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कारण हुआ करते हैं, इसलिए इस एक पाप को छोड़ दो, तो बाकी सारे चार पाप अपने आप छूट जाते हैं।
पैसे को, परिग्रह को देखने से मुँह में पानी आता है, आँखों में नहीं। हाँ, आँखों में पानी तब आता है, जब हाथ से पैसा चला जाता है। जब हमारे मुँह में पानी आता है, तब हम दूसरों की सम्पदा को डकार जाते हैं और उन्हें दुःखों की आग में ढकेल देते हैं। दूसरों की आँखों का पानी हमें दिखता नहीं। भगवान् महावीर ने कहा है- जो परिग्रह स्वयं के जीवन में भी रागद्वेष का कारण है और दूसरों की जिन्दगी के लिए भी महान् दुःख का कारण है, उसे अपने पास बहुत सीमित रखें। यह गृहस्थाश्रम में आवश्यक तो है, लेकिन इतना आवश्यक नहीं कि अपने जीवन और पराये जीवन को क्षतिग्रस्त कर दिया जाय ।
महावीर भगवान् के जीवन में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन सभी को आप देख सकते हैं। महावीर भगवान् के जीवन की एक-एक घटना को देख लो, कहीं भी परिग्रह नजर नहीं आयेगा । धन्य है वे महावीर जिन्होंने भारत में जन्म लेकर हम जैसे महान् अविवेकी, स्वार्थी, अज्ञानी जीवों को दुःखों से मुक्त होने का मार्ग दिखलाया। वे आज नहीं हैं, लेकिन उनका सन्देश जीवित है। आज देश भी उनके नाम से कुछ सुख और शान्ति का अनुभव कर रहा है। विश्व में शान्ति स्थापित करने का संकल्प यदि लिया जा सकता है, तो केवल भारतवर्ष के माध्यम से ही लिया जा सकता है, क्योंकि भारत ही अपने पूरे स्वार्थ को छोड़कर विश्वकल्याण की बात कर सकता है।
लेकिन विश्वकल्याण की बात करना और विश्वकल्याण के बारे में प्रयासरत होना, दोनों में बहुत अन्तर है। आज यहाँ पर करीब 40-50 हजार जनता एकत्रित है। इतने ग्रीष्मकाल में भी आप यहाँ पर चलते हुए आये हैं। आपके सामने मैं यह कहना चाह रहा हूँ कि अहिंसा वर्ष में एक वर्ष और बढ़ाया गया है, यह ठीक है। लेकिन वर्ष बढ़ गया है, इससे ही मैं आश्वस्त नहीं होऊँगा । (शासन ने ) यह आश्वासन आप लोगों पर विश्वास रखकर दिया है। भारत के इतिहास के बारे में आप लोगों को सोचना है, और विश्व में जितने भी स्वतंत्र राष्ट्र हैं, उनके इतिहास के बारे में भी सोचना है कौन सी History किस देश की है, जिसमें यह लिखा हो कि वहाँ की जनता ने और शासकों ने मांस का निर्यात करके देश को समृद्ध बनाया है? इतिहास में ऐसा कोई भी देश
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निरीहता और निर्भीकता के बिना हम मोक्षमार्ग पर सही-सही कदम नहीं बढ़ा सकते। त्यागी जनों की त्यागवृत्ति देखने से रागी जनों की रागवृत्ति में कमी आती है ।
'सागर बूँद समाय' से साभार
अप्रैल 2002 जिनभाषित
नहीं मिलेगा, किन्तु आज यह भारत ही मिल रहा है।
मांस निर्यात के लिए भारत का वह मतदाता उत्तरदायी है। जो मांस निर्यात का विरोधी होते हुए भी मतदान में भाग नहीं लेता। चुनावों में हम देखते हैं कि 40 या 45 प्रतिशत अथवा अधिक से अधिक 55 या 60 प्रतिशत मतदाता ही मतदान करते हैं शेष मतदाता उदासीन रहते हैं। यदि यह वर्ग विवेकपूर्वक मतदान कर अहिंसा के समर्थक प्रतिनिधियों को जिता दे, तो निश्चितरूप, मांसनिर्यात का निकृष्ट कार्य समाप्त हो जायेगा। यह आप लोगों की Carelessness का नतीजा है। आप लोग यह न सोचें कि मेरा एक वोट क्या कर सकता है? एक-एक मिलकर ही अनेक होते हैं। यदि आप सत्य का समर्थन नहीं करते, तो यह ध्यान रखना कि आप असत्य का समर्थन करते जा रहे हैं। यदि आप सावधान नहीं हुए, तो वे ही व्यक्ति सत्ता में आयेंगे, उन्हीं के हाथ में सूत्र रहेगा, सत्ता रहेगी, जो पशुवध और मांसनिर्यात के समर्थक हैं, और उनके द्वारा पशुओं का वध होते-होते, जब पशु समाप्त हो जावेंगे, तब क्या होगा ? किसका नम्बर आयेगा ? वह जमाना दूर नहीं, जब मनुष्य की भी बलि दी जाने लगेगी। इसलिए आप लोगों को सोचना चाहिए और वह कदम उठाना चाहिए जिसके माध्यम से अहिंसा की संस्कृति सुरक्षित रहे और उस कदम को जो उठा रहे हैं उनका समर्थन भी करना चाहिए ।
आप यह सोचिए, विचार कीजिए कि अस्ताचल पर जब सूर्य चल जाता है, तब रात का होना अनिवार्य हो जाता है। महावीर भगवान् जैसे तेजपुञ्ज सूर्य का तो यहाँ उगना बन्द हो गया है। हमारे जीवन में अब प्रकाश किससे मिलेगा ? अब उनके सन्देशों के माध्यम से हम प्रकाश प्राप्त कर सकते हैं। महावीर का एक सूत्र याद रखना चाहिए 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्', आपस में एक-दूसरे का उपकार करने से ही जीवनयात्रा सम्भव होती है, एक-दूसरे का वध करने से विप्लव और विनाश ही फलित होता है । यदि हम महावीर भगवान् का सन्देश विश्व में पहुँचा दें, तो निश्चित विश्व का कल्याण होगा। मांस निर्यात यदि बन्द हो जाय, तो भारत का इतिहास जो कलंकित हो रहा है, वह उज्ज्वल बना रहेगा। पशु-आप लोगों को दुआ देंगे, और आपका जीवन जो अभी दुःखमय है वह सुखमय बन जायेगा । सुखमय बने इसी भावना के साथ अहिंसा परमधर्म की जय ।
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