Book Title: Jainpad Sagar 01
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 185
________________ गुरुस्तुतिपद-संग्रह | :: १६५. ताजा । आपसारिखा कर बुधजनकों, तुमको मेरी लाजा ॥ वीतराग ॥४॥ २७ | राग कालिंगडा । जो मोहि मुनिको मिलावे ताकी बलिहारी, जो० || टेक || मिथ्याव्याधि मिटत नहिं उनविन, वे निज अमृत पावै ॥ जो || १ || इंदफ़निंदनरिंद तीनो मिलि, उन-चरना शिरनावै । सब परिहारी परउपगारी, हितउपदेश सुनावै । जो ॥२॥ तजि सब विकलप, निजपदमाहीं, निशि दिन ध्यान लगावै । जन्मसुफल बुधजन तब है है, जब छवि नैन लखावै ॥ जो० ॥ ३ ॥ २८ | राग मल्हार लूम झूम बरसे बदरवा, मुनिवर ठाड़े तरुवरतरवा || लूमझूम ० ॥ टेक ॥ कारीघटा तैसी बीज डरावें, वे निधड़क मानों काठ पुतरवा ॥ लूमझूमं ॥१॥ बाहर को निकसे ऐसे मैं, बडे बडे घरहू गलि गिरवा । झंझावात बहे अति सियरी, वेन हिल . 4. , १ बिजली | २ बरसा सुहित आंधी ।

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