बद्ध स्मारक महाराज पन्ना नरेश से इस क्षेत्रराज को पूर्ण संरक्षण प्राप्त | यहाँ पर 1109 से लेकर प्रत्येक शताब्दी की मूतियाँ प्राप्त हैं। होता रहा है। नैनागिरि ग्राम को आबाद करने एवं यात्रा करवाने | देशी पाषाण की अनेक प्राचीन मूतियाँ तालाब के बँधान में जहाँ हेतु महाराज की ओर से सनद प्राप्त हुई थी, जिसकी प्रतिलिपि | तहाँ लगी हुई हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व निम्नांकित है के विद्वानों से निवेदन है कि इस क्षेत्र की प्राचीनता का अध्ययन श्री श्री श्री जू देव हजूर - खातर लिखाय देवे में आई | करें, जिससे कि जैन संस्कृति का एक नवीन अध्याय अनावृत हो श्रीसिंघई हजारी बकस्वाइ बारे को आपर परगने बक्स्वाह के कि | सके । वर्तमान में यहाँ पर प्राचीन एवं नवीन हजारों मूतियाँ हैं, मौजे नैनागिरि को आबाद करने व यात्रा लगाने की व अपने मान | जिनमें जैन धर्म के सहिष्णुता, त्याग और इन्द्रिय विजय के सिद्धान्तों मुलाहजा बहाल रिहवे खातर लिख देवे कि दरख्वास्त करो ताकि | का अंकन कलाकार ने पूर्ण सफलता के साथ किया है। -अप्रैल 2002 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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